जम्मू-कश्मीर की क्षेत्रीय पार्टियों के लिए एक बड़ी मुश्किल हो गई है कि उन्हें पता ही नहीं है कि वो आगे भविष्य की राजनीति में करें क्या। अलगाववाद भड़काने की असफलता और चुनाव न लड़ने की नौटंकी के बाद अब राज्य में सभी पार्टियों के गठबंधन पीपल्स अलायंस ने फैसला किया है कि वो अब राज्य में जिला विकास परिषद का चुनाव लड़ेंगे। ये वही नेता हैं जो कुछ दिन पहले चीन से अनुच्छेद-370 की बहाली के लिए मदद मांगने को तैयार हो गए थे और भारतीय सेना के खिलाफ कश्मीरी युवाओं को भड़का रहे थे, लेकिन जब उन्हें कहीं से भी उम्मीद नहीं दिखी तो अब वो थक हार कर मुख्यधारा में आने की बात कर रहे हैं।
हमें चुनाव लड़ना है
जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद-370 के हटने के बाद से जो पार्टियां नाराज थीं, और लोगों को भड़का रही थीं कि वो राज्य में अनुच्छेद 370 की बहाली के लिए आंदोलन करें, अब वहीं पार्टियां दोबारा राज्य की मुख्य राजनीतिक धारा में आने की कोशिश करने लगी हैं। जम्मू-कश्मीर के गुपकार डेलिगेशन के नेता सज्जाद लोन ने कहा कि राज्य की तीनों क्षेत्रीय पार्टियां जिला विकास परिषद का चुनाव लड़ेंगी और गुपकार की सभी पार्टियां राज्य में एक गठबंधन में रहते हुए चुनाव लड़ेंगी।
गौरतलब है कि हाल ही में राज्य के चुनाव आयुक्त के.के. शर्मा ने घोषणा की, कि 28 नवंबर से 20 दिसंबर के बीच राज्य में 8 चरणों में जिला विकास परिषद का चुनाव लड़ा जाएगा। जम्मू-कश्मीर में चुनावी मोड़ की शुरुआत उसी दिन हो गई थी जिस दिन केन्द्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर में मनोज सिन्हा को उप-राज्यपाल बनाकर भेजा था। 5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद-370 के हटने के बाद राज्य में ये पहली चुनावी प्रक्रिया होगी।
चीन से मांगी मदद
ये सभी वही गुपकार डेलिगेशन के नेता हैं जो जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद-370 की बहाली के लिए चीन से मदद लेने की बात कहते हैं । नेशनल कांफ्रेंस के नेता फारुक अब्दुल्ला ने चीन से मदद लेकर राज्य में अनुच्छेद-370 की बहाली का एलान किया था। उनको इस बयान पर पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती का समर्थन था।
खुद महबूबा मुफ्ती ने अपने राजनीतिक संन्यास की नौटंकी करते हुए कहा था कि जब तक अनुच्छेद-370 वापस नहीं आता वो चुनाव नहीं लड़ेंगी। महबूबा ने तो भारत के झंडे को अपना झंडा मानने से भी इन्कार कर दिया था। हाल ही में उन्होंने लोगों को भड़काने के लिए कहा था कि जब बच्चों के पास नौकरी नहीं होगी तो वो बंदूक ही उठाएंगे।
इन सभी नेताओं के बयान बताते हैं कि इन्होंने जम्मू-कश्मीर में अलगाववाद फैलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। लोगों को भड़काने से लेकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बेजा मदद मांगने की बात करके उन्होंने देश के प्रति अपनी विरोधी नीति जाहिर करते हुए अपनी ही भद्द पिटा ली है, और वो समझ गए हैं कि उन्हें इससे नुकसान ही हो रहा है क्योंकि आतंकियों की धुनाई हो रही है। राजनीतिक गतिविधियां राज्य में शुरु हो ही गई हैं। ऐसे में अगर वो चुनाव नहीं लड़ते हैं तो राजनीतिक जमीन से भी हाथ धो बैठेंगे।
ये सभी ऐसे कारण हैं जिनको समझते हुए इन क्षेत्रीय पार्टियों ने अब जिला विकास परिषद का चुनाव लड़ने की बात कही है क्योंकि ये अपने सारे कश्मीर विरोधी एजेंडों में मात खा चुके हैं।
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