बतौर राष्ट्रपति जनवरी 2021 ट्रम्प का आखिरी महीना है और उनके कार्यकाल के खत्म होने में मात्र बीस दिन के लगभग समय शेष है। ऐसे में ट्रम्प जाते जाते अपने सभी अधूरे कामों को पूरा करने की कोशिश में हैं या कम से कम उन्हें एक दिशा देते जा रहे हैं। इसी क्रम में उन्होंने कई नीतिगत फैसले लिए हैं। साथ ही अपने कार्यकाल के आखिरी समय में ट्रम्प न सिर्फ अपने विरोधियों की मुसीबतें बढ़ाकर जाना चाहते हैं बल्कि वे अपने मित्रों को फेयरवेल गिफ्ट भी देकर जा रहे हैं। इन्हीं मित्रों की सूची में उपहार पाने का नम्बर सऊदी अरब का है। US स्टेट डिपार्टमेंट ने सऊदी को लगभग 3000 के संख्या में स्मार्ट बम देने का निर्णय किया है, जिसकी कीमत करीब 290 मिलियन डॉलर की है। यह इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि बाइडन ने पहले ही ऐलान कर रखा है कि वे अमेरिका की ओर से सऊदी को होने वाले हथियारों के निर्यात पर रोक लगाएंगे। बाइडन यमन में चल रहे युद्ध के कारण सऊदी अरब को होने वाले हथियारों के निर्यात पर प्रतिबंध लगाना चाहते हैं।
समझौते के तहत निर्यात में सऊदी को स्मार्ट बम के अलावा अन्य आवश्यक उपकरण, पुर्जे तथा तकनीकी मदद भी मिलेगी। पेंटागन की ओर से बयान में कहा गया है कि ” यह निर्यात सऊदी अरब के, लंबी दूरी की हवा से भूमि पर मार करने वाली मिसाइलों के, स्टॉक को बढ़ाकर उनकी अभी एवं भविष्य के खतरों से निपटने की क्षमता बढ़ाएगा।”
हालांकि, अमेरिकी कांग्रेस के सदस्य सरकार के फैसले से नाराज हैं। यह पहला मौका नहीं है, इसके पहले भी कांग्रेस ने सऊदी अरब को होने वाले F35 के निर्यात के फैसले पर रोक लगाने का असफल प्रयास किया था।
सऊदी ने कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर ट्रम्प का साथ दिया है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण है इजराइल के साथ रिश्ते सामान्य करने के लिए माहौल बनाना। यह जगजाहिर है कि अब्राहम अकॉर्ड का फैसला सऊदी अरब की स्वीकृति के बिना नहीं हुआ था। इसके बाद मीडिया में यह भी खबरें आईं की इजरायली प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने सऊदी अरब का दौरा किया। सऊदी ने खुलकर कट्टरपंथी इस्लाम के खिलाफ मुहिम में अमेरिका एवं उसके सहयोगियों का समर्थन किया। चाहे ईरान का मसला हो या कश्मीर पर पाकिस्तान को दुत्कारना हो, सऊदी लगातार अपने फैसलों के जरिये यह दर्शाता रहा है कि उसे इस्लामी उम्मा से नहीं बल्कि आर्थिक विकास और क्षेत्रीय स्थिरता से मतलब है।
यही कारण था कि फ्रांस द्वारा कट्टरपंथी इस्लामिक संगठनों तथा उनकी विचारधारा के विरुद्ध कार्यवाही करने पर, जब तुर्की ने फ्रांस के खिलाफ मुहिम छेड़ दी थी तब भी सऊदी मौन ही रहा था। इसी का लाभ उसे मिला है।
वास्तव में ट्रम्प चुनाव भले हार गए हैं किंतु वह ये सुनिश्चित कर लेना चाहते हैं कि उनके द्वारा किये गए सुधार स्थायी रहें। उन्होंने चीन, तुर्की और ईरान के खिलाफ अपने कार्यकाल के अंत में जो रवैया अपनाया है वह अमेरिकी विदेश नीति पर दूरगामी प्रभाव डालने वाला है। अब सऊदी को होने वाले निर्यात को मंजूरी देकर ट्रंप यह सुनिश्चित कर लेना चाहते हैं कि बाइडन, उनके द्वारा पश्चिम एशिया के भूराजनीतिक समीकरणों में किये गए बदलावों को, खत्म न कर सकें।
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