ओली के भारत समर्थक बनने के बाद अब चीन ने प्रचंड को बनाया अपना चाटुकार, नेपाल में सब ठीक नहीं

 

नेपाल में सत्ताधारी पार्टी टूट की कगार पर है। नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने अपनी पार्टी के सह-अध्यक्ष से अलग होने के संकेत दे दिए हैं, जिससे पार्टी में टूट के साथ ही ओली की कुर्सी भी जा सकती है। इसके बावजूद उन्होंने अलग होने के फैसले को लेकर भारत के प्रति अपनी सांकेतिक नरमी दिखाई है क्योंकि एक समय तक चीन का समर्थन करने वाले ओली अब चीन के ही सिपहसालार और अपने सहयोगी प्रचंड को आंखे दिखा रहे हैं। दूसरी ओर प्रचंड के रुख से साफ है कि चीन ने अपना हाथ केपी शर्मा ओली से हटाकर प्रचंड के सिर पर रख दिया है।

हिन्दुस्तान की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी के ही दोनों शीर्ष नेताओं के बीच फूट पड़ गई है। ओली के अलावा पार्टी में दूसरे बड़े नेता पुष्प दहल प्रचंड के खेमे के नेताओं का दावा है कि ओली ने पार्टी से अलग होने की बात कह दी है। इस मामले को लेकर पार्टी के प्रवक्ता काजी श्रेष्ठ  ने कहा, दहल ने सदस्यों को बताया कि ओली ने उनसे कहा है कि वह सेक्रेटेरिएट की बैठक नहीं बुलाएंगे और पार्टी कमेटी के फैसलों में नहीं बंधेंगे। दहल के मुताबिक केपी शर्मा ओली ने कहा है कि यदि समस्याएं हैं तो बेहतर है कि रास्ते अलग कर लिए जाएं। गौरतलब है कि पार्टी के कई बड़े नेताओं ने भी ट्विटर पर इस बात के संकेत दिये हैं कि पार्टी फिर उसी जगह आकर खड़ी हो गई है, जहां 6 महीने पहले खड़ी थी।

नेपाल जिसका पिछले लगभग 8 महीनों से भारत के साथ लिपुलेख और कालापानी के नक्शे को लेकर विवाद चल रहा था वो हाल के दिनों में इसको लेकर अपना रुख नर्म कर रहा है, और नक्शे को वापस पहले की यथास्थिति पर लाकर मामला सुलझाने की कोशिशें कर रहा है। भारतीय सेनाध्यक्ष जनरल नरवणे के दौरे को लेकर भी नेपाल तैयारियों में जुटा हुआ है । नेपाल लगभग 8 महीने बाद दोबारा भारत के साथ अपने रिश्तों को मजबूत करने की बात कर रहा है। दूसरी ओर केपी शर्मा ओली की ही पार्टी में उनके ही सह-अध्यक्ष पुष्प कमल दहल प्रचंड उनके इन कदमों से खासा नाराज दिख रहे हैं। प्रचंड अपने ही नेता की नीतियों की आलोचना में जुट गए है।

चीन का सारा खेल

नेपाल के साथ भारत के विवाद में चीन सबसे बड़ी वजह रहा है। किसी से भी ये बात छिपी नहीं हैं कि किस तरह प्रचंड के नाराज होने पर 5 महीने पहले नेपाल में चीनी राजदूत हू यांकी ने केपी शर्मा ओली की सरकार बचाने के लिए अपने सारे पैंतरे आजमाए थे। नेपाल का विरोध जितना ज्यादा भारत के साथ बढ़ रहा था चीन उतना ही ओली को समर्थन दे रहा था, लेकिन नेपाल को जब चीन से कोई भी फायदा होता नहीं दिखा तो उसने भारत के साथ जाना ही ठीक समझा।

इस पूरे वाक्ये के बाद चीन की पीएलए, नेपाल के कुछ इलाकों पर कब्जा करते हुए उन पर अपना दावा ठोंकने लगी और ये नेपाल के लिए एक बड़ा झटका था। नेपाल अब भारत के साथ अपने रिश्तों को बेहतर करते हुए दबी जुबान में भारत से मदद भी चाहता है। चीन को ये बिल्कुल भी रास नहीं आ रहा है कि ओली का समर्थन करने के बावजूद नेपाल के भारत के साथ रिश्ते खराब नहीं हो रहे हैं। ऐसे में चीन ने अब ओली के ही सहयोगी को अपना नया मोहरा बना लिया है और वो लगातार देश में भारत विरोधी बयान दे रहे हैं।

ओली को पता चल चुका है कि भारत के विरोध में जाना उसके लिए आर्थिक समेत सभी स्तरों पर नुकसानदायक ही होगा और इसीलिए वो भारत के प्रति समर्थन दिखाकर पार्टी तक तोड़ने को राज़ी हो गए हैं। दूसरी ओर प्रचंड के रुख देखकर साफ जाहिर है कि वो चीन की शह पर ही केपी शर्मा ओली का विरोध कर रहे हैं। चीन का पूरा एजेंडा ही इसी बात का है कि वो भारत के पड़ोसी देशों के साथ अपने रिश्ते मजबूत करे, ऐसे में जब ओली से उसकी दाल नहीं गली तो वो प्रचंड का इस्तेमाल कर रहा है।

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