बिहार शिक्षामंत्री मेवालाल चौधरी ने मंत्री पद संभालते ही 3 दिन में दिया इस्तीफा, कहीं इसके पीछे BJP तो नहीं?

 


अभी बिहार में एनडीए सरकार ने नए सिरे से शुरुआत भी नहीं की है, और अभी से वह विवादों के घेरे में आ गई है। शपथ लेने के कुछ ही दिनों बाद JDU के नेता और शिक्षा मंत्री मेवालाल चौधरी को अप्रत्याशित रूप से इस्तीफा सौंपना पड़ा। कहा जा रहा है कि यह निर्णय नीतीश सरकार को उनपर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण लेना पड़ा, परंतु ऐसा भी माना जा रहा है कि इसके पीछे भाजपा का हाथ भी हो सकता है।

परंतु यह मेवालाल चौधरी है कौन, और इनके इस्तीफे से इतना बवाल क्यों मचा हुआ है? दरअसल, मेवालाल चौधरी JDU के काफी कद्दावर और अमीर नेताओं में से एक थे, जिनकी चुनाव से पूर्व संपत्ति करीब 12.3 करोड़ रुपये पाई गई। भ्रष्टाचार के आरोपों पर घिरे जेडीयू विधायक मेवालाल चौधरी नीतीश की कैबिनेट में सबसे अमीर मंत्री थे लेकिन उनके नाम के साथ मंत्री का पद सबसे कम समय के लिए लगा। वह महज डेढ़ से दो घंटे के लिए ही बिहार के शिक्षा मंत्री बने और फिर उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। मंत्री पद की शपथ लेने के 72 घंटे के भीतर ही उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। फिलहाल के लिए JDU ke के अशोक चौधरी को शिक्षा मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार सौंपा गया है।

परंतु मेवालाल पर आखिर आरोप किस बात का था? दरअसल 2017 में मेवालाल चौधरी पर भागलपुर के सबौर कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति रहते हुए नौकरी में भारी घपलेबाजी करने का आरोप है। मेवालाल के ऊपर आरोप है कि कुलपति रहते हुए उन्होंने 161 असिस्टेंट प्रोफेसर की गलत तरीके से बहाली की, और इस मामले को लेकर उनके ऊपर प्राथमिकी भी दर्ज है।

बिहार के तत्कालीन राज्यपाल [और अब राष्ट्रपति] रामनाथ कोविंद ने उस वक्त मेवालाल चौधरी के खिलाफ जांच के आदेश दिए थे, और जांच में मेवालाल चौधरी के खिलाफ लगे आरोपों को सही पाया गया था। मेवालाल पर सबौर कृषि विश्वविद्यालय के भवन निर्माण में भी घपलेबाजी का आरोप है, जिसके कारण फरवरी 2017 में बिहार कृषि विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार द्वारा मेवालाल चौधरी के खिलाफ एक एफआईआर दर्ज की गई थी। मेवालाल के खिलाफ आईपीसी की धारा 466, 468, 471, 309, 420 और 120 (डी) के तहत मामला दर्ज किया गया था, जिसके बाद जनता दल-यूनाइटेड ने उन्हें पार्टी से निलंबित कर दिया था।

परंतु यही एक कारण नहीं जिसके पीछे नीतीश को मेवालाल का इस्तीफा मांगने पर विवश होन पड़ा। कई लोगों का मानना है कि इसके पीछे भाजपा का भी हाथ हो सकता है, जिसका कद इस चुनाव के बाद बिहार एनडीए में बहुत बढ़ चुका है। सूत्रों के अनुसार भाजपा को पहले से ही मेवालाल की नीयत पर संदेह था, और उन्होंने मेवालाल चौधरी को शिक्षा विभाग सौंपे जाने का विरोध भी किया, जिसके बारे में न्यूज पोर्टल जनसत्ता ने अपनी रिपोर्ट में विस्तार से बताया भी है।

मेवालाल ने कहा है कि उन्होंने इस निर्णय को पार्टी के हित में स्वीकार किया था। उनके अनुसार, “नीतीश कुमार के सच्चे सिपाही होने के नाते उनके छवि पर किसी तरह का आंच न लगे, इसलिए मैंने खुद इस्तीफे की पेशकश की।  जब तक  हम पाक-साफ साबित नहीं हो जाते, हम इस पद पर नहीं रहेंगे”।

ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि अब बिहार एनडीए में पहले जैसी स्थिति बिल्कुल नहीं रही, बल्कि भाजपा ने वास्तव में सत्ता संभाल ली है, और नीतीश कुमार को न चाहते हुए भी उनकी बातें माननी ही पड़ेंगी।

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