अब रूस बनाएगा सूडान के तट पर नौसैनिक अड्डा, अफ्रीका में चीन को सीधी चुनौती

 


एक समय में अफ्रीका के कई देशों में पैठ रखने वाला चीन आज लगभग सभी देशों से बाहर किया जा रहा है। सबसे नए मामले में अब सूडान भी उसके हाथ से निकल चुका है। पहले अमेरिका ने सूडान से अपने रिश्तों को सुधारते हुए उसकी इजरायल से पुनः दोस्ती कराई और अब एक नयी खबर में रूस सूडान के साथ एक ऐसा समझौता करने जा रहा है जो रूस को लाल सागर में सूडान के तट पर नौसैनिक लॉजिस्टिक्स बेस स्थापित करने की अनुमति देगा। इस समझौते के बाद सूडान की भगौलिक स्थिति देखते हुए रूस को चीन पर एक बेहद महत्वपूर्ण रणनीतिक बढ़त मिल जाएगी।

दरअसल, Middle East Monitor की रिपोर्ट के अनुसार, मास्को ने बुधवार को खार्तूम के साथ एक समझौते का खुलासा किया है जिसके बाद रूस लाल सागर में सूडान के तट पर नौसैनिक लॉजिस्टिक्स बेस स्थापित कर सकेगा।

प्रस्तावित नौसैनिक अड्डा 300 सैनिकों और कर्मचारियों  के लिए होगा। यही नहीं, रूस 4 जहाजों को सूडान के बेस पर रख सकेगा तथा ये सभी जहाज “परमाणु और पर्यावरणीय सुरक्षा आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए” सभी उपकरणों से लैस होंगे।

रूसी प्रधानमंत्री Mikhail Mishustin ने पिछले शुक्रवार को एक आधिकारिक बयान में घोषणा की कि सूडान के साथ शुरू किए गए इस समझौते को रूसी राष्ट्रपति को प्रस्तुत किया जाएगा।

बयान में बताया गया है कि सूडान अपने क्षेत्र पर एक नौसैनिक रसद बेस की स्थापना को मंजूरी देते हुए रूसी युद्धपोतों को मेंटेन और सप्लाइ करने में भी मदद करने के लिए राजी हुआ है जिसके लिए वह अपने देश की बुनियादी ढांचे का विकास और आधुनिकीकरण करेगा।

इसके बदले में रूस ने प्रस्तावित बेस के लिए एयर डिफेंस सिस्टम लगाने के उद्देश्य से सूडान को मुफ्त में हथियार और सैन्य उपकरण देने की इच्छा व्यक्त की। यानि देखा जाए तो यह परियोजना दोनों देशों की रक्षा क्षमता को बढ़ाने के लिए तथा सैन्य सहयोग को मजबूत करने के लिए किया जा रहा है।

बता दें कि सूडान 1996 तक ओसामा बिन लादेन जैसे आतंकवादियों को भी अपने देश में आमंत्रित कर चुका है जिसके बाद अमेरिका ने सूडान को ईरान, उत्तर कोरिया और सीरिया के साथ वर्ष 1993 में ब्लैक लिस्ट में डाल दिया गया था। अल-बशीर के शासन में सूडान पर इज़राइल के खिलाफ युद्ध में कट्टरपंथी इस्लामी ताकतों का समर्थन करने का आरोप लगाया गया था।

अमेरिका के प्रतिबंधों से सूडान की अर्थव्यवस्था दम घोटने लगी और एक अनुमान के मुताबिक प्रतिबंधों के कारण उसे 45 बिलियन का नुकसान हुआ था। उसके बाद चीन ने मौका देख सूडान में अपने पाँव जमाये और उसकी मदद पर मदद कर उसे अपने ऋण जाल में फंसा चुका था। सूडान अपने एक्सपोर्ट को लेकर इंफ्रास्ट्रक्चर तक के लिए चीन पर निर्भर हो चुका था।

कम ब्याज वाले ऋण और तेल के बदले में हथियार दे कर चीन ने सूडान को पूरी तरह से अपने कब्जे में कर लिया था। Merowe hydroelectric dam बनाना हो या al-Rosairis Reservoir में निवेश हो, चीन के एक भी ऐसा क्षेत्र नहीं छोड़ा जहां से सूडान निर्भर न हो।

हालांकि, बदलते सरकार के साथ अब इन दोनों देशों के साथ सूडान के रिश्ते भी सुधर रहे हैं। अमेरिका ने 2017 में सूडान पर लगे प्रतिबंध तो हटा लिया था लेकिन उसे आतंकी देशों की लिस्ट से नहीं हटाया था। अब अमेरिका और इजरायल दोनों सूडान से संबंध बेहतर हो रहे हैं और अमेरिकी कंपनियों के निवेश के रास्ते भी खुल रहे हैं। एक तरफ अमेरिका के विदेश मंत्री ने पिछले महीने इस देश की यात्रा की थी तो वहीं इजरायल भी इनके साथ शांति समझौता कर चुका है। अब रूस सूडान में अपना नौसैनिक बेस बनाने जा रहा है। अगर सूडान के अमेरिका के साथ संबंध और बेहतर होते हैं तथा रूस का भी प्रभाव बढ्ने से चीनी प्रभुत्व कम होता है तो यह यह सूडान की जनता के लिए सोने पर सुहागा होगा।

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