सीहोर जिले के ग्राम धबोटी में दीपावली के एक दिन बाद पौधा उखाडऩे की प्रथा आज भी बेहद ही रहस्यमयी है। इसके रहस्य इतिहास के गर्त में छिपे हुये है, लेकिन आज भी करीब एक दर्जन से अधिक गांवों के लोग हजारों की संख्या में इस प्रथा के साक्षी बनते है और यहां पर स्थित खुटियादेव की आस्था और उत्साह के साथ पूजा अर्चना करते है, लेकिन इस साल कोरोना संक्रमण काल के कारण मेले का आयोजन नहीं किया गया था, लेकिन श्रद्धालुओं पर आस्था का सैलाब था।
इस संबंध में जानकारी देते हुए ग्राम धबोटी के उपसरपंच ईश्वर सिंह ठाकुर ने बताया कि पौधा उखाडऩे की प्रथा 100 सालों से अधिक समय से चली आ रही है, लेकिन अभी तक किसी ने भी इस दुर्लभ पौधे को नहीं उखड़ सका है। उन्होंने बताया कि गांव का चौकीदार पटेल जगदीश प्रसाद के मार्गदर्शन में विशेष पूजा अर्चना के साथ ग्राम में स्थित खुटियादेव के मंदिर परिसर में पुवाडिया का दो फिट का पौधा जमीन के चार इंच के करीब गढ़ता है और उसके बाद सुबह यहां पर आने वाले श्रद्धालु खुटियादेव के दर्शन करने के पश्चात उखाडऩे का प्रयास करते है, लेकिन यह चार इंच जमीन में गढ़ा हुआ पौधा चार-पांच लोगों के अथक प्रयास के बाद भी जमीन से ठस से मस नहीं होता। एक तरफ तो देश चांद पर जाने की कोशिश कर रहा है, लेकिन ग्राम धबोटी में हर साल इस तरह की दिव्य प्रथा होती है।
अद्भूत घटना में करीब 15 हजार से अधिक श्रद्धालु हर साल साक्षी के रूप में मौजूद रहते है
ग्राम के सरपंच देव सिंह और उप सरपंच ईश्वर सिंह ने बताया कि हमारे बुजुर्गों से मिली जानकारी के अनुसार दिवाली के दूसरे दिन ग्राम धबोटी में छोटा बारहखंबा से नाम से इस प्रसिद्ध मेले और पौधा उखाडऩे की इस अद्भूत घटना में करीब 15 हजार से अधिक श्रद्धालु हर साल साक्षी के रूप में मौजूद रहते है, लेकिन इस साल कोरोना संकट काल के कारण मेले में संख्या कम थी। जिसमें ग्राम धबोटी, धामनखेड़ा, शिकारपुर, काहरी, बामूलिया, बडनग़र, कांकडख़ेड़ा, भाउखेडी, आमझिर, मोगरा, हसनाबाद, जहागीरपुरा, नयापुर और आल्हदाखेड़ी आदि के बड़ी संख्या में ग्रामीण और क्षेत्रवासी श्रद्धा और विश्वास के साथ उपस्थित होते है।
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