अगर प्रधानमंत्री रहते हुए किसी को उसकी पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाए तो ज़रा सोचिए कि वो पल, वो लम्हा, उस शख्स के लिए कैसा होगा। कल तक जिसके सामने सभी नेता नतमस्तक हुआ करते हो फिर वही अगर लामबंद हो जाए तो फिर वो लम्हा उस शख्स के लिए कैसा होगा। ज्यादा दूर नहीं… थोड़ा नजदीक आते हुए बात करते हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की। अगर उनकी पार्टी ही उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दे तो सोचिए कैसा होगा वो पल। खैर, अभी तक प्रधानमंक्षी नरेंद्र मोदी ने ऐसा कोई भी काम नहीं किया है, जिसके चलते पार्टी उन्हें बाहर का रास्ता दिखाए, लेकिन संभवत: आपको यह जानकर हैरानी होगी कि हमारे देश की आयरन लेडी कही कहे जाने वाली इंदिरा गांधी को उनकी पार्टी ने कांग्रेस से बाहर का रास्ता दिखा दिया था। बताया गया था कि उन्होंने पार्टी के साथ दगा किया है , जिसके चलते उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया गया है। उस समय हिंदुस्तान की राजनीति में एक नए अध्याय की शुरूआत हुई थी।
असल में हुआ क्या था
यह उस दौर की घटना है, जब कांग्रेस में सिंडिकेट का दबदबा था। यहां तक इंदिरा गांधी को भी सिंडिकेट के दबाव में आकर कई फैसले लेने पर बाध्य होना पड़ा था। सिंडिकेट कांग्रेस पार्टी मे गैर-हिंदी भाषा के लोगों का गुट था, जिनका सक्रियता पार्टी में अपने चरम पर थी। पंडित नेहरू की मौत के बाद लाल बहादुर शास्त्री और इंदिरा गांधी को बतौर प्रधानमंत्री चुनने में इस गुट का किरदार बेहद अहम रहा है। सिंडिकेट मेें ज्यादातर नेता साउथ के थे। हालात अब यहां तक पहुंच चुके थे कि सिंडिकेट से टकराकर इंदिरा गांधी प्रधानमंंत्री की कुर्सी तक पहुंच चुकी थी, लेकिन उनकी परेशानी अभी यही खत्म नहीं होती है। अभी तो यह सिलसिला सिर्फ शुरू हुआ था और आगे बहुत कुछ होना था। लिहाजा, इंदिरा को सिंडिकेट के दबाव में आकर मोरारजी देसाई को डिप्टी पीएम और फाइनेंस मिनिस्टर बनाना पड़ा, लेकिन अपने इस फैसले के बाद वो सहज नहीं हो पा रही थी।
जब इंदिरा को मिला मौका
लेकिन, एक वक्त के बाद पार्टी में सिंडिकेट का दबदबा अपने चरम पर पहुंचता जा रहा था, जो कि इंदिरा गांधी के सहन के दायरे को पार करने पर अमादा हो चुका था। अब इंदिरा सिंडिकेट के वजूद को खत्म के लिए कुछ भी करने को तैयार थी, लेकिन किस्मत ने उन्हें एक मौका दे दिया। राष्ट्रपति जाकिर हुसैन का कार्यकाल पूरा किए बिना निधन हो गया। वीवी गिरी उस वक्त वाइस प्रेसीडेंट थे, उनको कार्यवाहक राष्ट्रपति बना दिया गया, मगर यहां सिंडिकेट चाहता था कि उनके बीच में किस नेता को प्रेसिडेंट बनाया जाए, लेकिन इंदिरा के मन में खौफ था कि अगर सिंडिकेट के बीच का कोई नेता प्रेसिंडेट बना दिया गया तो उन्हें अपदस्थ करके मोराजी देसाई की ताजपोशी कर दी जाएगी। इसके बाद इंदिरा गांधी ने जगजीवन राम को प्रेसिडेंट बनाना का विचार किया, लेकिन सिंडिकेट गुट के आगे उनकी एक नहीं चली। अत: उन्हें अपने कदम पीछे करने पड़े और राजीव रेड्डी को ऑफिशियर प्रेसिडेंट बना दिया गया।
जब इंदिरा को पार्टी से बाहर निकाल दिया गया
उधर, जब इंदिरा को यह अभास होने लगा कि अब सिंडिकेट वाले अपनी हदें पार करते जा रहे हैं तो इन पर अपना चाबूक चलाने के लिए इंदिरा ने खाका तैयार कर लिया। इसके तहत सबसे पहले उन्होंने देश के सभी पार्टी इकाइयों का जनसमर्थन जुटाना शुरू किया। पार्टी के अंदर एक गुट का उदय शुरू हुआ, जिसे सिंडिकेट के खिलाफ लामबंद किया है। इंदिरा गांधी अपने इस काम में काफी हद तक सफल हो रही थी , मगर इसके बाद सिंडिकेट वाले भी इंदिरा के खिलाफ लामबंद हो चुके थे। इसके बाद फिर हालात यहां तक पहुंच चुके थे कि इंदिरा के समर्थकों ने स्पेशल कांग्रेस सेशन बुलाने की मांग की ताकि नया प्रेसीडेंट चुना जा सके, उनको भरोसा हो चला था कि इन लोगों के पास जनसमर्थन नहीं। लेकिन गुस्से में निंजालिंगप्पा ने पीएम को खुला खत लिखकर पार्टी की इंटरनल डेमोक्रेसी को खत्म करने का आरोप लगाया, साथ में इंदिरा के दो करीबियों फखरुद्दीन अली अहमद और सी सुब्रामण्यिम को एआईसीसी से निकाल बाहर किया। बदले में इंदिरा ने निंजालिंगप्पा की बुलाई मीटिंग्स में हिस्सा लेना बंद कर दिया।
इसके बाद फिर एक नवंबर को कांग्रेस वर्किंग कमेटी की दो जगहों पर मीटिंग हुईं। एक पीएम आवास में और दूसरी कांग्रेस के जंतर मंतर रोड कार्यालय में। कांग्रेस कार्यालय में हुई मीटिंग में इंदिरा को पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से निकाल दिया गया फिर इसके बाद संसदीय दल नया नेता चुनने के लिए कहा गया है। इस तरह से कांग्रेस ने इंदिरा को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया।
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