तेलंगाना में कांग्रेसी नेता अब सरकार से फ्रांस के प्रोडक्ट्स का बहिष्कार करने की मांग कर रही


सोशल मीडिया पर मोदी के अंधविरोध पर काफी चुटकुले प्रसिद्ध रहे हैं। उदाहरण के लिए यदि मोदीजी ने कहा खाना खाने के बाद हाथ धोएँ, तो विपक्ष जानबूझकर हाथ नहीं धोएगा। लेकिन यह हंसी मज़ाक अब वास्तविकता में परिवर्तित हो रहा है, क्योंकि जिस प्रकार से कंग्रेस केंद्र सरकार की हर नीति [चाहे देसी हो या विदेशी] का विरोध करती है। बात तो अब यहाँ तक पहुँच चुकी है कि केंद्र सरकार द्वारा फ्रांस का आतंक के विरुद्ध लड़ाई में समर्थन देने पर कांग्रेस नेताओं ने तेलंगाना सरकार से अनुरोध किया कि वे फ्रेंच उत्पादों का बहिष्कार करे।

जी हाँ, अपने ठीक पढ़ा। कांग्रेस के अल्पसंख्यक नेताओं ने तेलंगाना की वर्तमान सरकार से गुजारिश की है कि वह फ्रेंच उत्पादों का बहिष्कार करे। कांग्रेस के तेलंगाना अल्पसंख्यक सेल के अध्यक्ष शेख अब्दुल्ला सोहेल ने हैदराबाद में फ्रांस के राष्ट्राध्यक्ष इमैनुएल मैक्रों के विरुद्ध प्रदर्शन करने के पश्चात तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव से गुजारिश की कि फ्रेंच उत्पादों का बहिष्कार किया जाए।

शेख अब्दुल्ला सोहेल के अनुसार, “जो शब्द उसने [मैक्रोन] पैगंबर मुहम्मद के विरुद्ध बोले हैं, वो बर्दाश्त नहीं किए जा सकते। भाजपा सरकार ने उसका समर्थन कर भारतीय मुसलमानों को भड़काने का काम किया है। हम चाहते हैं कि मुख्यमंत्री साहब न केवल मैक्रों के बयानों की निन्दा करें बल्कि फ्रेंच उत्पादों पर राज्य में प्रतिबंध भी लगायें”।

इससे अब पूर्णतः सिद्ध होता है कि कांग्रेस पार्टी और कुछ नहीं, बल्कि पूर्ववर्ती ऑल इंडिया मुस्लिम लीग का एक नया स्वरूप है। अभी हाल ही में इसका एक प्रत्यक्ष उदाहरण मध्य प्रदेश में देखने को मिला, जहां कांग्रेस विधायक आरिफ़ मसूद के नेतृत्व में 2000 से अधिक मुसलमानों ने फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के कट्टरपंथी इस्लाम के विरुद्ध चलाए जा रहे आंदोलन के विरोध में एक विशाल प्रदर्शन किया। महाराष्ट्र के मुंबई में तो एक कदम आगे बढ़ते हुए कांग्रेसी समर्थकों और कट्टरपंथी मुसलमानों ने मैक्रों के हजारों पोस्टर नागपाड़ा और भिंडी बाजार जैसे इलाकों की सड़कों पर चिपका दिए।

जिस प्रकार से मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और अब तेलंगाना में इमैनुएल मैक्रों के आतंकवाद के विरुद्ध अभियान को इस्लाम के विरुद्ध अभियान बनाकर यह लोग विरोध कर रहे हैं, उससे स्पष्ट होता है कि ये वास्तव में किसके साथ हैं। इनके लिए अल्पसंख्यक तुष्टीकरण इतना सर्वोपरि है कि इसके लिए अब वे विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्री को फ्रेंच उत्पादों के बहिष्कार का फरमान भी सुना रहे हैं।

हालांकि, यह पहली बार नहीं है जब कांग्रेस ने अल्पसंख्यक तुष्टीकरण में व्यावहारिकता और नैतिकता की धज्जियां उड़ाई हो। शाह बानो का नाम तो याद ही होगा। यदि नहीं, तो बता दें कि 1986 में सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम निर्णय में एक मुस्लिम औरत शाह बानो को पति द्वारा अनमने ढंग से तलाक देने पर मेहनताना देने का आदेश दिया था। लेकिन कट्टरपंथी मुसलमानों के आक्रोश से प्रभावित होकर तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के उस निर्णय को निरस्त करने के लिए एक विशेष अध्यादेश पारित किया। अल्पसंख्यक तुष्टीकरण का इससे भद्दा उदाहरण कहीं और देखने को मिल सकता है क्या?

इसके अलावा जिस प्रकार से अनुच्छेद 370 को लागू कर इस्लामिक कट्टरता को कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस के गठजोड़ ने बढ़ावा दिया है, उसे कुछ भी कहो, कम ही पड़ेगा। ऐसे में ये कहना गलत नहीं है कि कांग्रेस के अल्पसंख्यक तुष्टीकरण सबसे पहले है, लोकतंत्र और राष्ट्र की सुरक्षा और अखंडता जाए तेल लेने।

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