कांग्रेस पार्टी को लगता है कि बाइडन Article 370 फिर से बहाल करने में मदद करेंगे, ये इस पार्टी की बेवकूफी है


कांग्रेस को देखकर इस समय एक ही कहावत याद आती है, ‘बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना!’ अमेरिका में जो बाइडन को राष्ट्रपति बने अभी एक हफ्ता भी नहीं हुआ है, और अभी से ही वामपंथियों और कांग्रेस के कार्यकर्ताओं की पौ बारह हो चुकी है। अब ये लोग जो बाइडन को अनुच्छेद 370 को वापस लाने वाले मसीहा के रूप में देख रहे हैं।

कांग्रेस के कश्मीरी प्रवक्ता जहानज़ेब सीरवाल के अनुसार “हम उम्मीद करते हैं जो बाइडन भारत की हुकूमत पर दबाव बनाएंगे ताकि जिस तरह से कश्मीर की पहचान यानि अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35 ए को उनसे छीना गया था, उसे वापस लाया जा सके”।


 

चूंकि, कश्मीर में सीरवाल कांग्रेस के पार्टी प्रवक्ता, इसलिए ये कहना गलत नहीं होगा कि यही कांग्रेस की भी आधिकारिक लाइन है। वैसे भी, जिस पार्टी ने आतंक रोधी POTA (Prevention of Terrorism Act) को सत्ता में वापिस आते ही 2005 तक हटाया हो, उसके लिए अनुच्छेद 370 को वापस लाने के ख्वाब देखना कोई गलत नहीं है,  परंतु तब से अब में काफी अंतर आ चुका है।

अब कांग्रेस को यह उम्मीद इसलिए भी हुई है क्योंकि जून माह में अपने पॉलिसी पेपर में भारत सरकार से बाइडन ने अनुरोध किया था कि कश्मीर में लोकतंत्र को बहाल किया जाए, और उसी पेपर में अनुच्छेद 370 को हटाए जाने को लोकतंत्र पर प्रहार भी करार दिया गया था।

ऐतिहासिक तौर पर डेमोक्रेट्स काफी उदारवादी रहे हैं, लेकिन एक बात ये भी है कि चुनाव के दौरान प्रचार और प्रचार की बातों को यथार्थ में परिवर्तित करने में जमीन आसमान का फर्क होता है।

इसमें कोई दो राय नहीं है कि जो बाइडन इल्हान ओमर, Alexandria Ocasio-Cortez , रशीद तालिब जैसे कट्टरपंथियों से दूरी बना रहे हैं, और ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि बाइडन अपनी छवि के उलट ऐसे कई निर्णय ले सकते हैं, जो अंत में भारत के लिए ही हितकारी सिद्ध होंगे।

बता दें कि जब कुछ माह पहले अमेरिका की भावी उपराष्ट्रपति, कमला हैरिस ने डेमोक्रेट उम्मीदवार बनने से पहले कश्मीर के बारे में अनुच्छेद 370 के परिप्रेक्ष्य में काफी ऊटपटाँग बयान दिए थे।

अपने एक भाषण के दौरान कमला हैरिस ने कहा, “हमें कश्मीरियों को यह बताना चाहिए कि वे अकेले नहीं है। हम स्थिति पर नज़र बनाए हुए हैं, और जरूरत पड़ी तो हम हस्तक्षेप भी करेंगे”। कमला हैरिस ने वर्तमान भारतीय प्रशासन के बारे में जैसे विचार रखे, लेकिन उन्हें स्मरण रहना चाहिए कि सत्ता में आने पर काफी कुछ बदल जाता है क्योंकि भारत विरोधी नीतियों का खामियाजा डेमोक्रेट पार्टी को भी भुगतना पड़ेगा।

वैसे पिछले कुछ समय से ये एक प्रकार का रिवाज बन गया है कि दुनियाभर के वामपंथी, डेमोक्रेट और अंतर्राष्ट्रीय प्रेस वाले भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने का। यूके के जेरेमी कॉर्बिन को इसका खामियाजा बहुत बुरी तरह भुगतना पड़ा था और बाइडन एवं कमला हैरिस ऐसा कुछ भी नहीं करना चाहेंगे जिससे उनका ही नुकसान हो।

लेकिन कांग्रेस अभी भी मुंगेरीलाल के हसीन सपनों की तरह इस ख्वाब को जीना चाहती है, जहां सब कुछ उसके हिसाब से चले, सब कुछ उसके इशारों पर चले। ऐसा लगता है कि कांग्रेस अभी भी उसी औपनिवेशिक मानसिकता में जी रही है, जहां उसे लगता है कि कोई गोरा मसीहा आएगा और उनके सब संकट दूर करेगा।

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