केजरीवाल के हालिया कारनामे बताते हैं कि उनके पास राजनीति में बने रहने का अद्भुत हुनर है

 


राजनीति में ऊंट कब किस करवट बैठ जाए कुछ पता नहीं होता, उसमें भी बात अगर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की हो तो ये संभावनाएं और भी ज्यादा हो जाती हैं। अरविंद केजरीवाल अब अपनी वामपंथी छवि को बदलने के लिए वामपंथियों पर ही मुसीबत बरसाने लगे हैं। वामपंथियों के खिलाफ आपराधिक मामलों को लेकर केजरीवाल का हालिया बयान जाहिर करता है कि वो किसी भी वक्त अपना रंग, सहूलियत के अनुसार बदल सकते हैं और उनके हलिया क्रियाकलाप इस बात को सबित भी कर रहे हैं।

दिल्ली दंगों के आरोपी और जेएनयू के पूर्व छात्र नेता उमर खालिद के खिलाफ अब अरविंद केजरीवाल सरकार ने दिल्ली पुलिस को यूएपीए के तहत केस चलाने की मंजूरी दे दी है। इस मंजूरी के साथ ही उमर खालिद की मुसीबतों में बड़ा इजाफा होने की संभावना है। इस केस को लेकर गृह मंत्रालय पहले ही दिल्ली पुलिस को खालिद के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए मंजूरी दे चुका था और जरूरत केवल दिल्ली सरकार की थी, और अब वो भी मिल गई है।

अरविंद केजरीवाल की राजनीति शुरु में वांमपंथियों से मिलती थी। वो अपने राजनीतिक एजेंडे में किसी भी धर्म को जगह नहीं देने का दावा तो करते थे, लेकिन मुस्लिमों को लुभाने के लिए सफेद जलीदार टोपी पहनने में बिल्कुल परहेज नहीं करते थे। जब जेएनयू में देश विरोधी नारे लग रहे थे, तो उन्होंने जेएनयू के छात्रों पर हुई कार्रवाई को अभिव्यक्ति की आजादी का हनन बताया था। अपनी रैलियों में वो बीजेपी पर धार्मिक उन्माद फैलाने का आरोप लगाते थे, साथ ही कांग्रेस पर मुस्लिम तुष्टीकरण का आरोप लगाकर उसे भी कोसते थे, लेकिन वक्त के साथ सब बदलता जा रहा है।

केजरीवाल के इस वामपंथी पाखंड को दिल्ली की जनता तो शायद ज्यादा नहीं समझ पाई लेकिन देश के अन्य कई राज्यों में उनकी पार्टी की हार से पता चल गया कि उन राज्यों की जनता केजरीवाल की नीयत अच्छे तरीके से समझ चुकी थी। इसके चलते केजरीवाल भी ये समझ गए कि जनता उनके पाखंड के कारण उनसे खफा है और इसी लिए अब वो धीरे-धीरे इस छवि को बदलने के लिए काम कर रहे हैं जिससे उनके राजनीतिक करियर की ढलान को थामा जा सके।

केजरीवाल अपनी बदली हुई इसी रणनीति के तहत वामपंथियों के लिए ही मुसीबत बन गए हैं। वो जिन लोगों के लिए कल तक रक्षक बने हुए थे, उन्हीं को सलाखों के पीछे भेजने की छूट दे  रहे हैं, और ये उनके पिछले काफी वक्त के कार्य बता भी रहे हैं। इसी साल फरवरी में जेएनयू छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार पर देशद्रोह का मुकदमा चलाने के लिए अरविंद केजरीवाल ने इजाजत दे दी थी जो कि पिछले दो सालों से इस मामले की फाइल को लटका कर रखे हुए थे, इसको लेकर दो सालों तक बीजेपी ने अरविंद केजरीवाल को खूब घेरा था।

दिल्ली के निजामुद्दीन मरकज में तब्लीगी जमात के लोगों ने जिस तरह से कोरोना काल में सरकारी नियमों की अवहेलना करते हुए भीड़ इकट्ठा की थी ,उससे दिल्ली में कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों की संख्या में बढ़ोत्तरी हुई थी। इस घटना के बाद पहली बार केजरीवाल का मुस्लिमों के प्रति आक्रमक रूप सामने आया था। उन्होंने उस दौरान खुलकर मरकज के प्रमुख मौलाना साद की आलोचना की थी, जो कि उनके बदले हुए राजनीतिक एजेंडे का एक बड़ा उदाहरण है।

ऐसे में उमर खालिद के मामले में भी केजरीवाल सरकार ने इतनी जल्दी केस चलाने का निर्णय देकर एक और संकेत दिया है कि वो अब कभी-भी अपनी राजनीतिक सहूलियतों के अनुसार अपना रंग बदल सकते हैं और ये ही उनका राजनीतिक सिद्धांत भी है।

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