50 सांसदों का इस्तीफा और बढ़ता सैन्य दबाव: इमरान खान के लिए आंतरिक कलह बनी मुसीबत

 


पाकिस्तान में इमरान खान के विपक्षी दलों द्वारा शुरू किया गया आंदोलन अब अपने अंतिम चरण में पहुंचता दिखाई दे रहा है। इस आंदोलन के साथ बढ़ते सेना और जनता के दबाव में अब पाकिस्तान एक टाइम बॉम्ब की तरह हो गया है जो इमरान खान हाथों में कभी भी फट सकता है ।

खबर के अनुसार विपक्षी पार्टियों द्वारा किए जा रहे आंदोलन के बढ़ते प्रभाव के बीच पाकिस्तान के लगभग 50 प्रतिशत संसद सदस्य इस्तीफा देने जा रहे हैं।

Wion की रिपोर्ट के अनुसार Pakistan Democratic Movement, जो ग्यारह विपक्षी दलों का गठबंधन है, अब इसकी सभी पार्टियां अपने सांसदों से इस्तीफा दिलाने पर विचार कर रहीं हैं, जो महामारी के बीच एक संवैधानिक संकट का कारण बन सकता है।

कल हुई विपक्षी नेताओं की एक बैठक में यह तय हुआ कि वे सभी विवरण के साथ इस्तीफा देने के लिए तैयार हैं। पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज़) की नेता मरियम नवाज़ आंदोलन में सबसे आगे हैं।

मरियम ने अपनी पार्टी के प्रांतीय और राष्ट्रीय विधानसभा सदस्यों को संबोधित करते हुए कहा, “अगर हम विधानसभाओं से इस्तीफे की मांग करते हैं, तो आप हमारे साथ खड़े होने के लिए तैयार रहें। किसी भी दबाव में न आएं।”

रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रांतीय स्तर पर PML(एन) के चुने हुए सदस्यों ने अपने इस्तीफे सौंपने शुरू कर दिए हैं।मरियम नवाज ने अन्य विपक्षी दलों के नेताओं से भी यही अपील की है कि अगर वे सभी मान जाते हैं तो पाकिस्तान एक संवैधानिक संकट में आ जाएगा।

बता दें कि पीएम इमरान खान के खिलाफ यह आंदोलन अब पाकिस्तान भर में आयोजित विशाल रैलियों के साथ गति पकड़ रहा है। मरियम नवाज और बिलावल भुट्टो जरदारी जैसे नेता इमरान खान के नेतृत्व वाली सरकार और सेना के खिलाफ भाषणों और जलसों में ज़ोर- शोर से भाग ले रहे हैं।

एक और बड़ी रैली 13 दिसंबर को लाहौर के मीनार- ए में होने वाली है। हालांकि, पीएम इमरान खान अभियान को रोकने की कोशिश कर रहे हैं और उनकी सरकार ने इस रैली को आयोजित करने की अनुमति नहीं दी है।

इमरान खान और सेना के खिलाफ जिस तरह से इस बार विपक्षी दलों ने एक साथ हाथ मिलाया है यह पाकिस्तान के इतिहास में पहली बार हो रहा है और अब इससे जनता में भी सेना और सरकार के खिलाफ माहौल बन चुका है।

ऐसे में इमरान खान की एकमात्र उम्मीद सेना है जिसने उन्हें पीएम पद पर बैठाया था लेकिन अब विपक्षी दलों के रुख को देखते हुए सेना भी एक अपने गियर बदलने के लिए कमर कसती दिख रही है।सरकार तो उनके नियंत्रण में थी ही अब वे पाकिस्तान में चीनी निवेश को नियंत्रित करना चाहते हैं ताकि चीन के हितों की रक्षा हो सके भले ही इमरान खान की सरकार गिर जाए।

इसलिए पाकिस्तान की सेना ने चीन- पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) पर अपनी नजर जमाई हुई हैं। इस महीने के अंत में एक बिल जिसे CPEC प्राधिकरण बिल कहा जा रहा है, पाकिस्तानी संसद में आने वाला है। इस कानून से सेना को CPEC का नियंत्रण मिल जाएगा।

अभी, CPEC परियोजनाओं को नियोजन और विकास मंत्रालय द्वारा नियंत्रित किया जा रहा है। हालांकि, बिल पास होने के बाद चीनी परियोजनाओं को CPEC प्राधिकरण द्वारा नियंत्रित किया जाएगा — वही प्राधिकरण, जो सेवानिवृत्त सेना के जनरल आसिम सलीम बाजवा के नेतृत्व में है, जो कि पिज्जा जनरल के नाम से भी जाना जाता है।

यहाँ सीधी बात यह है कि सेना अब सरकार को चीन से संबन्धित सभी परियोजनाओं से हटा कर नियंत्रण अपने हाथ में लेना चाहती है । एक तरफ विपक्षी पार्टियाँ आंदोलन कर इमरान खान की गर्दन तक पहुंच रहीं हैं तो वहीं सेना उन्हें जब मन तब हटा सकती है।

इन दोनों के बीच जनता अलग त्रस्त है और वह गुस्सा कभी भी फुट सकता है। इमरान खान सरकार के सामने अब कोई विकल्प भी नहीं दिखाई दे रहा है। ऐसे में अगर यह कहा जाए कि इमरान खान के हाथों में एक ऐसा टाइम बॉम्ब है जो कभी भी फट सकता है तो यह गलत नहीं होगा।

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