‘उद्धव के कारण काम करना मुश्किल’, ठाकरे की नीतियों से झल्लाए महाराष्ट्र DGP ने अमित शाह से मांगी मदद


जब से महाराष्ट्र की कमान महा विकास अघाड़ी के हाथों में गई है, महाराष्ट्र के लोगों का जीना हराम हो गया है। अपनी बात रखने भर के लिए आम नागरिकों को जबरदस्ती जेल में ठूंसा जा रहा है, सरकार की नीतियों की आलोचना करने पर पत्रकारों को बंद पड़े पुराने मामले के अंतर्गत जबरदस्ती हिरासत में लिया जा रहा है, और तो और एक कार्टून व्हाट्सएप पर फॉरवर्ड के लिए पूर्व सैन्य अफसरों को सत्ताधारी पार्टी के गुंडों द्वारा पीटा जा रहा है। लेकिन महाराष्ट्र पुलिस भी सत्ताधारी सरकार के इस दमन चक्र से अछूती नहीं है, और अब पुलिस और सरकार के बीच की तनातनी खुलकर सामने आ गई है।

महाराष्ट्र के वर्तमान डायरेक्टर जनरल ऑफ पुलिस यानि डीजीपी सुबोध जायसवाल ने हाल ही में केन्द्र पुलिस सेवा के अहम पद में तैनाती के लिए आवेदन किया है। ऐसा करने के पीछे का कारण वर्तमान में उद्धव सरकार के फैसले हैं, जो अकारण ही पुलिस महकमे में तबादले कर रहे हैं और अपने फैसले थोप रहे हैं। इससे आहत होकर अब डीजीपी सुबोध जायसवाल केंद पुलिस सेवा में जाना चाहते हैं।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक सितंबर महीने में ही करीब 50 वरिष्ठ पुलिस अफसरों का तबादला किया गया। इसके बाद निचले स्तर के अफसरों के तबादले हुए। इस बात को लेकर डीजीपी सुबोध जायसवाल ने उद्धव सरकार से बातचीत करने का प्रयास भी किया परन्तु उन्हें नजरअंदाज किया गया। यही कारण है कि अब डीजीपी सुबोध जायसवाल राज्य पुलिस को छोड़ना चाहते हैं और केंद्र पुलिस सेवा में जाना चाहते हैं।

कहा जा रहा है कि पुलिस की कार्यशैली में वर्तमान महाराष्ट्र प्रशासन टांग अड़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है, और कई पुलिस अफसरों की तैनाती में डीजीपी से कोई सलाह ही नहीं ली गई। अब अपने नए पद के लिए सुबोध को राज्य सरकार से अनापत्ति प्रमाणपत्र यानि नो ऑब्जेक्शन सर्टिफ़िकेट लेनी थी, जो उन्हें सहर्ष ही दे दी गई, मानो वर्तमान प्रशासन उनसे छुटकारा पाना चाहता हो।

टाइम्स ऑफ इंडिया से बातचीत के दौरान कैबिनेट के एक वरिष्ठ सदस्य ने इस विषय पर प्रकाश डालते हुए कहा, “वे [सुबोध] उद्धव और अनिल देशमुख [महाराष्ट्र गृहमंत्री] द्वारा मनमाने तरीके से आईपीएस अफसरों के किये गये ट्रांसफर और पोस्टिंग के विरुद्ध थे। डीजीपी का मानना था कि पोस्टिंग और ट्रांसफर पर एक स्पष्ट नीति हो, जबकि सरकार का मानना था कि डीजीपी को ऐसे मामलों में हस्तक्षेप नहीं करन चाहिए। इसी से तंग आकर डीजीपी ने यह कदम उठाया”। रिपोर्ट्स के अनुसार जिस तरह से उद्धव सरकार पुलिस महकमे में हस्तक्षेप कर रही है और पुलिस प्रशासन पर दबाव बना रही है उससे डीजीपी सुबोध जायसवाल के लिए काम करना कठिन सा हो गया है

रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि जायसवाल ने राज्य के गृह विभाग को लिखे पत्र में ये सुझाव दिया था कि पूरी पुलिस फोर्स को बदलने के बजाए जिन अफसरों ने दो वर्षों का कार्यकाल पूरा किया है, उन्हे हटाया जाना चाहिए। परंतु बात केवल यही नहीं है। डीजीपी सुबोध जायसवाल ने ये भी सुझाव दिया था कि राज्य के सभी आईपीएस अफसरों को नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में एक निश्चित समय के लिए अनिवार्य रूप से काम करना चाहिए। ऐसा हो भी क्यों न, आखिर डीजीपी जायसवाल का राष्ट्रीय सुरक्षा के संबंध में काफी पुराना अनुभव रहा है। दस वर्ष तक भारत के विदेशी इंटेलिजेंस विंग रॉ को अपनी सेवाएँ देने के साथ-साथ सुबोध कुमार जायसवाल ने 1995 से 2001 तक स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप के साथ भी काम किया है। यदि सब कुछ सही रहा, तो जल्द ही वे एनएसजी का हिस्सा बन सकते हैं।

अब यदि सुबोध जायसवाल केन्द्र पुलिस सेवा में अपना स्थानांतरण चाहते हैं, तो उससे स्पष्ट है कि महाराष्ट्र में जब तक महाविकास अघाड़ी जैसी गठबंधन सरकार है, तब तक कर्मठ और ईमानदार लोगों के लिए राज्य में कोई जगह नहीं है, और यदि वे आए, तो उन्हें प्रशासन चैन से रहने नहीं देगी।

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