पहले निर्भया, फिर पठानकोट और अब अर्नब वाले मामले के बाद यह साफ है कि सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय बस निंदा कर सकता है

 


इतिहास साक्षी है कि जब भी सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय से कुछ कड़े निर्णयों की उम्मीद की गई है, तो उसने हमेशा निराश किया है, और अर्नब गोस्वामी के परिप्रेक्ष्य में भी यही हुआ। नेतृत्व चाहे कोई करे, परंतु जब राष्ट्रहित के रक्षा की बात आती है, तो इस मंत्रालय का रिकॉर्ड अधिकतर समय निराशाजनक ही रहा है। दो वर्ष पुराने मामले में जिस प्रकार से कोर्ट के मानकों तक की धज्जियां उड़ाकर अर्नब गोस्वामी को पकड़ा गया है, उसमें सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की यही कमजोरी एक बार फिर उभरकर सामने आई है।

अर्नब की गिरफ़्तारी के पश्चात जब सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने अपने ट्विटर अकाउंट से इस घटना की निन्दा की, तो सोशल मीडिया पर कोई भी इस बात से प्रभावित नहीं हुआ। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय सरकार का आधिकारिक निन्दा पत्र नहीं बन सकता। उन्हें इस बात को सुनिश्चित करना चाहिए कि केन्द्र सरकार ऐसे निर्णय ले, ताकि जो अर्नब गोस्वामी के साथ आज हुआ है, वो फिर किसी के साथ न हो, और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हो या प्रेस की स्वतंत्रता, उसे यूं ही कोई भी न कुचल सके –

लेकिन यह पहला ऐसा मामला नहीं है, बल्कि ऐसे मामले में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने पहले भी कई बार अपनी भद्द पिटवाई है। उदाहरण के लिए पठानकोट के आतंकी हमले को ही देख लीजिए। इस हमले में स्पष्ट दिखाई दे रहा था कि कैसे एनडीटीवी इंडिया चैनल अपने कवरेज से आतंकियों को खुफिया जानकारी मुहैया करा रहा था। ऐसे में जब सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने इस काम के पीछे एनडीटीवी के प्रसारण पर एक दिन का प्रतिबंध लगाया, तो ऐसा लगा मानो सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने आखिरकार अपनी प्रतिबद्धता सिद्ध की है, और वह कोई कागजी शेर नहीं है। लेकिन वामपंथियों द्वारा मचाए गए हो हल्ला के दबाव में मंत्रालय ने इस साहसी निर्णय को भी अनिश्चितकाल के लिए रोक दिया।

इतना ही नहीं, जब निर्भया पर बनी विवादित डाक्यूमेंट्री के प्रसारण को भारत में रोका गया, तब भी कई न्यूज चैनल इसे प्रसारित कर रहे थे, ताकि भारत बदनाम हो। परंतु तब भी एक एड्वाइज़री जारी करने के अलावा सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने कोई खास काम नहीं किया। यदि गृह मंत्रालय ने सक्रियता नहीं दिखाई होती, तो न जाने वामपंथी किस हद तक इस डाक्यूमेंट्री के जरिए झूठ फैलाते।

ऐसे में सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर से केवल ‘कड़ी निन्दा’ लोगों को पचा नहीं, और उन्होंने इस लापरवाह रवैये के लिए उनकी जमकर सोशल मीडिया पर आलोचना की –

इस समय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के लिए श्रेयस्कर यही होगा कि वे अपनी कार्यशैली में यहां बदलाव करे। केवल असंवैधानिक निर्णयों की ‘कड़ी निन्दा’ और आपातकाल से तुलना करने से काम नहीं चलेगा। इस समय जो अर्नब गोस्वामी के साथ हो रहा है, वो केवल निरंकुशता की पराकाष्ठा ही नहीं है, वह इस बात का भी सूचक है कि अपनी सत्ता बचाने के लिए कुछ भ्रष्ट लोग किस हद तक जा सकते हैं। यदि इस समय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय नहीं चेती, तो एक दिन ऐसा भी होगा जब महाराष्ट्र की सत्ता संभालने वाले लोग केन्द्र तक भी पहुँच जाएंगे और प्रकाश जावड़ेकर कड़ी निन्दा ही करते रह जाएंगे।

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