चीन से निपटने के लिए अब भारत की मदद चाहता है नेपाल पर अबकी बार भारत की भी कुछ शर्तें हैं

 



यदि वुहान वायरस से कोई सकारात्मक परिणाम सामने आया है, तो वह है भारत के कूटनीतिक कद में वृद्धि। अब भारत का डंका केवल एशिया में नहीं बल्कि सम्पूर्ण विश्व में बज रहा है, और जो देश किन्ही कारणों से भारत से नाराज थे या भारत को चुनौती देना चाहते थे, वह अब भारत से अपने कूटनीतिक संबंध पुनर्स्थापित करना चाहते हैं, और इन्ही में अग्रणी है नेपाल। एक दो महीने पहले चीन के इशारों पर भारत को आंखे दिखाने वाली नेपाल की वर्तमान सरकार अब समझ चुकी है कि भारत के बिना उसका कोई गुजारा नहीं। इसके अलावा जिस प्रकार से चीन नेपाल की जमीन पर आँख गड़ाये बैठा है, उससे नेपाली जनता में आक्रोश दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। अब चाहे स्वेच्छा से, या जन दबाव के कारण, परंतु नेपाल अब भारत से अपने संबंधों में आई दरार को पाटना चाहता है।


इसकी शुरुआत भी हो चुकी है, क्योंकि कल यानि 4 नवंबर को भारतीय थलसेना के अध्यक्ष जनरल मनोज मुकुंद नारावने नेपाल के कई महीनों से स्थगित दौरे पर जाएंगे, जहां उन्हे नेपाली राष्ट्रपति विद्यादेवी भण्डारी द्वारा नेपाली थलसेना के अध्यक्ष के मानद पद से सुशोभित किया जाएगा। इसके अलावा अगले दिन यानि 5 नवंबर को जनरल नारावने नेपाली पीएम केपी शर्मा ओली, जो कि रक्षा मंत्री के अतिरिक्त पदभार को भी संभाल रहे हैं इस नाते उनसे भी विशेष मुलाकात करेंगे।

अब इस दौरे के पीछे अनेक कारण है, जिनमें सबसे प्रमुख है भारत के साथ अपने पुराने संबंध को मजबूत करना। ऐसा इसलिए है क्योंकि नेपाल भी भली-भांति जानता है कि वह चीन से एक बार को पंगा मोल ले सकता है, परंतु भारत से नहीं। इसी परिप्रेक्ष्य में हिंदुस्तान टाइम्स ने अपनी रिपोर्ट में प्रकाश डालते हुए लिखा है, “यहाँ पर आशा है कि जनरल नारावने की नेपाल में जमकर खातिरदारी होगी, क्योंकि ओली सरकार महाकाली नदी पर निर्माणाधीन पन्चेश्वर मल्टी पर्पज़ परियोजना को पुनः प्रारंभ करना चाहते हैं। आधिकारिक सूत्रों के अनुसार इस प्रोजेक्ट पर चर्चा प्रारंभ हो चुकी है और 80 प्रतिशत समस्याओं का समाधान भी हो चुका है। भारत पहले ही दो हाइड्रोइलेक्ट्रिक परियोजनाओं के निर्माण में युद्धस्तर पर काम कर रहा है।”

भारत नेपाल के साथ अपने रिश्ते सामान्य करने के लिए तैयार है परंतु इसके साथ ही भारत की कुछ शर्तें भी इसबार प्रभावी दिख रहीं है। वर्तमान के घटनाक्रम को देखें तो भारत का नेपाल को स्पष्ट संदेश है कि नेपाल को भारत के साथ उसके सम्बन्धों को नया आयाम एक दूसरे के सम्मान के साथ देना होगा। साथ ही जिस प्रकार की घटनाएँ मानचित्र को लेकर हुई हैं, वह किसी भी सूरत में दोहराए नहीं जाने चाहिए। भारत नेपाल को इस बार स्पष्ट करना चाहता है कि उसके नए सम्बन्धों की पटकथा चीन से उसके दूरी को बनाए जाने के बाद ही लिखी जाएगी।

नेपाल भी भारत से अपने संबंध सुधारने के लिए काफी पहल कर रहा है। हिंदुस्तान टाइम्स की एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार, “पिछले कुछ महीनों में दोनों देशों ने अपने संबंध सुधारने की दिशा में काफी सार्थक प्रयास किए हैं। सितंबर में प्रधानमंत्री ओली ने उन सभी स्कूली पुस्तकों के प्रकाशन पर रोक लगाई है, जिनमें नेपाल के नए और विवादित मानचित्र पर जोर दिया गया था। इसके अलावा जनरल नारावने के दौरे से पहले ओली ने उपप्रधानमन्त्री ईश्वर पोखरेल से रक्षा मंत्रालय का अतिरिक्त पदभार भी वापस लिया है।”

इस रिपोर्ट की माने तो यदि नेपाल कालापानी वाले विवाद को तूल ना दे, तो भारत बिना किसी समस्या के नेपाल से संबंध बहाल करेगा। इसीलिए पीएम ओली ने ईश्वर पोखरेल को रक्षा मंत्रालय के पद से हटवाया, क्योंकि वे न केवल भारत विरोधी तत्वों को बढ़ावा दे रहे थे, बल्कि भारतीय थलसेना अध्यक्ष के नेपाल दौरे का विरोध भी कर रहे थे।

नेपाल भारत के साथ अपने संबंधों को पुनः बहाल करने के लिए इच्छुक है, पर भारत ने भी स्पष्ट कहा है कि संबंधों को मजबूत करने के लिए राष्ट्रहित से कोई समझौता नहीं होगा। भारत भी भली-भांति जानता है कि नेपाल इस समय चीन के चंगुल से पीछा छुड़ाने के लिए कुछ भी करने को तैयार है, और ऐसे में भारत उसी आक्रामक कूटनीति का प्रयोग कर रहा है, जिसके चलते मालदीव और श्रीलंका जैसे देश चीन के चंगुल से बाहर निकलने में कामयाब हो पाए थे।

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