BJP को घुटनों पर लाने के लिए नीतीश कुमार अब उपेंद्र कुशवाहा को अपने साथ ला रहे

 


बिहार की राजनीति में जातिगत रणनीति का खेल किसी से छिपा नहीं है, इसके बावजूद बीजेपी ने सारे समीकरणों को धता बताते हुए बिहार में अपनी मजबूत पकड़ बनाई है। एनडीए के मुख्यमंत्री जरूर नीतीश कुमार हैं लेकिन उनकी ताकत में कमी आई है, इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता है। नीतीश कुमार अब चाहकर भी पाला नहीं बदल सकते हैं। ऐसे में वो एक रणनीति तैयार कर रहे हैं जिसके जरिए बीजेपी के साथ मिलकर ही बीजेपी को ही कमजोर किया जा सके। इस खेल में नीतीश अपने विरोधी आरएलएसपी नेता उपेंद्र कुशवाहा को ही एक कड़ी बना रहे हैं।

हाल ही मे उपेंद्र कुशवाहा ने नीतीश कुमार से मुलाकात की है जिन्हें राजनीति में जातिगत समीकरणों का खिलाड़ी माना जाता है। उपेंद्र कुशवाहा का रुख इस वक्त नीतीश कुमार के प्रति काफी नरम हो गया है। नीतीश कुमार और कुशवाहा की ये मुलाकात एक बार फिर सियासी खेमें में हलचल मचाने वाली है क्योंकि भले ही ये दोनों अब विरोधी हों लेकिन ये बात किसी को नहीं भूलनी चाहिए कि नीतीश ने ही पहली बार उपेंद्र कुशवाहा को विधानसभा में विपक्ष नेता बनाया था। दोनों ने अपनी मेहनत से 2005 में एनडीए सरकार बनाई थी। इसलिए इन दोनों की नजदीकियों को कभी भी हल्के में नहीं लिया जा सकता है।

बिहार की जातिगत राजनीति में त्रिवेणी संगम की एक महत्वपूर्ण भूमिका है जिसके तहत यहां कुर्मी कुशवाहा और यदुवंशियों को विशेष महत्व मिलता है। कुर्मी और यदुवंशियों दोनों की ही सरकार कुशवाहा के दम पर ही बनती है। ऐसे में नीतीश कुमार ने साल 2005 यदुवंशियों से इतर एक लव कुश (कुर्मी-कोइरी) संगठन बनाया था जिसके दम पर बिहार में नीतीश ने एनडीए की सरकार बनाई थी। नीतीश कुमार से अलग होकर बाद में कुशवाहा ने अपनी पार्टी बनाई और फिर एनडीए सरकार में मंत्री बने। शुरू में सब ठीक रहा, परंतु नीतीश के आने के बाद उनका महत्व खत्म होता चला गया।

उपेंद्र कुशवाहा के सामने मज़बूरी है कि उनका महागठबंधन में जाना व्यर्थ होगा, और एनडीए में इतनी धोखाधड़ी के बाद बीजेपी उन्हें स्वीकार नहीं करेगी। ऐसी स्थिति में नीतीश कुमार के जरिए उपेंद्र कुशवाहा एक नया रास्ता बना रहे हैं। इसमें राजनीतिक फायदा नीतीश कुमार भी देख रहे हैं। ये दोनों मिलकर एक बार फिर राज्य की राजनीति में वहीं लव-कुश फार्मूला बनाने की कवायद कर रहें हैं।

उपेंद्र कुशवाहा के हाथ में इस समय कुछ भी नहीं है। 2020 विधानसभा चुनाव में जनता ने उनकेे कथित वैकल्पिक गठबंधन की  फजीहत कर दी है। दूसरी ओर नीतीश की ताकत भी गठबंधन में घट गई है। वो मुख्यमंत्री तो हैं लेकिन बीजेपी का उन पर दबाव हैं। दोनों अपनी इन जरूरतों के अनुसार साथ आने की कवायद में हैं। भले ही उपेंद्र गठबंधन में न आएं या नीतीश गठबंधन से बाहर न जाएं, लेकिन इन दोनों की सांठ-गांठ इसी मुद्दे पर अंदरखाने भी हो सकती है जिससे बीजेपी का राज्य की राजनीति में कद कमजोर हो जो नीतीश के लिए बेहद जरूरी है।

नीतीश उपेंद्र कुशवाहा को ऐसे ही एक विकल्प के रूप में खड़ा करना चाहते हैं जो जातिगत रणनीति के हिसाब से बीजेपी को चुनौती दे सके। इसलिए नीतीश अब कुशवाहा को पूर्ण राजनीतिक संरक्षण देंगे जो कि दिखाता है कि जातिगत रणनीति के खिलाड़ी नीतीश एक बार फिर सक्रिय हो चुके हैं, क्योंकि सत्ता में इनकी ताकत कम होने के चलते इन्हें उलझन होने लगी है।

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