ट्रम्प का चीन पर प्रहार जारी, US-China रिश्तों के बीच हमेशा मौजूद रहेगा तिब्बत

 


चीनी प्रशासन के लिए आज के समय सबसे ज़्यादा संवेदनशील मुद्दा क्या है? क्या वह ताइवान का मुद्दा है या फिर शिंजियांग का? नहीं, वह मुद्दा है तिब्बत का! चीन को सबसे अधिक डर इस बात का है कि कहीं अमेरिका और भारत जैसी शक्तियाँ तिब्बत में बढ़ रहे चीन के विरोध का फायदा उठाकर चीन की क्षेत्रीय संप्रभुता के लिए कोई बड़ी चुनौती पेश ना कर दें! पर अफसोस, चीन का अब ये डर सच्चाई में परिवर्तित होता दिखाई दे रहा है। ऐसा इसलिए क्योंकि अब अमेरिका ने आधिकारिक रूप से यह मान लिया है कि तिब्बत पर CCP ने सेना की सहायता से कब्जा किया हुआ है, और यह चीन का हिस्सा नहीं है! अमेरिका के स्टेट डिपार्टमेन्ट ने अपनी हालिया रिपोर्ट में तिब्बत के लिए “Militarily Occupied Territory” जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया है।

अमेरिका की ओर से ऐसा यह फैसला तब लिया गया है जब White House में बाइडन की एंट्री होना लगभग तय दिखाई दे रहा है। ऐसे में ट्रम्प प्रशासन जाते-जाते यह सुनिश्चित कर रहा है कि तिब्बत का मुद्दा अमेरिका-चीन की द्विपक्षीय बातचीत में एक चर्चित मुद्दा बना रहे। इस बात में कोई दो राय नहीं है कि ट्रम्प प्रशासन ने तिब्बत के मुद्दे को पुनर्जीवित किया है।

70 के दशक में जब अमेरिका-चीन के कूटनीतिक रिश्तों का नया अध्याय लिखा जा रहा था, तो अमेरिका ने तिब्बत मुद्दे को ठंडे बस्ते में डाल दिया था। 70 के दशक के बाद अमेरिका ने तिब्बत मुद्दे को गंभीरता से लेना बंद कर दिया। उस वक्त के अमेरिकी राष्ट्रपति वर्ष 1972 में चीनी राष्ट्रपति माओ जेडोंग से मिलने पहुँच गए थे। उस वक्त तक अमेरिका सोवियत को घेरने के लिए इतना बेताब हो गया था कि वह इसके लिए चीन को भी अपने पाले में करना चाहता था। इसलिए अमेरिका ने चीन की तरफ हाथ बढ़ाने की पहल की। दूसरी तरफ भारत और रूस की बढ़ती दोस्ती के कारण अमेरिका और चीन को लेकर भारत का रवैया भी काफी बदल गया।

हालांकि, ट्रम्प प्रशासन ने आने के बाद तिब्बत के महत्व को दोबारा समझा। राष्ट्रपति ट्रम्प के नेतृत्व में अमेरिका ने भारत में मौजूद तिब्बत की निर्वासित सरकार को 1 मिलियन डॉलर की आर्थिक सहायता प्रदान करने का ऐलान किया, White House में पहली बार तिब्बती सरकार के राष्ट्रपति Lobsong Sangay को निमंत्रित किया गया, और इसके साथ ही अब USA ने तिब्बत को चीन का हिस्सा मानने से ही मना कर दिया है।

तिब्बत में चीन के लिए मुश्किलें खड़ी करने के लिए भारत की ओर से भी कई कदम उठाए गए हैं। भारत-तिब्बत बॉर्डर पर भारत-चीन की सेनाओं के बीच हुई हालिया झड़पों में जिस प्रकार भारत ने अपनी अति-आक्रामक और आधुनिक Special Frontier Force का इस्तेमाल किया और तिब्बती शरणार्थियों को चीनी सेना से बदला लेने का अवसर दिया, उसने चीनी सरकार में भय का माहौल पैदा कर दिया है। यही कारण है कि अब असुरक्षा की भावना बढ़ने के चलते चीन ने जल्द से जल्द शिंजियांग की भांति तिब्बत में भी सांस्कृतिक फेर बदल की रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया है।

ट्रम्प कभी नहीं चाहेंगे कि जिस प्रकार 70 के दशक में अमेरिका ने अपना तिब्बत प्रोग्राम रोक दिया था, ठीक उसी प्रकार बाइडन के आने के बाद भी दोबारा ही ऐसा देखने को मिले! ऐसे में अब तिब्बत को आधिकारिक तौर पर चीन का हिस्सा ना मानकर अमेरिका ने तिब्बत मुद्दे को सदैव के लिए जीवित कर दिया है। यह एक ऐसा काँटा है जो दशकों तक चीन को चुभता रहेगा। तिब्बत की स्वतंत्रता को लेकर अब बाइडन प्रशासन को भारत सरकार के साथ मिलकर काम करना होगा। ट्रम्प अब शायद अमेरिका के राष्ट्रपति पद पर बने नहीं रह पाएंगे, लेकिन इतना तय है कि उनका तिब्बत को लेकर लिया गया यह फैसला तिब्बत की आज़ादी की मुहिम में एक बड़ी भूमिका निभाएगा!

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