नेपाल को हाथ से जाते देख चीन की ‘चर्चित’ राजदूत हू यांकी ने फिर से शुरू की ओली के साथ बातचीत

 


जब बड़े देशों के बीच रस्साकसी का दौर होता है तो उनके बीच छोटे देशों की भूमिका भी अहम हो जाती है। भारत चीन के बीच विवाद और इसमें नेपाल की भूमिका भी कुछ ऐसी ही है। नेपाल हिमालय के इस क्षेत्र में भारत और चीन दोनों के लिए ही एक महत्वपूर्ण कड़ी है। ऐसे में भारत के खिलाफ काम करने के लिए चीन नेपाल का इस्तेमाल करता रहता है, और इसलिए नेपाल पर अपनी पकड़ मजबूत रखना चाहता है जिससे नेपाल का रुख भारत की तरफ न झुके।

भारत के साथ इन दिनों नेपाल के संबंधों में फिर गरमाहट आई है जो चीन के लिए नकारात्मक है। चीनी राजदूत हू यांकी इस बात को अच्छे से समझ रही हैं। इसीलिए अब नेपाल के साथ रिश्तों को लेकर वो प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली से दोबारा बातचीत कर रही है। काठमांडू पोस्ट की एक रिपोर्ट के मुताबिक,  हाल ही प्रधानमंत्री कार्यालय में इन दोनों की बैठक हुई। इसको लेकर पीएम के सूत्रों ने बताया, “मंगलवार को ओली और यांकी की मुलाकात के दौरान ही चीनी मंत्री की यात्रा सुनिश्चित हुई थी।” हालांकि कि इस यात्रा की अभी कोई आधिकारिक जानकारी नहीं दी गई है।

नेपाल का लगातार भारत के खिलाफ बोलना चीन का ओली पर डाला गया असर है। नेपाल उस खिलौने की तरह हो गया था जिसमें चीन जितनी चाबी भरता था वो उतना ही नाचता था। इसी का नतीजा था कि नेपाल ने भारत के खिलाफ लिपुलेख और काला पानी का विवाद घोषित कर दिया और फिर नक्शा बदल दिया। यही नहीं, भगवान राम की जन्मभूमि के नेपाल में होने की हास्यास्पद और विवादित बात भी नेपाली पीएम द्वारा की जाने लगीं।

चीन नेपाल के इलाकों पर भी कब्जा जमाने लगा था। कृषि मंत्रालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक चीन ने नेपाल के 4 जिलों की 11 जगहों पर चीनी पीएलए ने कब्जा कर लिया था।  ये सभी जलीय क्षेत्र है। अगस्त में भी चीन ने कई नेपाली सीमावर्ती इलाकों में कब्जा किया था। इस सब के बावजूद नेपाली प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली कुछ नहीं बोले थे, क्योंकि उनकी कुर्सी बचाने में नेपाल में चीनी राजदूत हू यांकी की भूमिका सबसे अहम थी।

नेपाल में कम्युनिस्ट पार्टी के बीच फूट की स्थिति थी। ओली के सहयोगी प्रचंड ओली के खिलाफ बोलने में तनिक भी गुरेज नहीं कर रहे थे। ऐसे में ओली की पीएम पद की कुर्सी खतरे में थे जिसे बचाने में हूं यांकी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और कई दौर की बैठकों के बाद सारा मामला सुलझाया था। जिसके बाद ओली ने उन्हें गॉडफादर ही मान लिया था।

ओली के लिए ये क्षणिक सुख था, क्योंकि उनके लिए मुसीबतें अंदरखाने ही बढ़ गईं और नेपाल की जनता उनके इस चीन प्रेम से खफा हो गई। ये सभी भारत के साथ अच्छे रिश्ते रखना चाहते हैं। इसी बीच रॉ चीफ, विदेश मंत्रालय के अधिकारियों और भारतीय सेनाध्यक्ष नरवणे के दौरे ने पूरा पासा ही पलट दिया। नेपाली मीडिया समेत नेपाल का भारत समर्थक समूह सक्रिय हुआ और सभी नेपाल के साथ भारत के अच्छे रिश्तों की बात करने लगे। ओली के लिए ये संकट की घड़ी बन गई है। अगर ऐसे ही उनके खिलाफ विरोध अपनी ही कम्युनिस्ट पार्टी से लेकर जनता में भी होता रहा तो उनकी कुर्सी कोई नहीं बचा पाएगा, और इस बार शी जिनपिंग भी कुछ नहीं कर पाएंगे।

इसके चलते ओली ने फिर भारत के साथ जाने का मन बना लिया। भारतीय सेनाध्यक्ष को सम्मान देना हो या नक्शे के विवाद को खत्म करना, ओली लगातार इससे जुड़े फैसले खुद लेने लगे। उन्होंने अपने भारत विरोधी रक्षा मंत्री को भी कैबिनेट से हटा दिया। भारतीय अधिकारियों के हालिया दौरे भारत और नेपाल के रिश्तों की नई इबारत का सबूत हैं और ये चीन के लिए चिंताजनक बात है।

इसी लिए भारतीय अधिकारियों के नेपाल छोड़ते ही अचानक हू यांकी एक्टिव हो गईं हैं, और नेपाल के कैबिनेट मंत्री से ओली की बैठकें तय कर रहीं हैं जिससे ओली का रुख चीन की तरफ मोड़ा जा सके।

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