शुभेन्दु अधिकारी का इस्तीफा यानि भाजपा का फायदा, बंगाल में त्रिकोणिय संघर्ष के आसार

 


हठधर्मिता बड़ी हानिकारक होती है, लेकिन ये बात न तृणमूल काँग्रेस को समझ में आ रही है और न ही उसके चुनाव संयोजक प्रशांत किशोर को। अब पार्टी को एक तगड़ा झटका लगा है, जब कद्दावर नेता शुभेन्दु अधिकारी ने मंत्रिपद से इस्तीफा दे दिया है, और उन्होंने तृणमूल काँग्रेस से लगभग सभी प्रकार के नाते तोड़ लिए हैं।

परंतु शुभेन्दु अधिकारी हैं कौन? पार्टी में उनकी क्या भूमिका रही है और किस बात पर उन्हें पार्टी छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा है? शुभेन्दु अधिकारी बंगाल की राजनीति में एक जाना माना नाम हैँ, और इस्तीफा देने से पहले वह बंगाल सरकार में परिवहन मंत्री भी थे । इन्होंने नंदीग्राम में तत्कालीन सीपीआई [मार्क्सवादी] सरकार के विरुद्ध मोर्चा संभाला था, और ऐसे ही जन आंदोलनों के कारण दशकों लंबे कम्युनिस्ट शासन का खात्मा हुआ और तृणमूल काँग्रेस सत्ता में आई। शुभेन्दु अधिकारी का प्रभाव बंगाल, विशेषकर पूर्वी बंगाल में काफी गहरा है।

तो फिर ऐसा क्या हुआ कि शुभेन्दु अधिकारी जैसे व्यक्ति को तृणमूल काँग्रेस का दामन छोड़ना पड़ा था? दरअसल, इन दिनों पार्टी में ममता बनर्जी के अलावा यदि किसी की चलती है, तो वे सिर्फ प्रशांत किशोर हैं, जिन्होंने अब पार्टी के आंतरिक मामलों में भी हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया है। प्रशांत किशोर जिस तरह से अपनी मनमानी पार्टी पर थोप रहे हैं, उससे पार्टी के कई नेता बहुत नाराज है।

ऐसे में शुभेन्दु अधिकारी की अहमियत और अधिक बढ़ जाती है। पुरुलिया, मुर्शिदाबाद, मालदा, बांकुरा, बिशनपुर, पश्चिमी और पूर्वी मेदिनीपुर मिलकर करीब 40 विधानसभा सीटों पर शुभेन्दु अधिकारी ने धाक जमाई हुई है।

बंगाल में इस समय 294 विधानसभा सीटें है, और ऐसे में यदि शुभेन्दु का प्रभाव जमा, तो इससे भाजपा को न सिर्फ जबरदस्त फायदा मिलेगा, बल्कि वह पहली बार बंगाल में सरकार बनाने की स्थिति में होगा। 2019 के चुनाव में भाजपा ने बंगाल के उत्तरी और पश्चिमी क्षेत्र में अपनी धाक जमाई थी, परंतु पूर्वी और दक्षिणी क्षेत्रों में उसे पराजय का सामना करना पड़ा था।

अगर 2019 के लोकसभा चुनाव के हिसाब से आँकलन किया जाए तो भाजपा ने 294 में से 122 सीटें और तृणमूल काँग्रेस ने केवल बहुमत से कुछ ऊपर 163 सीट प्राप्त किए हैं। ऐसे में यदि शुभेन्दु अधिकारी के प्रभाव क्षेत्र में 30 सीटों के भी परिणाम बदल दिए, तो फिर भाजपा के पास बंगाल में जनादेश स्थापित करने का इससे बढ़िया अवसर नहीं मिलेगा।

यदि शुभेन्दु अधिकारी अपनी अलग पार्टी बनाते हैं, तो भी वह ममता बनर्जी के वोट बैंक में सेंध लगा सकते हैं, और यदि वे भाजपा की ओर से लड़ते हैं, तो भी उन्हीं का फायदा होगा। अब शुभेन्दु अधिकारी द्वारा इस्तीफा देने से मुकाबला त्रिकोणीय भी होगा, जिसका सर्वाधिक फायदा भाजपा को ही होगा।

ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि शुभेन्दु अधिकारी के इस्तीफे से जहां अब बंगाल के चुनावी मुकाबले में एक रोमांचक मोड़ आएगा, तो वहीं भाजपा के लिए पहली बार बंगाल में सरकार बनाने के लिए राह भी आसान हो जाएगी।

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