भारतीय राजनीति में बदलाव का दौर, ओवैसी की एंट्री ने इसे दो ध्रुवीय बना दिया है

 


विपक्षी दलों के लिए अब तक सबसे बड़ी मुश्किल बीजेपी थी, जिसको लेकर वो ये आरोप लगाते थे कि वो ध्रुवीकरण के आधार पर चुनाव जीतती है, लेकिन कांग्रेस समेत सभी विपक्षी दलों के लिए अब हैदराबाद के सांसद और AIMIM नेता असद्दुदीन ओवैसी बड़ी मुसीबत बन गए हैं। उन्हें देश के मुस्लिम समुदाय का वोट एकमुश्त मिलने लगा है। ऐसे में कई लोगों की मुस्लिम तुष्टिकरण की दुकानों पर ओवैसी न केवल ताला लगा सकते हैं बल्कि एक स्थिति ऐसी आएगी कि ओवैसी की पार्टी देश की दूसरी बड़ी पार्टी बन जाएगी, और विपक्षी पार्टियों को एक तगड़ा झटका लगेगा।

बिहार विधानसभा चुनावों में जिस तरह से ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने सीमांचल इलाक़े में पांच सीटें जीती हैं, उससे सबसे बड़ा झटका कांग्रेस समेत सभी विपक्षी पार्टियों को लगा है। कांग्रेस ने सीधा आरोप लगाना शुरू कर दिया कि ओवैसी बीजेपी के एजेंट हैं।

कांग्रेस के दावों से खिसियाए ओवैसी ने पूरे देश में चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया। उन्होंने एक टीवी इंटरव्यू  में कहा, “मैं और मेरी पार्टी देश में कहीं भी चुनाव लड़ने के लिए स्वतंत्र हैं और आने वाले समय में पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश समेत तमिलनाडु में मेरी पार्टी चुनाव लड़ेगी और कोई हमें रोक नहीं सकता।” ओवैसी का ये बयान कांग्रेस समेत विपक्ष के राजनीतिक भविष्य के लिए एक झटका है।

ओवैसी ने बिहार के विधानसभा चुनावों में सीमांचल क्षेत्र में चुनाव लड़ा। उन्होंने इस बार बिहार की जनता का 1.14 प्रतिशत वोट हासिल किया, लेकिन ये वोट उनके लिए इतना महत्वपूर्ण साबित हुआ कि उनकी पार्टी ने पांच सीटें जीत लीं। इन पांच सीटों की जीत ने महागठबंधन के जीतने की उम्मीदों पर पानी फेर दिया, और ओवैसी एनडीए गठबंधन की जीत के अदृश्य हीरो बन गए।

ओवैसी की पूरी राजनीति मुस्लिमों के इर्द-गिर्द घूमती है। केवल मुस्लिम मतदाताओं के दम पर ओवैसी कितने बड़े नेता साबित हो सकते हैं वो ओवैसी ने बिहार चुनाव में साफ कर दिया है। कांग्रेस समेत पूरा वामदल ये दावा करता है कि वो वामदलों का हितैषी है। हालांकि, इन्होंने हमेशा ही मुस्लिमों का तुष्टिकरण किया है। ऐसे में मुसलमानों ने अब कांग्रेस और वामदलों की मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति को ठेंगा दिखाते हुए AIMIM की तरफ रुख करना शुरू कर दिया है। मुस्लिमों का मोह अगर ओवैसी की ओर बढ़ रहा है तो ये सभी विपक्षी दलों के लिए करारा झटका होने के साथ ही AIMIM के लिए एक मौका भी है। बिहार चुनाव के दौरान बनी इस स्थिति को अगर लंबे परिदृश्य में देखा जाए तो ये कहा जा सकता है कि ओवैसी की पार्टी AIMIM आने वाले दस सालों में देश की दूसरे नंबर की पार्टी भी बन जाएगी और अन्य सभी ढोंगी सेकुलर पार्टियों की नैया डूब जाएगी।

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