Gupkar गठबंधन को अपनी हार का पूर्वानुमान हो गया है, अब ये अभी से बहाने तैयार कर रहे

 


कहते हैं जब बर्बादी का पूर्वानुमान हो जाता है तो पहले ही उसके लिए बहाने तैयार कर लिए जाते हैं। कुछ ऐसा ही हाल जम्मू-कश्मीर में इस्लामिक कट्टरता और अलगाववाद फैलाने वाले गुपकार गठबंधन का है, जो जम्मू-कश्मीर के जिला विकास परिषद (डीडीसी) चुनाव में खड़ा हुआ है। ये लोग चुनावों से पहले ही बहाने बना रहे हैं कि सुरक्षाबलों के कारण वो अपने चुनावी क्षेत्र में नहीं जा पा रहे हैं, और सुरक्षा बल बीजेपी वालों को संरक्षण दे रहे हैं। गुपकार गठबंधन के इन बहाने बाजों ने साफ कर दिया है कि इन चुनावों में इनके जनसमर्थन का खोखला ढोल फटने वाला है और इसीलिए ये पहले ही बहानों की दुकान लेकर बैठ गए हैं।

जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद-370 और 35A हटने के बाद पहली बार कोई राजनीतिक गतिविधि जिला विकास परिषद के चुनावों के रुप में हो रही है, जिसके चलते केंद्र की मोदी सरकार द्वारा राज्य में भारी सुरक्षा बल तैनात किये गये हैं जिसकी संख्या यहां करीब 25,000 तक है। ऐसे में सभी प्रत्याशियों की सुरक्षा का ध्यान रखते हुए उन्हें सुरक्षित स्थानों पर रखा जा रहा है जिससे उनकी जान को कोई खतरा न हो, क्योंकि आतंकी राजनेताओं को सबसे पहले निशाना बनाते हैं, लेकिन ये उच्च स्तरीय सुरक्षा ही गुपकार गठबंधन के उम्मीदवारों को चुभने लगी है।

गुपकार गठबंधन के अतंर्गत आने वाले पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) और नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) के नेता ही सुरक्षाबलों से नाराज है़ं। खैर ये कोई नई बात नहीं है क्योंकि इनको कश्मीर में सेना पसंद ही नहीं आती है। परंतु इस बार ये सेना इनकी सुरक्षा में है, तो इनको दिक्कत इस बात की है कि इन्हें सुरक्षा की आड़ में बंधक बनाया गया है। इनका कहना है कि इन्हें इनके चुनावी क्षेत्र में नहीं जानें दिया जा रहा है जिससे ये प्रचार नहीं कर पा रहे हैं। वहीं, इनका आरोप ये भी है कि सुरक्षा बल बीजेपी के नेताओं को पूरा संरक्षण दे रहे हैं। इसके लिए ये सभी उम्मीदवार केंद्र की मोदी सरकार पर हमलावर हैं और इसे बीजेपी की सियासी साजिश बताया जा रहा है।

इस मामले में जम्मू-कश्मीर नेशनल कांफ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने भी केंद्र सरकार पर आरोप लगाया है कि गुपकार के नेताओं को प्रचार से रोका जा रहा है जिसके लिए सुरक्षा के बेजा हवाला दिया जा रहा है। उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा, जम्मू कश्मीर प्रशासनबीजेपी की सहायता करने के लिए सीमा से परे जा रहा है और सुरक्षा का हवाला देते हुए बीजेपी के विरोधी दलों के प्रत्याशियों को लॉक-अप में बंद किया जा रहा है। यदि चुनाव प्रचार के लिए सुरक्षा की स्थिति अनुकूल नहीं है तो चुनाव कराने की क्या जरूरत है?”

अब बात जब कश्मीर की हो रही हो और पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती का बयान न आए… ऐसा हो सकता है? उन्होंने भी इस मामले में अपना प्रोपेगेंडा चलाया और कहा, डीडीसी के चुनाव के लिए गैर-बीजेपी उम्मीदवारों को खुलकर चुनाव प्रचार नहीं करने दिया जा रहा हैऔर सुरक्षा का हवाला देकर बंद किया जा रहा हैलेकिन बीजेपी और उसके मुखौटे पूरे बंदोबस्त के साथ घूम रहे हैं। क्या यही वह लोकतंत्र है जिसके बारे में भारत सरकार ने कल अमेरिका के निर्वाचित राष्ट्रपति से फोन पर बात की थी।

असल में जम्मू-कश्मीर के गुपकार गठबंधन के नेताओं की ये शिकायतें उनकी एक खीझ हैं। ये वही लोग हैं जो पहले कश्मीर मुद्दे का हल पाकिस्तान से करवाना चाहते थे और अनुच्छेद-370 की बहाली के लिए चीन से मदद मांग रहे थे। यही नहीं ये लोग तिरंगे का अपमान करते हुए चुनाव न लड़ने की बात कह रहे थे। इसके बावजूद ये लोग अब चुनावी राजनीति में आने को राजी हो गए हैं, लेकिन इन्हें पता है कि अब कश्मीर पहले जैसा नहीं है। यहां उन्होंने पिछले दो महीनों में अलगाववाद से लेकर देश विरोधी को बढ़ावा दियाऔर लोगों को भारतीय सरकार के खिलाफ खूब भड़काया है, लेकिन उन्हें कोई जनसमर्थन नहीं मिला है। ऐसे में ये जानते हैं कि डीडीसी चुनावों में इन सभी की करारी हार तय है। इसीलिए ये हताश गुपकार गैंग के पहले ही हार के बहाने खोजने लगी हैं, जो कि इनकी हताशा को दर्शाता है।

जम्मू-कश्मीर की इन अलगाववादी पार्टियों को एहसास हो गया है कि अब जम्मू-कश्मीर में उनका राजनीतिक दाना-पानी भी खत्म होने वाला है और हार का यही डर उनकी ज़ुबान से निकले इन बहानों में झलक रहा है।

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