वैज्ञानिकों ने किया अलर्ट, 32 KM प्रति सेकेंड की रफ्तार से टूट रही है हमारी आकाशगंगा

 


ये पृथ्वी किसी रहस्य से कम नहीं है। आए दिन वैज्ञानिकों के सामने ऐसे रहस्यखुलते हैं जिनसे उनकी आंखें फटी की फटी रह जाती है। सदियों से वैज्ञानिक समझते थें कि आकाशगंगा (Galaxy) यानि मिल्की वे (Milky Way) स्थिर है, लेकिन वैज्ञानिकों का ये भ्रम हमेशा के लिए टूट गया। वैज्ञानिकों के सामने बड़ा खुलासा हुआ है जिसमें सामने आया है कि हमारी आकाशगंगा न केवल मूव कर रही है बल्कि टूट कर गिर भी रही है और इसके टूटने की गति बेहद तेज है। हमारी आकाशगंगा 1.15 लाख किलोमीटर प्रति घंटे यानि 32 किलोमीटर प्रति सेकेंड की रफ्तार से टूट रही है जोकि चिंता का विषय है।


तेजी से टूट रही आकाशगंगा
इस बात का खुलासा एडिनबर्ग यूनिवर्सिटी के रिसर्चर्स ने किया है। रिपोर्ट के मुताबिक, हमारी आकाशगंगा को तोड़ने का काम कोई और नहीं बल्कि दो अन्य आकाशगंगा ही कर रहे हैं, जोकि आकाशगंगा के दोनों छोर पर मौजूद हैं। मिल्की वे आकाशगंगा के दो तरफ मौजूद लार्ज मैग्लेनिक क्लाउड (Large Magellanic Cloud) की गुरुत्वाकर्षण शक्ति से हमारी आकाशगंगा मुड़ भी रही है और टूट भी रही है। माना जा रहा है कि आकाशगंगा का टूटना और दो लार्ज मैग्लेनिक क्लाउड की तरफ मुड़ना इसकी उत्पत्ति पर नई दृष्टि दे रहा है। इसकी वजह से आकाशगंगा का स्वरूप भी बदल रहा है।

लार्ज मैग्लेनिक क्लाउड से पड़ रहा असर
इस खुलास के बाद अब वैज्ञानिकों को मिल्की वे आकाशगंगा के लिए नए मॉडल्स बनाने पड़ेंगे। हालांकि, मिल्की वे आकाशगंगा के टूटने और मुड़ने से हमारे सौर मंडल पर इसका क्या असर होगा, ये फिलहाल कहना मुश्किल होगा। एडिनबर्ग यूनिवर्सिटी के प्रमुख शोधकर्ता डॉ. माइकल पीटरसन के मुताबिक, करीब 70 करोड़ साल पहले लार्ज मैग्लेनिक क्लाउड (Large Magellanic Cloud) हमारे मिल्की वे आकाशगंगा की सीमा के बाहर आकर रुक गया। उसके डार्क मैटर और तेज गुरुत्वाकर्षण की वजह से मिल्की वे आकाशगंगा की गति और अंदरूनी हिस्सों पर असर पड़ने लगा, यानी आकाशगंगा का आकार बदलने लगा, लेकिन अब वह टूटने भी लगी है।

क्या है डार्क मैटर
डार्क मैटर एक रहस्यमयी गोंद है जो आकाशगंगाओं को आपस में एक तय दूरी पर जोड़ कर रखती है। हालांकि, ये रहस्यमयी गोंद न दिखाई देती है, न चमकती है, न ही इसके पास कोई चुंबकीय गुण है, न ही कुछ उत्सर्जित करती है। लेकिन फिर भी आकाशगंगा के मुड़ने और टूटने की वजह इसमें कुछ कमी हो सकती है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि शायद डार्क मैटर मे कुछ कमी आ गई हो या फिर वह कमजोर पड़ रहा हो। ऐसा भी हो सकता है कि हमारी आकाशगंगा की उत्पत्ति इसी प्रक्रिया को उलटने से पता चले।

आकाशगंगा का सैटेलाइट
धरती पर कई मानव निर्मित सैटेलाइट मौजूद होते हैं, इसी तरह हमारी आकाशगंगा में भी सैटेलाइट मौजूद होता है जिसे लार्ज मैग्लेनिक क्लाउड कहा जाता है। मैग्लेनिक क्लाउड को डार्क मैटर की तुलना में आसानी से साफ बादलों में देखा जा सकता है। इसे सिर्फ दक्षिणी गोलार्ध यानी भूमध्य रेखा के निचले देशों से देखा जा सकता है। ये रात में एक धुंधले बादल की तरह दिखाई देते हैं जिसके अंदर कई तारे चमकते रहते हैं। डॉ. पीटरसन कहते हैं कि लार्ज मैग्लेनिक क्लाउड (Large Magellanic Cloud) 3 लाख प्रकाश वर्ष दूर है। वह लगातार अपने गुरुत्वाकर्षण शक्ति की दम पर मिल्की वे को अपनी ओर खींच रहा है। अब हम यह पता करने की कोशिश कर रहे हैं कि आखिरकार ये मैग्लेनिक क्लाउड आकाशगंगा के पड़ोस में कैसे और कहां से आया। इससे डार्क मैटर की ताकत का भी अंदाजा लगाया जा सकता है।

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