जानें, कौन हैं एमके अलागिरी? तमिलनाडु में कमल खिलाने के लिए अमित शाह को है बस इन पर ही भरोसा

 

जानें, कौन हैं एमके अलागिरी? तमिलनाडु में कमल खिलाने के लिए अमित शाह को है बस इन पर ही भरोसा

तमिलनाडु में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं, जिसे लेकर राजनीतिक जमीन बनाने की तैयारियां शुरू हो गई हैं । लेकिन यहां राजनीति नए रंग लेती नजर आ रही है । करुणानिधि के बेटे एमके अलागिरी को लेकर खबर आ रही है कि, वो अपनी अलग पार्टी बनाने वाले हैं । खबर है कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी आज चेन्‍नई में हैं । यहां शाह की रजनीकांत से मुलाकात होनी है जिसके बाद उनके अलागिरी से मिलने की चर्चा जोरों पर है । बहुत संभावतना जताई जा रही है कि बीजेपी और अलागिरी की पार्टी में गठबंधन हो सकता है। कौन हैं अलागिरी और वो डीएमके को कितनी चोट पहुंचा सकते हैं, आगे जानते हैं ।

अलागिरी, कौन हैं और क्‍या है स्‍टालिन से झगड़ा ?
अलागिरी तमिलनाडु के पूर्व मुख्‍यमंत्री और DMK  सुप्रीमो रहे करुणानिधि की दूसरी पत्‍नी दयालु अम्‍मल के बेटे हैं । अलागिरी, तमिलनाडु में कैबिनेट मंत्री भी रह चुके हैं। 2009 में वो मदुरई से लोकसभा चुनाव जीतकर संसद पहुंचे थे । लेकिन करुणानिधि की प्राथमिकता हमेशा से स्‍टालिन ही रहे हैं, जिसकी वजह से अलागिरी की नाराजगी बढ़ती रही। साल 2014 में करुणानिधि ने अलागिरी को पार्टी से बाहर कर दिया गया था । वहीं 2018 में जब करुणानिधि का निधन हुआ, तो अलागिरी ने ये तक कह दिया कि स्‍टालिन के नेतृत्‍व में पार्टी बर्बाद हो जाएगी।

स्‍टालिन और अलागिरी में टकराव की वजह
करुणानिधि तमिलनाड़ के शीर्ष नेता रहे हैं, उनकी राजनीति का उत्‍तराधिकार बेटे स्‍टालिन को मिला है । स्टालिन अपने पिता के साथ ही रहते थे, इसलिए वो शुरू से ही पार्टी का काम देख रहे थे । जबकि अलागिरी ज्यादातर समय मदुरै में गुजारते हैं। दोनों भाईयों के बीच, करुणानिधि के जीवित रहते ही लड़ाई झगड़े बढ़ गए थे । समझौते की कोशिश नाकाम रहने के बाद आखिरकार 2014 में अलागिरी को बाहर का रास्‍ता दिखा दिया गया।

परिवार में फूट का नतीजा चुनाव में मिला
करुणानिधि परिवार में टकराव के कारण 2016 के चुनाव में AIADMK को 134 सीटें मिलीं, जबकि डीएमके को सिर्फ 89 सीटें । डीएमके की हार के पीछे दोनों भाइयों में दरार को वजह माना गया। द इंडियन एक्‍सप्रेस के सूत्रों के हवाले से कहा जा रहा है कि अलागिरी मदुरई में अपने समर्थकों के बीच नई पार्टी का ऐलान कर सकते हैं । उनकी पार्टी का नाम ‘कलैगनार डीएमके’ हो सकता है। डीएमके को इसकी भनक है, लेकिन वो बेफिक्र है । डीएमके के एक नेता के हवाले से कहा गया है कि अलागिरी छह साल से राजनीति में कहीं नहीं हैं, उनके पास न सीट नहीं है, कोई समर्थक नहीं हैं, न ही पैसा है।

तमिलनाडु में पैर जमाने का मौका
वहीं बीजेपी, 2014 के बाद से ही देश भर में राजनीति मजबूत कर रही है । दक्षिण भारत में पार्टी अभी मजबूत नहीं है । ऐसे में अलागिरी, बीजेपी के मददगार साबित हो सकते हैं । बीजेपी ने कांग्रेस की खुशबू सुंदर को पहले ही अपने पाले में कर लिया है। अब नजरें एमके अलागिरी पर हैं। खबर है कि गठबंधन को लेकर दोनों के बीच बातचीत भी चल रही है। अगर अलागिरी के साथ समीकरण फिट बैठते हैं तो दोनों एक साथ चुनाव मैदान में उतर सकते हैं।

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