J&K भूमि घोटाला: फारूक अब्दुल्ला का राजनीतिक करियर शानदार रहा, इसका अंत नहीं

 


एक समय ऐसा भी था जब फारूक अब्दुल्ला के एक इशारे पर पूरा कश्मीर बंद या खुल सकता था, लेकिन तब और आज में काफी अंतर आ चुका है। अब जब से अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35 ए निरस्त हुआ है, तब से एक एक करके उनकी काली करतूतें सामने आ रही हैं, जिससे उनकी छवि का रसातल में जाना तय है। इसी का एक प्रत्यक्ष उदाहरण है निरस्त हो चुका विवादित रोशनी भूमि अधिग्रहण एक्ट, जिसके अंतर्गत हुए जमीन घोटाले में अब फारूक अब्दुल्ला और उनके परिवार का भी नाम आया है।

पिछले महीने में जम्मू एवं कश्मीर हाई कोर्ट ने रोशनी एक्ट को असंवैधानिक करार देते हुए सीबीआई जांच के आदेश दिए थे, जिसके अंतर्गत इस एक्ट के अंतर्गत हुई जमीन की धांधली से जुड़े 868 नाम सामने आए थे, जिन्होंने इस एक्ट का दुरुपयोग कई एकड़ जमीन पर कब्जा जमाया था।

अब ये सामने आया है की इन घोटालेबाजों में फारूक अब्दुल्ला और उनके बेटे उमर भी शामिल हैं, जिन्होंने लगभग 1 एकड़ जमीन पर ‘रिहायशी’ उद्देश्यों से रोशनी एक्ट के अंतर्गत कब्जा जमाया था। इन दोनों के अलावा सैयद अखून, असलम गोनी, हारून चौधरी, सज्जाद किचलू एवं अब्दुल मजीद जैसे नेशनल कॉन्फ्रेंस  के नेता, पूर्व PDP नेता हसीब द्राबू, काँग्रेस के कोषाध्यक्ष के के अमला इत्यादि के नाम भी सामने आए है।

परंतु ये रोशनी एक्ट है क्या? भारत का कोई भी नागरिक जम्मू-कश्मीर में न जमीन खरीद सकता था और न ही बस सकता था, लेकिन रोशनी एक्ट के अंतर्गत चाहे पड़ोसी देश पाकिस्तान हो, या फिर रोहिंग्या घुसपैठिए हो, उन्हें बेरोकटोक जमीन आवंटित की जा रही थी।

इस अधिनियम के अंतर्गत जम्मू-कश्मीर में सरकारी ज़मीन पर जो भी अवैध कब्जा करता है, उसे ही उस क्षेत्र का वास्तविक स्वामी भी बना दिया जाता। यही नहीं, राज्य में इस्लामिक कट्टरपंथियों की पहुंच जम्मू क्षेत्र तक बढ़ाने के लिए सरकारी स्तर पर वर्षों तक धांधलेबाजी की जाती रही। इससे न सिर्फ देश के राजकोष को नुकसान पहुंचा, अपितु धर्म के आधार पर लोगों को ज़मीन अवैध रूप से पीडीपी और नेशनल कॉन्फ्रेंस की सरकारों द्वारा आवंटित की जाती रही।

जब कठुआ मामला विवादों के घेरे में आया, तभी जम्मू के गुज्जर और बकरवाल समुदाय ने भी इस एक्ट के विरोध में अपनी आवाज़ उठानी शुरू कर दी, क्योंकि पीडीपी सरकार ने रोशनी एक्ट के जरिये रोहिंग्या घुसपैठियों को अवैध रूप से बसाना शुरू कर दिया था। अंतत: 2018 में राष्ट्रपति शासन लगने के उपरांत इस कपटी अधिनियम को निरस्त कर किया गया।

रोशनी एक्ट से एक तरह से ‘जमीन जिहाद’ को बढ़ावा मिलता था, जिसके बारे में जी न्यूज के वरिष्ठ पत्रकार सुधीर चौधरी ने अपनी एक  रिपोर्ट में प्रकाश भी डाला था। अपने डीएनए शो में सुधीर चौधरी ने जम्मू-कश्मीर में आबादी के जरिये जम्मू क्षेत्र के इस्लामीकरण के नापाक प्रयास को उजागर किया। सुधीर चौधरी ने अपनी रिपोर्ट में कहा, “रोशनी एक्ट एक बहुत बड़ा घोटाला था जिसमें अवैध कब्जा करने वालों को बेशकीमती ज़मीनें कौड़ियों के भाव बेच दी गयी थीं। फिलहाल ये मामला जम्मू-कश्मीर के हाई कोर्ट में लंबित है परंतु ये एक बहुत बड़ी साजिश थी। आरोपों की माने तो हिन्दू बहुल जम्मू में अवैध कब्जे वाली सरकारी ज़मीन का मालिक केवल एक ‘धर्म विशेष’ के लोगों को बनाया गया।”

लेकिन अब ऐसा और नहीं होगा। केंद्र सरकार ने न केवल इस एक्ट को निरस्त कराया, अपितु ये भी निर्देश दिया की इस अधिनियम के अंतर्गत जितना भी जमीन का आवंटन हुआ है, उसे निरस्त घोषित किया जाए, और छह महीने के अंदर अंदर सभी जमीन सरकार को पुनः सौंपी जाए। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा की रोशनी एक्ट फारूक अब्दुल्ला एवं उनके परिवार की छवि को ऐसा नुकसान पहुंचाने वाली है, जिससे वे कभी भी नहीं उबर पाएंगे।

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