कृषि कानून से खतरे में आ चुके आढ़तियों ने जो ‘किसान आंदोलन’ का स्वांग रचा था, अब उसमें एक नई एंट्री हुई है – लाईसीप्रिया कंजूगाम की। हाँ, वही लाईसीप्रिया जिसे सोशल मीडिया पर कुछ लोग ग्रेटा लाइट के नाम से भी संबोधित करते हैं, यानि ग्रेटा थंबर्ग का सस्ता वर्जन। अब इन्होंने भी किसानों की लड़ाई लड़ने का निर्णय लिया है, और मजे की बात है कि एक पर्यावरण कार्यकर्ता होकर ये लड़की प्रदूषण को बढ़ावा देने वाले लोगों का समर्थन करती फिर रही हैं।
एनडीटीवी की रिपोर्ट के अनुसार, लाईसीप्रिया ने हाल ही में सिंघु बॉर्डर पर प्रदर्शन में भाग ले रहे लोगों का हौसला बढ़ाने के लिए आई। लाईसीप्रिया के ट्वीट्स के अनुसार, “दुनिया भर के पर्यावरण कार्यकर्ता आपके [‘किसान आंदोलन’ के ‘किसान’] साथ हैं। आशा करती हूँ मेरी आवाज दुनिया तक पहुंचे। कोई किसान नहीं, कोई खाना नहीं। जब तक इंसाफ नहीं, तब तक आराम नहीं।”
इतना ही नहीं, अपने ट्वीट्स में लाईसीप्रिया ने आगे लिखा, “हमारे किसान जलवायु परिवर्तन के सबसे बड़े दोषी हैं। निरंतर बढ़ रहे बाढ़, सूखा, साइक्लोन, टाईफून और टिड्डे उनके फसल बर्बाद कर रहे हैं। ऐसे में मैं चाहूँगी कि किसान पराली जलाना बंद करे, क्योंकि इससे वायु प्रदूषण बढ़ता है” –
अब यहाँ सबसे हास्यास्पद बात ये है कि लाईसीप्रिया ऐसी बात कह रही है, जिसके लिए ये अराजकतावादी इतने दिनों से प्रशासन और जनता की नाक में दम किये हुए हैं। जिस चीज को न करने की अपील ये ‘किसान आन्दोलन’ के कथित किसानों से कर रही है, उसी को बनाए रखने के लिए ये लोग किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं।
दरअसल, ‘किसान आंदोलन’ के भागीदारों ने जो मांगें केंद्र सरकार के सामने रखी हैं, उनमें से एक यह भी है कि उनके द्वारा पराली जलाने पर सरकार कोई हस्तक्षेप न करे, और साथ ही साथ पराली जलाने पर सरकार द्वारा लागू दंड प्रावधान भी तत्काल प्रभाव से वापिस लिया जाए।
अब आप भी सोच रहे होंगे कि भला पराली जलाने पर दंड प्रावधान की वापसी से लाईसीप्रिया का क्या संबंध? यहाँ संबंध है, क्योंकि पराली जलाने से ही दिल्ली NCR क्षेत्र में वह घातक धुंध फैलती है, जिसके कारण कई लोगों का जीना मुहाल हो जाता है। इसके पीछे का सबसे प्रमुख कारण है पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में पराली का जलाया जाना, जिसके कारण अनेकों प्रकार की समस्या होती है।
लेकिन यदि लाईसीप्रिया को इससे कोई समस्या नहीं है, तो इसका अर्थ है कि वह सिर्फ नाम की पर्यावरण कार्यकर्ता है। लेकिन इसमें लाईसीप्रिया का नहीं, उसके माता पिता का वास्तव में दोष है, जिन्होंने महज 9 वर्ष की बच्ची में इतना विष भर दिया है कि वह बिना जाने समझे गलत लोगों और गलत अभियानों का साथ दे रही है।
सच कहें तो लाईसीप्रिया कंजूगाम इस बात का प्रमाण है कि यदि हमने सही समय पर कार्रवाई नहीं की, तो वामपंथी छोटे छोटे बच्चों तक के मन में व्यक्ति, समाज और राष्ट्र के विरुद्ध विष भर देंगे, और इस हद तक भरेंगे कि वे चलते फिरते नक्सली रोबोट से कम नहीं होंगे, जैसा अभी लाईसीप्रिया में देखने को मिल रहा है।
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