कभी हार न मानने की कला – अन्य राज्य के विपक्षी नेताओं को देवेन्द्र फडणवीस से ये कला सीखना चाहिए

 


महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस अब एक ऐसे नेता के तौर उभर कर सामने आ रहे , जो लोगों को अपने उदाहरण से समझा रहे हैं कि विपक्ष के नेता को कैसा होना चाहिए। देवेन्द्र फडणवीस ने फर्श से अर्श तक का सफर तय किया है और वे भली भांति जानते हैं कि कैसे सत्ताधारी पार्टी की पोल खोलनी है। फडणवीस ने पिछले एक वर्ष में अपने आप को एक ऐसे नेता के तौर पर तैयार किया है, जो कभी हार नहीं मानता।

चाहे वह उद्धव ठाकरे द्वारा राज्य में वुहान वायरस की बीमारी से जूझने में असफलता पर घेरना हो, या फिर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन करने के लिए उद्धव सरकार को आड़े हाथों लेना हो, देवेन्द्र फडणवीस ने एक कुशल विपक्षी नेता की सभी ज़िम्मेदारियाँ बखूबी निभाई है। लेकिन जिस प्रकार से मुंबई मेट्रो के निर्माण के विषय पे देवेन्द्र फडणवीस ने महाराष्ट्र के वर्तमान प्रशासन की कलई खोली है, उससे स्पष्ट पता चलता है कि उन्होंने अभी भी हार नहीं मानी है।

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार फडणवीस का मानना है कि मेट्रो के तीसरे लाइन की कार शेड का निर्माण कंजूरमार्ग केवल शिवसेना को प्रसन्न करने के लिए शिफ्ट किया गया है, जिससे न सिर्फ प्रोजेक्ट लंबित होगा बल्कि निर्माण में 4000 करोड़ का अतिरिक्त निवेश भी होगा। उनके अनुसार, “मैंने नौ महीनों के लिए आरे प्रोजेक्ट पर रोक लगाई थी, ताकि मैं देख सकूँ कि कोई वैकल्पिक सुविधा है क्या। लेकिन जब ऐसा नहीं हुआ तो मुझे आरे प्रोजेक्ट को स्वीकृति देनी पड़ी”।

लेकिन देवेन्द्र फडणवीस केवल वहीं पर नहीं रुके। उन्होंने मौसमी एक्टिविस्टों और महा विकास अघाड़ी के दोगलेपन की पोल खोलते हुए बताया कि कैसे ठाकरे सरकार ने अपने ही कमेटी की रिपोर्ट को खारिज करते हुए मेट्रो प्रोजेक्ट को आरे से बाहर शिफ्ट कराया। फडणवीस के अनुसार, “मनोज सौनिक के नेतृत्व वाली कमेटी की रिपोर्ट तक को ठाकरे सरकार ने स्वीकार नहीं किया। उनके सुझावों को पूरी तरह से नज़रअंदाज करते हुए इस परियोजन को कंजूरमार्ग शिफ्ट किया गया”।

इसके अलावा फडणवीस ने बताया कि कंजूरमार्ग में प्रोजेक्ट शिफ्ट करने से किस प्रकार से ठाकरे सरकार और मौसमी पर्यावरण एक्टिविस्टों की उम्मीदों के विपरीत पर्यावरण को नुकसान पहुंचाएगा। उनके अनुसार, “जब हमने साल्ट पैन भूमि पर गरीबों के लिए उचित घरों की व्यवस्था करने की बात की, तो शिवसेना ने पर्यावरण का हवाला देते हुए उसे मना कर दिया। अब इसी प्रकार के प्रोजेक्ट को वे कैसे मंजूरी दे सकते हैं। यदि इन लोगों ने बुलेट ट्रेन परियोजना को न रोका होता, तो 50000 करोड़ का यह निवेश राज्य के जीडीपी के बड़े काम आती।”

सच कहें तो देवेन्द्र फडणवीस वो नेता हैं जिनकी जनसेवा के प्रति प्रतिबद्धता सत्ता के साथ नहीं बदलती। जिस प्रकार से उन्होंने बिहार में एनडीए को अप्रत्याशित विजय दिलाने में एक यहां भूमिका निभाई है, वो इसी बात का परिचायक है। जिस प्रकार से सत्ताधारी महा विकास अघाड़ी महाराष्ट्र में अपनी निरंकुशता दिखा रही है, उससे भिड़ना कोई आसान काम नहीं है, लेकिन देवेन्द्र फडणवीस ने ये काम बखूबी किया है, और उन्होंने सिद्ध किया कि इस समय महाराष्ट्र को ही नहीं, बल्कि भारत को भी ऐसे प्रतिबद्ध नेताओं की सख्त आवश्यकता है।

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