भारत के कारण फाइजर की मडोर्ना वैक्सीन से भी बेहतर साबित हो रही है ऑक्सफोर्ड की वैक्सीन

 


वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के रोकथाम को लेकर अभी भी पूरे विश्व की स्थिति लगभग एक जैसी ही है, सभी को इंतजार है तो बस कोरोना की वैक्सीन का। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी देश के सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों से वैक्सीन के संग्रहण को लेकर चर्चा भी कर चुके हैं लेकिन भारत के लिए सबसे बड़ा सवाल यही है कि उसे कौन की वैक्सीन मिलेगी। जबकि खबरों के मुताबिक आज की स्थिति में जिस वैक्सीन को सबसे ज्यादा कारगर माना जा रहा है वो कोई और नहीं ऑक्सफोर्ड द्वारा बनाई गई वैक्सीन एस्ट्रोजैनिका ही है, और अच्छी बात ये है कि भारतीय कंपनी सीरम ने इसके प्रोडक्शन का कॉन्ट्रैक्ट पहले ही ले रखा है।

दुनियाभर में कोरोना वायरस की वैक्सीन को लेकर रिसर्च की जा रही हैं और लोगों पर इसके ट्रायल किए जा रहे हैं। अमेरिकी कंपनी फाइजर की मडोर्ना वैक्सीन और ब्रिटेन के ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के रिसर्च विभाग में बनी वैक्सीन एस्ट्रोजैनिका को काफी असरदार माना जा रहा है, लेकिन इन दोनों में भी काफ़ी भिन्नता है जिसके चलते सबसे बेहतरीन वैक्सीन एस्ट्रोजैनिका ही साबित होती है और तथ्य भी ये बात सिद्ध करते हैं।

ऑक्सफोर्ड की वैक्सीन के विश्लेषण में पाया गया कि पहली बार में जिन लोगों को वैक्सीन के दो फुल डोज दिए गए, उन पर इसका असर 60 प्रतिशत तक रहा, जबकि जिन लोगों को पहली बार में कम मात्रा में वैक्सीन की खुराक देने के बाद जब कुछ समय के अंतराल में दोबारा वैक्सीन का फुल डोज दिया गया तो वो वैक्सीन 90 से 95 प्रतिशत तक कारगर साबित हुई, जो कि सबसे सकारात्मक परिणाम है। दूसरी ओर अमेरिकी वैक्सीन मडोर्ना की वैक्सीन के डोज की मांग  ज्यादा है।

इसके साथ ही ये भी सामने आया है कि ऑक्सफोर्ड की वैक्सीन को किसी भी उम्र के मरीज को प्राथमिक उपचार के दौरान दी जा सकती है और ये मरीज पर बेहद असरदार साबित होती है। इस बिन्दु पर ऑक्सफोर्ड की वैक्सीन एस्ट्रोजैनिका अमेरिकी मडोर्ना को पीछे छोड़ देती है। असर के अलावा एस्ट्रोजैनिका का संग्रहण साधारण रेफ्रिजरेटर के तापमान पर किया जा सकता है जबकि फाइजर की वैक्सीन को -20 से -30 सेल्सियस के तापमान पर रखना पड़ता है। ऐसे में वैक्सीन के संग्रहण में ऑक्सफोर्ड की वैक्सीन सहज है।

ऑक्सफोर्ड की वैक्सीन की संग्रहण सहजता के चलते इसे इस्तेमाल में लाना आसान है। इसके अलावा इसका खर्च भी अमेरिकी मडोर्ना वैक्सीन से कम है। एस्ट्रोजैनिका के एक डोज की कीमत करीब 2.5 डॉलर है जबकि फाइजर की मडोर्ना की कीमत 20-25 डॉलर है। ऐसे में आर्थिक के साथ ही कोरोना वायरस पर असरदार होने के कारण भारत के लिए एस्ट्रोजैनिका मडोर्ना से ज्यादा बेहतरीन विकल्प साबित होती है और भारत के लिए इसकी उपलब्धता भी आसान होगी जो कि सबसे अहम है।

भारत में कोरोना की वैक्सीन की उपलब्धता को लेकर भारतीय कंपनी सीरम इंस्टीट्यूट के प्रमुख अडार पूनावाला की दूरदर्शिता बेहद ही अहम साबित होगी, क्योंकि सीरम ने एस्ट्रोजैनिका के प्रोडक्शन का कॉन्ट्रैक्ट पहले ही ऑक्सफोर्ड के साथ कर लिया था। कंपनी ने ऐलान कर दिया था कि एक तरफ वैक्सीन के ट्रायल चलेंगे तो दूसरी ओर इसके प्रोडक्शन को शुरू कर दिया जाएगा।

एस्ट्रोजैनिका दुनिया की अभी तक की सबसे बेहतरीन, असरदार और सस्ती वैक्सीन साबित हुई है। ऐसी स्थिति में इसके सभी ट्रायल पूरे होने तक सीरम इसके 30-40 करोड़ डोज बना चुका होगा, जो कि भारत के लिहाज से सबसे अहम होगी और इस शीघ्रता का पूरा श्रेय भारतीय कंपनी को ही जाएगा।

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