‘ताइवान न सही, ताइवान की धूल ही मिल जाए’ अब चीन ताइवान से अपनी इज्जत बचाने में लगा है

 


चीन अपनी छवि को बचाए रखने के लिए इतना बेचैन हो गया है कि अब वो किसी भी हद तक जाने को तैयार है। जिस प्रकार से ताइवान को अमेरिका निरंतर हथियार प्रदान कर रहा है, उससे अब चीन का फोकस ताइवान पर कब्जा करना कम, और अपनी इज्जत बचाना ज्यादा हो गया है। दूसरे शब्दों में चीन इस कहावत को चरितार्थ करते फिर रहा है, “भागते भूत की लंगोटी भली”।

एक न्यूज रिपोर्ट के अनुसार अब अमेरिकी चुनाव के पसोपेश में चीन ताइवान स्ट्रेट में स्थित डोंगशा द्वीपों पर कब्ज़ा जमाने का खाका बुन रही है। स्पाई टॉक से बातचीत में पूर्व राजनयिक चार्ल्स डब्ल्यू फ्रीमैन जूनियर ने इस ओर इशारा किया कि चीन डोंगशा द्वीपों पर कब्ज़ा जमाने की योजना बना रहा है, जिसपर वह बहुत पहले से काम कर रहा है। इसके लिए फ्रीमैन ने ‘लेटर्स टू ताइवान इंटेलिजेंस ऑर्गन्स’ का हवाला दिया, जिसे 15 अक्टूबर को चीन के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने अपने पोर्टल पर प्रकाशित किया था, जिसमें कुछ ऐसे भी शब्द थे, ‘यह मत कहना कि हमने चेतावनी नहीं दी थी’। फ्रीमैन के अनुसार ये हर नापाक हरकत से पहले चीन की स्पष्ट चेतावनी होती है।

इससे स्पष्ट कि चीन वास्तव में कागजी ड्रैगन बन चुका है। यूं तो इस चेतावनी को हल्के में नहीं लेना चाहिए, पर इन गतिविधियों से स्पष्ट पता चल गया है कि चीन वास्तव में कुछ नहीं बल्कि एक कागजी ड्रैगन है, जिसे असल युद्ध करने में नानी याद आती है।  परंतु इसके पीछे पूर्व राजनयिक ने कारण बताया है कि चीन ऐसा इसलिए करना चाह रहा है ताकि ताइवान के लोगों का हौसला टूट जाए, और वे एक स्वतंत्र राष्ट्र बनने के सपने की तिलांजलि दे दे। लेकिन यदि ये उद्देश्य सत्य है, तो चीन अपनी ही भद्द पिटवा रहा है, क्योंकि जिस डोंगशा द्वीप पर वह हमला कर रहा है, उसकी भूमि का कुल साइज़ मात्र 540 एकड़ है।

दरअसल, चीन इस प्रकार से डोंगशा द्वीप पर इसलिए हमला कर रहा है ताकि उसकी इज्जत बनी रहे। इस प्रतीकात्मक विजय से बीजिंग अपनी शान बनाए रखना चाहता है, क्योंकि चीनी सरकार भी भली भांति जानती है कि उसने अपनी औकात से ज्यादा पंगे मोल लिए हैं। एक ओर चीनी सरकार को अपने देश में ही तिब्बत और हाँग-काँग जैसे क्षेत्रों में विद्रोह का सामना करना पड़ रहा है, ऊपर से ताइवान ने खुलेआम चीन की हेकड़ी को मिट्टी में मिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। रही सही कसर तो भारत ने चीन के अनेकों हमलों को मुंहतोड़ जवाब देकर पूरी कर दी है।

ऐसे में जिनपिंग के पास अब अपनी साख बचाने के अलावा और कोई विकल्प नहीं बच है। वे भली भांति जानते हैं कि यदि स्थिति नहीं सुधरी, तो उनकी सत्ता जानी तय है। इतना ही नहीं, चीन की आर्थिक हालत भी बहुत खराब है, और चीन अपने देश में आए संकट को निपटाने के लिए अब अपने ‘गुलाम’ पाकिस्तान से संसाधन निचोड़ने का प्रयास कर रहा है, जिन्हे विभिन्न रिपोर्ट्स में TFI ने कवर भी किया है –

ऐसे में चीन की सारी गुंडागर्दी और डोंगशा द्वीप पर कब्जा करने की योजना का संदेश स्पष्ट है – अपनी जनता का ध्यान भटकाने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार रहो। परंतु यह नीति चीन के लिए ही घातक सिद्ध हो रही है, क्योंकि एक तो स्थिति चीनी प्रशासन के लिए अधिक जटिल हो जाएगी, और दूसरा यह कि दुनिया को ये यकीन हो जाएगा कि चीन केवल लंबी लंबी फेंकने में ही कुशल है।

जिस प्रकार से अमेरिका द्वारा ताइवान के लिए समर्थन बढ़ रहा है, उससे अगर चीन डोंगशा द्वीप पर भी कब्ज़ा जमा ले, तो वही बहुत बड़ी उपलब्धि होगी। इससे एक बात और स्पष्ट है – चीन चाहे जितना शक्ति प्रदर्शन करें, यदि सच में लड़ने की नौबत आई तो सबसे पहले वही दुम दबाकर भाग खड़ा होगा।

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