अर्नब लुटियंस का अधिपत्य खत्म करने के लिए मुंबई शिफ्ट हुए, अब राजनीतिक हिंसा और साजिशों में बुरे फंसे

 


मई 2017 में जब अर्नब गोस्वामी टाइम्स ग्रुप छोड़ने के कुछ ही महीनों बाद एक नया मीडिया हाउस खोला, तो इसका मुख्य ऑफिस उन्होंने मुंबई में खोला। यह अपने आप में काफी अनोखा था, क्योंकि अधिकांश मीडिया हाउस के मुख्य ऑफिस दिल्ली एनसीआर में थे, लेकिन अर्नब चाहते थे कि वे राजनीतिक और नौकरशाही के गठजोड़ से दूर रहे। परंतु उन्हे क्या पता था कि उनका यही निर्णय एक दिन उनपर बहुत भारी पड़ेगा।

जब उन्होंने मुंबई में अपना ऑफिस सेटअप किया था, तब वह देश की आर्थिक राजधानी ही नहीं था, बल्कि सरकार में भ्रष्टाचार और बीएमसी के लापरवाह स्वभाव के बावजूद वहाँ किसी भी उद्योग के साथ किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं किया जाता था।

परंतु जब से काँग्रेस, शिवसेना और एनसीपी को मिलाकर महाविकास अघाड़ी सरकार आई है, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता तो जैसे मज़ाक बन चुकी है। जबसे नवंबर 2019 में उद्धव ठाकरे ने शपथ ली है, तब से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को ग्रहण लग चुका है। उदाहरण के लिए समीत ठक्कर ने जब आदित्य ठाकरे और उद्धव ठाकरे के विरुद्ध सोशल मीडिया पर पोस्ट किया , तो उनके साथ आतंकियों से भी बुरा व्यवहार किया गया। इतना ही नहीं, नागपुर कोर्ट द्वारा जमानत मिलने के बावजूद उसे दोबारा महाराष्ट्र सरकार ने हिरासत में ले लिया।

उद्धव को मुख्यमंत्री बने एक साल भी नहीं हुआ है और अभी तक उद्धव सरकार के विरुद्ध बोलने पर ही 10 से ज्यादा FIR दर्ज की गयी है। जो भी शिवसेना या महा विकास अघाड़ी सरकार के विरुद्ध बयान देता है, उसे या तो हिरासत में लिया जाता है या फिर शिवसेना के गुंडों द्वारा बुरी तरह पीटा जाता है।

लेकिन अर्नब गोस्वामी के विरुद्ध सरकार तब हाथ धोके पीछे पड़ गई, जब पालघर में संतों की हत्या और अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की संदेहास्पद मृत्यु के विषय पर अर्नब ने महाराष्ट्र सरकार को आड़े हाथों लिया, और अब उन्हे 2018 में मुंबई पुलिस द्वारा बंद किये गए एक मामले के सिलसिले में हिरासत में लिया गया है।

अर्नब गोस्वामी को इस बात का बिल्कुल अंदाज़ा नहीं था कि Lutyens गिरोह की गुंडई से बचने के लिए जो मुंबई में उन्होंने अपना बेस स्थापित किया था, वो उससे भी बड़े गड्ढे में गिरने वाले थे। महाविकास अघाड़ी की तीनों पार्टियों को ऐसे किसी भी व्यक्ति या गुट से नफरत है, जो दक्षिणपंथ या राष्ट्रवाद का जरा भी समर्थन करता हो। अर्नब न केवल इस बात को खुलकर स्वीकार करते हैं, बल्कि उन्होंने ये भी दावा किया कि वे पूंजीवाद समर्थक, सेना समर्थक पर सामाजिक रूप से उदारवादी है।

अनेकों बार अर्नब ने भाजपा प्रशासित सरकारों की आलोचना की, परंतु देवेन्द्र फड़नवीस ने कभी भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन नहीं किया। लेकिन जिस प्रकार से उद्धव ठाकरे अर्नब के पीछे हाथ धोके पड़े हुए हैं, उससे स्पष्ट पता चलता है कि अर्नब दिल्ली के राजनीति और नौकरशाही का मायाजाल से पीछा छुड़ाने मुंबई आए थे, परंतु वे उससे भी बड़े जाल में फंस गए हैं।

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