चीन यूरोप में कट्टरपंथियों के हमले पर चुप है, ताकि उइगरों पर मुस्लिम देशों की चुप्पी बनी रहे


इन दिनों फ्रांस में आम नगरिकों और कट्टरपंथी मुसलमानों में जबरदस्त तनाव है। एक ओर कट्टरपंथी मुसलमान आतंक के बल पर फ्रांस को डराना चाहते हैं, तो वहीं सैमुएल पैटी की निर्मम हत्या के बाद फ्रेंच निवासियों ने तंग आकर इन कट्टरपंथियों के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया है। लेकिन दुनिया की कई महाशक्ति फ्रांस के साथ आतंकवादियों और उनके कट्टरपंथी समर्थकों के विरुद्ध सीना तानकर खड़ी है, तो वहीं चीन इस पूरे प्रकरण पर चुप्पी साधे हुआ है।

फ्रांस में हो रहे निरंतर आतंकी हमलों के पश्चात पूरा यूरोप धीरे-धीरे ही सही, परंतु कट्टरपंथी इस्लाम के विरुद्ध एक हो रहा है। एक ओर फ्रांस जैसे देश ने अपने नागरिकों के साथ कट्टरपंथी इस्लाम के विरुद्ध खड़े होने का आश्वासन दिया है, तो वहीं नीदरलैंड्स और डेनमार्क जैसे देश सक्रिय तौर पर कट्टरपंथी इस्लाम को पल्लवित पोषित करने वाले हर संस्थान के विरुद्ध खड़े हुए हैं। इतना ही नहीं, अमेरिका और एशिया के ताकतवर देश, जैसे भारत, जापान, यहां तक कि सऊदी अरब जैसे इस्लाम बहुल देश भी फ्रांस के साथ आतंक के विरुद्ध लड़ाई में साथ है।

लेकिन आश्चर्यजनक रूप से चीन ने इस विषय पर एक शब्द भी नहीं कहा है। इसके पीछे दो प्रमुख कारण है – यूरोप में उसकी बिगड़ती छवि और कट्टरपंथी मुसलमानों को बढ़ावा देने वाले देशों से बंद दरवाजों के पीछे सांठगांठ। वुहान वायरस, BRI और चीन के विदेश मंत्री वांग यी द्वारा यूरोपीय दौरे के दौरान की गई गुंडई के कारण चीन की छवि पूरे यूरोप की दृष्टि में धूमिल हो चुकी है, और चीन अभी इस विषय पर मौन रहकर अपनी इज्ज़त ही बचाना चाहता है।

अब सच कहें तो दूसरा कारण ज्यादा प्रमुख है कि चीन आखिर क्यों फ्रांस में हो रहे आतंकी हमलों पर मौन है। दरअसल, चीन के संबंध कई ऐसे देशों के साथ ज्यादा मजबूत है, जो न केवल इस्लाम बहुल है, बल्कि इस्लाम के नाम पर कट्टरपंथ को भी बढ़ावा देते आए हैं, चाहे वो ईरान हो, तुर्की हो, या फिर पाकिस्तान ही क्यों न हो। इसके अलावा चीन स्वयं भारत और म्यांमार में आतंक को बढ़ावा देने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहा है, जिसे खुद चीन के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने भी स्वीकारा है। ग्लोबल टाइम्स ने धमकी दी कि ताइवान के प्रति भारत के बढ़ते समर्थन के बदले चीन पूर्वोत्तर भारत में अलगाववादियों को खुलेआम समर्थन भी दे सकता है।

शायद यही कारण है जो तुर्की, पाकिस्तान और ईरान जैसे कट्टरपंथी मुसलमानों को बढ़ावा देने वाले देश चीन में  उइगर मुसलमानों पर निरंतर होते अत्याचारों पर मौन व्रत साध लेते हैं। ऐसा क्यों है कि जो तुर्की और पाकिस्तान फ्रांस के राष्ट्रपति द्वारा कट्टरपंथी इस्लाम के विरुद्ध अपनी आवाज उठाने पर फ्रेंच उत्पादों के सम्पूर्ण बहिष्कार का नारा लगाता है, वह चीन द्वारा वास्तव में मुसलमानों पर अत्याचार करने पर बगलें क्यों झाँकने लगता है?

सच कहें तो चीन और कट्टरपंथी मुसलमानों को बढ़ावा देने वाले देश एक ही थाली के चट्टे बट्टे हैं। जब तक चीन कट्टरपंथी मुसलमानों द्वारा हो रहे आतंकी हमलों पर मौन है, तब तक तुर्की और पाकिस्तान जैसे देश उइगर मुसलमानों पर हो रहे अत्याचारों पर अपना मुंह नहीं खोलेंगे।

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