जानिए, कैसे PM मोदी की अपील के बाद सुस्त पड़ी कंपनियों में विदेशी निवेश शुरू हो गया

 


वर्ष 2014 के बाद जब से नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री की कुर्सी संभाल रहे हैं तब से भारत में विदेशी निवेश कई गुना बढ़ा है। यूपीए के लगातार भ्रष्टाचार के कारण अस्थिर बैंकिंग प्रणाली विरासत में मिलने के बावजूद, वह निवेशकों का विश्वास अर्जित करने में सक्षम रहे हैं। जब भारत निवेशकों के लिए एक प्रमुख निवेश स्थल बन रहा था तभी चीनी वायरस कोरोना के कारण पूरे विश्व भर में आर्थिक तबाही मच गयी। कई देशों से तो विदेशी निवेशक अपने बैग पैक कर वापस जाने लगे। हालांकि, कुछ ही महीनों में भारत ने एक बार फिर से अपने बाजार को स्थिर बनाने में जुटा हुआ है और यहाँ का वित्तीय बाज़ार अभी भी निवेशकों द्वारा अपने किस्मत को आजमाने के लिए प्रमुख बाज़ारों में से एक है।

यह सच है कि कोरोनावायरस ने देश भर में बहुत सारी कंपनियों को अपंग कर दिया है, लेकिन पीएम मोदी की अपील के बाद, इस तरह की संकटग्रस्त कंपनियों को राहत देने के लिए विदेश से निवेश आना शुरू हो गया है। द प्रिंट की रिपोर्ट के अनुसार, अपोलो ग्लोबल मैनेजमेंट इंक और ओकट्री कैपिटल ग्रुप जैसे वैश्विक दिग्गजों ने हाल ही में भारत के अंदर संकट ग्रस्त कंपनियों से डील की है या फिर वैसी कंपनियों में निवेश करने के लिए अपनी टीमों की क्षमता को बढ़ाया है। वहीं न्यूयॉर्क स्थित सेर्बस ने 2019 में ही भारत में कार्यालय की स्थापना कर उसका नेतृत्व करने के लिए अपोलो और सिटीग्रुप के एक दिग्गज को काम सौंपा था।

भारत के संकटग्रस्त वित्तीय बाजार में पैसा किस पैमाने पर आ रहा है इस तथ्य का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि Researcher Venture Intelligence के अनुमान के अनुसार- इस साल भारत में 1.5 बिलियन डॉलर की धनराशि पहले से ही संकटग्रस्त संपत्तियों में लगाई जा चुकी है। यह आंकड़ा वर्ष 2019 से 55% अधिक है। यह डेटा केवल उन सौदों को बता रहा है जो फाइनल हो गए हैं। इसमें वे डील शामिल नहीं हैं जिन्हें हाल ही में घोषित किया गया है जैसे जुलाई में इंडियाबुल्स हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड को ऋण देने के लिए ओकट्री की 22 बिलियन डॉलर देने की घोषणा।

पिछले साल दिसंबर में, Goldman Sachs Group Inc और वैश्विक निवेश फर्म Varde Partners LP के नेतृत्व में एक कंसोर्टियम ने भारतीय बिजली कंपनी को 65.75 बिलियन डॉलर रुपये (922 मिलियन डॉलर) ऋण देने की सहमति व्यक्त की थी जो कि देश की दिवालिया अदालत के बाहर सबसे बड़े सौदों में से एक है।

और यह सिर्फ संकटग्रस्त कंपनियां नहीं हैं जिनमें विदेशी फर्मों से पूंजी प्रवाह हो रहा है। TFI ने पहले ही रिपोर्ट किया है कि भारतीय कंपनियों ने वर्ष 2020 के पहले छह महीनों में इक्विटी पूंजी में लगभग 31 बिलियन डॉलर जमा करने का रिकॉर्ड बनाया था। बैंक सबसे अधिक सक्रिय यूजर थे जिन्होंने 13.68 बिलियन डॉलर जमा किए थे, इसके बाद ऊर्जा और बिजली क्षेत्र जहां 7.05 बिलियन डॉलर और उपभोक्ता उत्पाद ने 3.41 बिलियन डॉलर प्राप्त किए थे।

इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि यह रिकॉर्ड ऐसे समय में बना जब भारत की अर्थव्यवस्था जून-तिमाही में 23.9% सिकुड़ी थी। बावजूद इसके इंटरनेट के अर्थशास्त्रियों ने महामारी से निपटने के मुद्दे पर मोदी सरकार की तैयारियों की आलोचना करते रहे।

बाजार में पूंजी का प्रवाह होने, और खपत में वृद्धि – जैसा कि ऑटोमोबाइल की बिक्री में वृद्धि और दिवाली के त्योहारों वाले सीजन के दौरान सामानों की बिक्री में सामान्य उछाल है, यह दिखाता है देश की अर्थव्यवस्था अब वास्तव में पटरी पर लौट रही है। अब भी अर्थशास्त्री अपने निराशावादी एजेंडे को आगे बढ़ा रहे हैं लेकिन उनकी कोई नहीं सुन रहा है। निवेशक भारत में पीएम मोदी के भरोसे के साथ अपने निवेश को लगातार बढ़ा रहे हैं ,संकट ग्रस्त कंपनियों को भी संकट से निकालने में मदद कर रहे हैं।

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