आपने अब तक कई सूर्य मंदिरों के बारे में सुना होगा उन्हें देखा होगा । लेकिन बिहार के औरंगाबाद जिले के देव स्थित प्राचीन सूर्य मंदिर की बात ही अलग है । इस मंदिर को लेकर स्थानीय लोगों में इतनी आस्था है कि यहां हर वर्ष मनाए जाने वाले छठ पर्व के दौरान श्रद्धाालुओं का सैलाब उमड़ पड़ता है । कहा जाता है कि इस मंदिर को बनाने वाले स्वयं देवताओं के शिल्पकार विश्वकर्मा जी थे । जिन्होने इस मंदिर का निर्माण त्रेता युग में किया था । महज एक रात में बनकर तैयार हुए इस मंदिर की भव्यता देखते ही बनती है ।
मंदिर से जुड़ी अनोखी बात
प्राचीन सूर्य मंदिर से जुड़ी एक खास बात ये है कि ये देश का अकेला ऐसा मंदिर है जिसका दरवाजा पश्चिम की ओर खुलता है । हिंदू धर्म में भगवान को पूर्व का स्थान दिया गया है, नॉर्थ ईस्ट दिशा जिसे ईशान कोण कहते हैं काफी शुभ मानी जाती है । ऐसे में इस मंदिर को पश्चिम में खुलने वाला द्वार एक रहस्य है, इसे ऐसा क्यों बनाया गया इसके पीछे कोई कथा सामने नहीं आती ।
डेढ़ लाख साल पुराना है ये मंदिर
मंदिर के निर्माण काल के बारे में मंदिर के बाहर लगे एक शिलालेख पर ब्राह्मी लिपि में लिखित और संस्कृत में अनूदित एक श्लोक के मुताबिक, इस मंदिर का निर्माण 12 लाख 16 हजार वर्ष त्रेता युग के बीत जाने के बाद इला-पुत्र पुरुरवा ऐल ने आरंभ करवाया था । शिलालेख से पता चलता है कि इस वर्ष यानी साल 2017 में इस पौराणिक मंदिर के निर्माण काल को एक लाख पचास हजार सत्रह वर्ष पूरे हो गए हैं । इस देव मंदिर में सात रथों से सूर्य की उत्कीर्ण प्रस्तर मूर्तियां अपने तीनों रूपों उदयाचल (सुबह) सूर्य, मध्याचल (दोपहर) सूर्य और अस्ताचल (अस्त) सूर्य के रूप में विद्यमान है । पूरे देश में यही एकमात्र सूर्य मंदिर है जो पूर्वाभिमुख न होकर पश्चिमाभिमुख है । करीब एक सौ फीट ऊंचा यह सूर्य मंदिर स्थापत्य और वास्तुकला का अद्भुत उदाहरण है । यह सूर्य मंदिर ओड़िशा के पुरी स्थित जगन्नाथ मंदिर से काफी मिलता-जुलता है ।
बेहद आकर्षक मंदिर
सूर्य मंदिर को बिना किसी प्रकार के सीमेंट या चूना-गारा का प्रयोग किए अलग-अलग आकार में कटे पत्थरों को जोड़कर बनाया गया है । इसे देखने वाले इसके आकर्षक रूप को देखकर मोहित हो जाते हैं । ये मंदिर देश की अनूठी विरासत है । तभी तो हर वर्ष यहां छठ पर्व पर मेले जैसा माहौल होता है और लाखों लोग यहां मन्नत मांगने पहुंचते हैं । कार्तिक और चैत महीने में छठ करने यहां देश के कई राज्यों से श्रद्धालु पहुंचते हैं । मंदिर के पास ही एक सूर्यकुंड है जहां व्रती सूर्य को अर्घ्य देते हैं और पूजा करते हैं । मंदिर में हर दिन सुबह चार बजे भगवान को घंटी बजाकर जगाया जाता है । उसके बाद पुजारी भगवान को नहलाते हैं, ललाट पर चंदन लगाते हैं, नया वस्त्र पहनाते हैं । यह परंपरा आदि काल से चली आ रही है ।
छठ पर्व पर जुटते हैं श्रद्धाालु
4 दिन के छठ पर्व में सूर्य देव की आराधना का विशेष महत्व है । एक दिन उगते सूरज को अर्घ्य और अगले दिन डूबते सूरज को अर्घ्य दिया जाता है । निर्जला रखे जाने वाले इस व्रत को करने वाला व्यक्ति अपने परिवार के साथ सभी की सुख समृद्धि के लिए भगवान से प्रार्थना करता है । इस पर्व पर प्राचीन मंदिर में लाखों लोग दर्शन के लिए उमड़ते हैं । अपनी मनौति पूरी होने पर वो भगवान का धन्यवाद करते हैं ।
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