आखिर क्यों बीजेपी के लिए सुशील मोदी को दरकिनार करना जरूरी हो गया था


बिहार चुनाव परिणाम घोषित हुए लगभग एक हफ्ता हो गया है और जीत का ताज NDA के सिर पर सज चुका है लेकिन बिहार में राजनीतिक हलचल अब भी जारी है। अब सबकी निगाहें इसी ओर टिकी हुई हैं कि राज्य मंत्रिमंडल में कौन-कौन शामिल होगा l अभी तक अटकलें लगाई जा रही हैं कि, नीतीश कुमार का चौथी बार मुख्यमंत्री बनना लगभग तय है। हालांकि, बीजेपी साथ ही साथ नीतीश युग के बाद की तैयारी भी कर रही है और इस दिशा में एक बड़ा कदम नीतीश कुमार के भरोसेमंद साथी सुशील कुमार बिहार की सत्ता से दूर करके उठाया गया है।

रविवार को, बीजेपी ने सुशील मोदी को उप-मुख्यमंत्री का पद नहीं दिया। उनकी जगह कटिहार के विधायक तारकिशोर प्रसाद को उप-मुख्यमंत्री पद के लिए। रेणु देवी, जिन्हें EBC के महिला चेहरे के रूप में देखा जाता है और बेतिया से तीन बार विधायक रह चुकी हैं, उन्हें दूसरा उप मुख्यमंत्री बनाया गया है।

इसके बाद सुशील मोदी ने ट्विटर पर कहा कि “एक पार्टी कार्यकर्ता के रूप में कोई भी मेरा पद नहीं छीन सकता।”

TFI ने पहले भी अपने एक लेख में कहा था कि “अगर बीजेपी बिहार जीतना चाहती है, तो उसे सुशील मोदी को बर्खास्त करना चाहिए। सुशील कुमार ने राज्य में भाजपा को बहुत नुकसान पहुंचाया है। वह पिछले डेढ़ दशक से राज्य में बीजेपी के शीर्ष नेता हैं और उनकी वजह से राज्य में बीजेपी का दूसरा पायदान अब तक नहीं उभरा है।” इसके बाद, अब पार्टी आलाकमान सुशील मोदी को नई दिल्ली भेजने के लिए तैयार है।

सुशील मोदी ने 1990 के बाद से ही भाजपा के लिए विधायक समूह के नेता के रूप में बहुत कुछ किया है जिसे नजरअंदाज़ नहीं किया जा सकता, लेकिन 2005 में उन्होंने नीतीश कुमार से  हाथ मिला लिया था, दोनों ने केंद्रीय नेतृत्व से अलग रहना शुरू कर दिया l वो बीजेपी से ज्यादा नीतीश कुमार की तरफ अधिक झुकाव था जिस कारण बीजेपी को कभी कई मुद्दे पर जनता का आक्रोश झेलना पड़ा है। शराब बंदी के बावजूद राज्य में शारब की कालाबाजारी जारी रही जिसको लेकर इस बार शायद बीजेपी समीक्षा भी करेगी।

हद तो तब हो गई जब नीतीश सरकार लॉकडाउन के दौरान प्रवासी संकट को सही से नहीं संभाल पाई। यही नहीं बाढ़ की समस्या ने राज्य के विकास की पोल खोल दी और दिमागी बुखार के कारण बच्चों की मौत का मामला स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खोल दी। इसके बावजूद सुशील कुमार मोदी ने हमेशा ही यह सुनिश्चित किया कि नीतीश कुमार बिहार के अपने इस किले पर बने रहें।

एक तरफ गठबंधन के प्रति उनका कर्तव्य था, तो दूसरी ओर सुशील मोदी पर राज्य में भाजपा की एक स्वतंत्र पहचान बनाने की जिम्मेदारी भी दी गई थी। परंतु सुशील मोदी ने नीतीश कुमार की चापलूसी में कोई कमी नहीं छोड़ी और उनका यही रूख बीजेपी के लिए परेशानी का सबब बन गया। यही कारण है कि BJP के पास आज भी अपना CM चेहरा नहीं है और उसे नीतीश कुमार के विकल्प के साथ फिर से चलना पड़ रहा है l परंतु अब बीजेपी अपनी इस गलती को सुधार रही है। सुशील मोदी की जगह तारकिशोर को दी है।

बिहार BJP में तारकिशोर प्रसाद के उत्थान का एक कारण कटिहार की निकटता है, जो पश्चिम बंगाल से लगती है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के नेतृत्व में भाजपा ममता बनर्जी के किले को अब ध्वस्त करना चाहती है और प्रसाद इसकी चाभी बन सकते हैं। अगर बीजेपी को बंगाल जीतना है तो उसे अपने सभी संसाधनों की जरूरत होगी लेकिन सही जगह पर। बिहार की रणनीति का प्रभाव बंगाल में भी देखने को मिल सकता है और शायद यही कारण है ममता डरी हुईं हैं।

पिछली गठबंधन सरकार में सुशील कुमार भाजपा का चेहरा थे, और इसलिए किसी भी सामाजिक-राजनीतिक मुद्दे पर उनका रुख भाजपा का आधिकारिक रुख बन गया। इसलिए, नीतीश कुमार का आँख बंद कर समर्थन करते हुए, सुशील मोदी ने कई बार विवादास्पद मुद्दों पर भाजपा को बैकफुट पर रखा।

लेकिन सुशील मोदी के सत्ता से बाहर होने के बाद – भाजपा की राज्य इकाई के पास अब संभल कर चलने का विकल्प है, और एनडीए के लिए वास्तव में अच्छी खबर है।

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