तेजस्वी को मीडिया और बड़बोले नेताओं ने तो मुख्यमंत्री बना ही दिया था, पर यह सपना एक दिन से लंबा न हो पाया

 


सही ही कहा है, दुनिया में कुछ भी पालो, पर गलतफहमी मत पालो। जिस प्रकार से एक्ज़िट पोल्स ने तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाले महागठबंधन के लिए प्रचंड बहुमत की भविष्यवाणी की, तो मानो आरजेडी की बाँछें खिल गई, और उनके कार्यकर्ता जश्न मनाने पर उतारू हो गए। लेकिन वो कहते हैं न, समय बदलते देर नहीं लगती।

बिहार चुनाव के परिणाम सामने आने लगे हैं, और अंत में वास्तविक परिणाम चाहे जो भी हो, इतना तो स्पष्ट है कि इंडिया टुडे और टुडेज़ चाणक्य की भविष्यवाणी औंधे मुंह गिरी है। 180 सीटें तो बहुत दूर की बात, यदि आरजेडी 130 सीटें भी जीत जाए तो आश्चर्य की बात होगी।

लेकिन एक्ज़िट पोल्स इतनी बुरी तरह गलत कैसे साबित हुए? आखिर ऐसा क्या हुआ कि जिन तेजस्वी यादव के मुख्यमंत्री बनने के आसार एक्ज़िट पोल्स के अनुसार बेहद प्रबल थे, उनकी उम्मीदें धीरे-धीरे क्षीण होती गई?

कारण यह है कि बिहार की जनता का मूड बताना किसी भी ओपिनियन या एक्ज़िट पोल के लिए हमेशा टेढ़ी खीर रही है। पिछली बार भी एक्ज़िट पोल्स ने भविष्यवाणी की थी कि या तो त्रिशंकु विधानसभा रहेगी, या फिर एनडीए को बहुमत मिलेगी। लेकिन अंत में लालू यादव, नीतीश कुमार और काँग्रेस का महागठबंधन सबको पछाड़ते हुए विजयी सिद्ध हुआ।

ऐसे में एक्ज़िट पोल्स इस बार फिर से गलत साबित होते दिखाई दे रहे हैं, और जिस प्रकार से समीकरण बढ़ते हुए दिखाई दे रहे हैं, उससे और चाहे जो हो जाए, लेकिन महागठबंधन प्रचंड बहुमत तो छोड़िए, कुछ भी प्राप्त कर ले तो ही बहुत बड़ी बात होगी। तेजस्वी यादव के पास अपने दम पर मुख्यमंत्री बनने का एक सुनहरा अवसर था, परंतु एक ओर नरेंद्र मोदी की ताबड़तोड़ रैली, दूसरी ओर चिराग पासवान का खेल ने मानो पूरा पास ही पलट दिया। रही सही कसर सीमांचल क्षेत्र में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM ने अल्पसंख्यक वोट काटकर पूरी कर दी है। अब तेजस्वी यादव की हालत वह हो गई कि न वे घर के रहे न घाट के।

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