अमेरिकी चुनाव के बाद भी पुतिन ने अपना चीन विरोधी रुख नहीं बदला है


अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में ट्रम्प की हार और जो बाइडन की जीत के बाद, यह आशंका जताई जा रही थी कि बाइडन के रूस विरोधी बयानों को देखते हुए राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन कहीं चीन की ओर दोस्ती का हाथ न बढ़ा दें। परन्तु जिस तरह का रुख इन दिनों रूस का देखने को मिल रहा है उससे ये स्पष्ट हो गया है कि पुतिन के चीन विरोधी रुख में कोई बदलाव नहीं आया है। अब रूस ने चीन विरोधी फिलीपींस को ब्रह्मोस मिसाइल एक्सपोर्ट करने का निर्णय किया है तो वहीं, SCO में भारत के रुख का भी समर्थन किया है। 

दरअसल, रूस के Deputy Envoy Roman Babushkin ने कहा है कि जल्द ही क्रूज मिसाइल ब्रह्मोस का एक्सपोर्ट फिलीपींस को किया जायेगा। बता दें कि फिलीपींस चीन की विस्तारवादी नीति के खिलाफ है और चीन विरोधी ताकतों के समर्थन में दिखाई दे रहा है। 

ऐसे समय में चीन विरोधी फिलीपींस को ब्रह्मोस देकर रूस ने उसे और मजबूत करने की दिशा में संकेत दिया है जो चीन को बिलकुल भी रास नहीं आएगा। मनीला ने बीजिंग को यह स्पष्ट कर दिया है कि दक्षिण चीन सागर में अपने खनिज पदार्थों की उत्पत्ति के लिए फिलीपींस किसी की हेकड़ी बर्दाश्त नहीं करेगा। साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार, फिलीपींस चीन की गुंडई का समुद्री क्षेत्रों में मुक़ाबला करने के लिए लड़ाकू सेना तैयार कर रहा है। रिपोर्ट के अनुसार, “दक्षिण चीन सागर में व्याप्त तनातनी के बीच फिलीपींस के रक्षा अफसरों ने घोषणा की है कि फिलीपींस चीन की तर्ज पर अपनी समुद्री लड़ाकू सेना तैयार करने पर विचार कर रहा है, जो चीन द्वारा दक्षिण चीन सागर में की जा रही गुंडई का मुकाबला करेगी। यह सेना मछुआरों और नौसेना के सैनिकों को मिलाकर बनाई जाएगी।”

सीएनएन की रिपोर्ट के अनुसार, फिलीपींस के विदेश सचिव तियोडोरो लॉक्सिन ने कुछ महीनों पहले ही चीन के मिलिटरी ड्रिल पर चेतावनी देते हुए कहा था कि अगर एक भी मिसाइल फिलीपींस के EEZ में घुसा तो चीन को मुंह तोड़ जवाब दिया जाएगा। अगर ऐसे में फिलीपींस के पास ब्रह्मोस मिसाइल हो तो वह चीन का कई गुना अधिक नुकसान कर सकता है। यानि रूस के इस कदम से यह समझा जा सकता है कि वह चीन के समर्थन में तो कतई नहीं है और उससे हाथ मिलाने भी नहीं जा रहा है। 

सिर्फ फिलीपींस ही नहीं, बल्कि रूस ने SCO में भारत के रुख का भी समर्थन किया है जिसमें रूस ने इस मंच को द्विपक्षीय मुद्दे का मंच न बनाने का समर्थन किया। रूस के Deputy Envoy Roman Babushkin ने कहा कि, “यह चार्टर का बुनियादी हिस्सा है कि द्विपक्षीय मुद्दों को एजेंडा में नहीं लाया जाए। बहुपक्षीय मंचों की प्रगति के लिए इसे टाला जाना चाहिए, एससीओ का गठन वैश्विक, वित्तीय क्षेत्र के मुद्दों को हल करने के लिए बनया गया था। हमें उम्मीद है कि भारत-पाकिस्तान द्विपक्षीय मुद्दों से बचना चाहिए और ऐसी घटनाएं सामने नहीं आएंगी।” इससे पहले रूस ने SCO में पाकिस्तान को कश्मीर का मुद्दा उठाने से रोक दिया था। जिस तरह से चीन ने पाकिस्तान की मदद करते हुए कश्मीर के मुद्दे को कई वैश्विक मंचों से उठाने के लिए प्रेरित किया था, उससे देखते हुए रूस का यह कदम चीन के खिलाफ ही माना जाएगा।   

भारत-चीन तनाव पर बात करते हुए, Roman Babushkin ने संवाददाताओं से कहा कि रूस चिंतित है लेकिन ये दोनों देश आपसी सहमति से विवाद को सुलझा लेंगे। उन्होंने आगे कहा कि ब्रिक्स और एससीओ जैसे समूहों पर इसका असर भी पड़ सकता है, लेकिन सदस्यों के हित में यही है कि वे ऐसे वैश्विक संगठनों में तनाव को न लाएं। 

भारत के समर्थन में रूस की ये प्रतिक्रिया स्पष्ट दर्शाती है कि वो भारत-चीन की लड़ाई में अभी भी भारत के साथ है और चीन के खिलाफ उनकी नीतियां बरकरार रहने वाली हैं। आज अमेरिका में सत्ता परिवर्तन और रूस विरोधी राष्ट्रपति के सत्ता में आने के बाद रूस को अगर किसी के समर्थन की आवश्यकता है तो वह भारत और जापान जैसे देश हैं न कि चीन। मौजूदा जियो पॉलिटिक्स में कुछ स्वीकार्यता हासिल करने के लिए पुतिन को उन प्रमुख अमेरिकी सहयोगियों के साथ रिश्तों को नई ऊंचाई देनी होगी जो चीन के भी प्रखर विरोधी हो। ऐसे में क्रेमलिन के सामने दो एशियाई दिग्गजों का विकल्प बचता है यानी भारत और जापान के साथ सहयोग को बढ़ाने का। 

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