Democrats हों या दुनियाभर की लिबरल मीडिया: ये सब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प पर पिछले चार सालों से यही आरोप लगाते रहे हैं कि ट्रम्प ने अमेरिका के सभी वैश्विक गठबंधनों को उथल-पुथल कर दिया है, जिसके कारण अमेरिका की साख को बड़ा नुकसान उठाना पड़ा है। यहाँ तक कि चुने गए राष्ट्रपति जो बाइडन अभी से यह ऐलान कर चुके हैं कि “America is back” यानि पुराने वाला अमेरिका वापस आ गया है, जो अपने साथियों और गठबंधनों का सम्मान करता था। लेकिन क्या वाकई ट्रम्प ने अपने सभी गठबंधनों को बर्बाद कर दिया है? अगर ट्रम्प के चार सालों का एक तुलनात्मक अध्यन्न किया जाये, तो हमें यह देखने को मिलता है कि ट्रम्प ने असल में अमेरिका के महत्वपूर्ण गठबंधनों को मजबूत किया है।
पिछले चार सालों में ट्रम्प ने भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया, फिलीपींस और वियतनाम जैसे महत्वपूर्ण देशों के साथ अपने सम्बन्धों को बेहद मजबूत कर दिया है। ये सारे वही देश हैं जिनकी सहायता से अमेरिका चीन के बढ़ते खतरे का मुक़ाबला करना चाहता है। पिछले चार सालों में इन सभी देशों के रिश्ते अमेरिका के साथ बेहतर हुए हैं। अमेरिका की सफल विदेश नीति का सबसे बड़ा उदाहरण Quad समूह है जिसने चीन की चिंताओं को कई गुणा बढ़ा दिया है।
हालांकि, Democrats और लिबरल खेमे के लिए आज भी Indo-Pacific के इन ज़रूरी गठबंधनों की बजाय यूरोपीय यूनियन और NATO जैसे गठबंधन ज़्यादा मायने रखते हैं। इस बात में कोई दो राय नहीं है कि ट्रम्प के नेतृत्व में अमेरिका-EU के सम्बन्धों में तनाव देखने को मिला है। इसके साथ ही ट्रम्प ने सुरक्षा पर खर्च को लेकर भी NATO के सदस्यों पर जमकर धावा बोला है। ऐसे में अगर बाइडन के समर्थकों के लिए EU और NATO ही अमेरिका के सबसे महत्वपूर्ण संगठन हैं, तो बेशक ट्रम्प ने अमेरिका के “वैश्विक गठबंधनों” को कमजोर किया है।
बाइडन खेमे की सबसे बड़ी समस्या यही रही है कि वे अभी तक अमेरिका के सबसे बड़े खतरे को पहचानने में ही असफ़ल रहे हैं। उदाहरण के लिए अक्टूबर महीने में बाइडन ने एक बयान देकर कहा था कि अमेरिका की सुरक्षा के लिए रूस सबसे बड़ा खतरा है! इसके साथ ही बाइडन प्रशासन में बनाए गए NSA (राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार) Jake Sullivan पूर्व में खुद ही “चीन के उदय” का समर्थन कर चुके हैं। वर्ष 2017 में उन्होंने अपने एक बयान में कहा था “चीन को लेकर अमेरिका को एक बीच का रास्ता निकालना होगा। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि चीन का उदय हो लेकिन वह सभी कानूनों के तहत, पारदर्शिता और खुलेपन के साथ हो! यही अमेरिका के हित में रहेगा।” इसका अर्थ यह है कि खुद अमेरिका के आगामी NSA चीन के उदय का समर्थन करते हैं। बाइडन रूस को सबसे बड़े खतरे के रूप में मानते हैं, ना कि चीन को! ऐसे में इस बात का अनुमान लगाया जा सकता है कि बाइडन प्रशासन “America is Back” के तहत EU और NATO को और ज़्यादा सशक्त कर सकते हैं, ताकि “रूस के खतरे” से निपटा जा सके, लेकिन चीन का क्या!
ट्रम्प प्रशासन ने ना सिर्फ चीन के खतरे को समझा था, बल्कि उससे निपटने के लिए दुनियाभर में चीन विरोधी गठबंधनों को मजबूत भी किया था। हालांकि, जब बाइडन के लिए रूस सबसे बड़ा खतरा हैं, तो ज़ाहिर सी बात है कि उनके आने के बाद अमेरिका के चीन-विरोधी गठबंधन कमजोर हो सकते हैं। ट्रम्प प्रशासन का सारा ध्यान “Indo-Pacific” पर केन्द्रित था, लेकिन बाइडन प्रशासन के दिए संकेतों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि नयी सरकार की प्राथमिकता चीन नहीं, बल्कि रूस होगा! इससे इस बात का डर बढ़ गया है कि ट्रम्प द्वारा बनाए गए अमेरिका के महत्वपूर्ण चीन विरोधी गठबंधन अब बाइडन के अंतर्गत कमजोर पड़ सकते हैं। यह अमेरिका के लिए किसी दुस्वप्न से कम नहीं होगा!
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