नई दिल्ली। एससी/एसटी (SC / ST) कानून को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा देते हुए कहा घर के भीतर बिना किसी गवाह के अनुपस्थिति में की गयी कोई भी टिप्पणी अपमानजनक अपराध के दायरे ने नहीं आती। कोर्ट का कहना है कि एससी/एसटी (SC / ST) कानून के तहत कोई अपमानजनक टिप्पणी तब अपराध के दायरे में मानी जाएगी, जब किसी कमजोर वर्ग के सदस्य को सार्वजनिक तौर पर अपमानित किया गया हो यह फिर उनका उत्पीड़न और अपमानजनक टिप्पणी की गयी हो। इस फैसले के दौरान कोर्ट ने एक व्यक्ति के खिलाफ इस कानून के तहत लगाये गये उस आरोप को रद्द करदिया जिसमें एक महिला ने उस पर घर के भीतर गाली देने का आरोप लगाया था। मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव, न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी की पीठ ने की।
इस दौरान तीन जजों की पीठ ने कहा- ‘तथ्यों के मद्देनजर हम पाते हैं कि अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) कानून, 1989 की धारा 3 (1) (आर) के तहत अपीलकर्ता के खिलाफ आरोप नहीं बनते हैं। इसलिए आरोपपत्र को रद्द किया जाता है। इसके साथ ही न्यायालय ने अपील का निपटारा कर दिया। कोर्ट का कहना है कि किसी व्यक्ति के खिलाफ कोई भी अपमानजनक टिप्पणी और य धमकी को अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जन जाति (SC / ST) कानून के तहत तब तक अपराध नहीं माना जायेगा जब तक की वह किसी सार्वजनिक स्थान या फिर और लोगों के सामने न किया गया हो। उक्त केस की सुनवाई करते हुए पीठ ने कहा हितेश वर्मा के खिलाफ दर्ज अन्य अपराधों की सुनवाई उनके खिलाफ दर्ज मुकदमे के आधार पर अन्य सक्षम अदालतों में होगी।
घर के भीतर गाली देने का महिला ने लगाया था आरोप
पीठ ने अपने 2008 के फैसले पर भरोसा किया और कहा कि इस अदालत ने सार्वजनिक स्थान और आम लोगों के सामने किसी भी स्थान पर अभिव्यक्ति के बीच अंतर को स्पष्ट किया था। केस की सुनवाई करते हुए पीठ ने कहा यदि अपमान घर के बाहर,लान में या फिर अन्य सार्वजनिक स्थान पर किया जाता तो यह निश्चय ही अपराध की श्रेणी में आता। पीठ ने कहा प्राथमिकी के अनुसार-महिला को गाली देने का आरोप घर के भीतर है और उस समय कोई बाहरी व्यक्ति (दोस्त या रिश्तेदार नहीं) वहां मौजूद नहीं था। ऐसे में इसे एससी/एसटी कानून के तहत अपराध नहीं माना जाएगा।
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