‘यह छूआछूत को बढ़ावा देता है’, अमिताभ बच्चन पर मनुस्मृति की गलत व्याख्या को लेकर दर्ज हुआ मुकदमा

 


कभी जिस कौन बनेगा करोड़पति ने सदी के महानायक अमिताभ बच्चन के डूबते हुए करियर की नैया को पार लगाया, अब वही कौन बनेगा करोड़पति उनके करियर को फिर से डुबोने की ओर अग्रसर है। कौन बनेगा करोड़पति और अमिताभ बच्चन के विरुद्ध सनातन संस्कृति का अपमान करने के लिए FIR दर्ज की गई है।

सूत्रों के अनुसार, “कौन बनेगा करोड़पति (KBC) और इसके मेजबान अमिताभ बच्चन के खिलाफ लखनऊ में एक प्राथमिकी (FIR) भी दर्ज की गई है। बताते चले कि इस एपिसोड में सामाजिक कार्यकर्ता बेजवाड़ा विल्सन (Bezwada Wilson) और अभिनेता अनूप सोनी अतिथि के रूप में आए थे।”

आपको बताते चले कि बेजवाड़ा विल्सन को हमेशा से ही एक खास विचारधारा के प्रति समर्पण के लिए जाना जाता है। भारत के वामपंथी ब्रिगेड के चहेते विल्सन कई मौको पर भारतीय संस्कृति का अपमान करते और उसका मज़ाक उड़ाते देखे गए हैं। हो सकता है कि अपने इसी अतिथि को खुश करने के लिए केबीसी ने भारतीय सनातन संस्कृति का अपमान करने कि हिमाकत भी कर दी।

परंतु ऐसा भी क्या सवाल पूछा गया, जिसके कारण अमिताभ बच्चन को सोशल मीडिया पर इतनी आलोचना का सामना करना पड़ा है? दरअसल, बेजवाड़ा विल्सन और अनूप सोनी के साथ शूट किए गए विशेष एपिसोड में अमिताभ बच्चन ने ये सवाल पूछा –

“25 दिसंबर 1927 को डॉ. बी. आर. आंबेडकर और उनके अनुयायियों ने किस धर्मग्रंथ की प्रतियां जलाई थीं?”

इसके लिए चार विकल्प दिए गए –
A) विष्णु पुराण
B) भगवत गीता
C) ऋग्वेद
D) मनु स्मृति

उनके अनुसार इसका उत्तर था मनुस्मृति, जिसके बारे में विस्तार से बताते हुए अमिताभ बच्चन ने कहा, “1927 में डॉ. बी. आर अंबेडकर ने जातिगत भेदभाव और छुआछूत को वैचारिक रूप से सही ठहराने के लिए प्राचीन हिंदू ग्रंथ ‘मनु स्मृति’ की निंदा की थी और उन्होंने इसकी प्रतियां जला दी थीं।”

इस बात पर जनता उबल पड़ी, और उन्होंने सोशल मीडिया पर केबीसी और अमिताभ बच्चन के प्रति अपना क्रोध प्रकट किया। हालांकि यह पहली बार नहीं है जब अमिताभ बच्चन और केबीसी ऐसे विवादों के घेरे में आए हों।

पिछले दो वर्षों से कौन बनेगा करोड़पति ऐसे ऊटपटाँग सवालों के कारण न केवल विवादों के घेरे में है, बल्कि धीरे धीरे अपनी पुरानी लोकप्रियता भी खोता जा रहा है। पिछले वर्ष केबीसी तब विवादों के घेरे में आया जब एक प्रश्न में JNU में देशद्रोही नारे लगवाने के आरोपी और अलगाववाद समर्थक कन्हैया कुमार को युवा नेता कहकर संबोधित किया गया। लेकिन हद तो तब हो गई, जब ये सामने आया कि केबीसी के एक सवाल में मुगल आक्रांता और बर्बर शासक औरंगजेब को ‘मुगल बादशाह’ औरंगज़ेब और उसे दिन में तारे दिखाने वाले महानायक एवं हिंदवी साम्राज्य के जनक, छत्रपति शिवाजी महाराज को महज शिवाजी कहकर संबोधित किया गया।

इसके पीछे सोशल मीडिया पर बहुत बवाल मचा, और फलस्वरूप केबीसी के प्रबंधन और अमिताभ बच्चन को सार्वजनिक तौर पर माफी माँगनी पड़ी। लेकिन मनुस्मृति वाले विवाद को देखते हुए ऐसा नहीं लगता कि कोई सीख ली गई है।

वैसे भी अमिताभ बच्चन ने जिस मनुस्मृति की बात की है, वह संभवत कोई मार्क्सवादी अनुवाद होगा, क्योंकि मूल मनुस्मृति में जातिगत भेदभाव की बात तो छोड़िए, छुआछूत की बात तो दूर दूर तक नहीं की गई है। मूल मनुस्मृति ऋषि मनु द्वारा एक आदर्श समाज के लिए आवश्यक नियमावली का रचना स्वरूप है, जिसका भेदभाव या कट्टरता से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं है। लेकिन सनातन धर्म से घृणा करने वाले वामपंथी बुद्धिजीवियों ने दशकों से इस झूठ को बढ़ा चढ़ाकर फैलाने का काम किया है, जिसके बारे में लेखक राजीव मल्होत्रा ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘ब्रेकिंग इंडिया’ में भी उल्लेख किया है।

पिछले कुछ महीनों से अमिताभ बच्चन ने जैसे-जैसे काम किए हैं, उससे लगता है कि वे जानबूझकर अपनी छवि को धूमिल करना चाहते हैं। सही ही कहा है किसी ने, ‘विनाश काले विपरीते बुद्धि’।

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