भारत-जापान, भारत-US, भारत-रूस, दुनिया के प्रत्येक चीन विरोधी अभियान के केंद्र में भारत ही है

 


प्रधानमंत्री नेहरू के समय 1950 के दशक के “हिन्दी-चीनी भाई भाई” के नारे से लेकर प्रधानमंत्री मोदी के समय वर्ष 2020 के खूनी संघर्ष तक, भारत और चीन के रिश्ते द्विपक्षीय तौर पर कभी भी मैत्रीपूर्ण नहीं रहे हैं। हालांकि, लद्दाख में चीन द्वारा आक्रामकता दिखाए जाने के बाद अब दोनों देशों के बीच की छिपी शत्रुता खुलकर सामने आ गयी है। ऐसे में अब भारत ना सिर्फ घरेलू स्तर पर चीन विरोधी सैन्य और आर्थिक कदम उठा रहा है, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी वह अमेरिका, जापान और रूस जैसे देशों के साथ मिलकर चीन के हितों के विरोध में काम करना शुरू कर चुका है। स्पष्ट है कि दुनिया में चल रही हर चीन विरोधी मुहिम के केंद्र में भारत ही है जो इस मुहिम को तेजी से सफलता की ओर लेकर जाता हुआ दिखाई दे रहा है।

उदाहरण के लिए शुरुआत भारत के पड़ोस से ही करते हैं। चीन भारत के पड़ोसी देशों पर अपना प्रभाव जमाकर भारत को अलग-थलग करने की रणनीति पर काम कर रहा है, जिसमें उसकी सफलता दर बेहद घटिया ही रही है। नेपाली सरकार और पाकिस्तान को छोड़कर आज भारत का हर पड़ोसी भारत के साथ मधुर संबंध रखने में ही विश्वास रखता है। हालांकि, चीन नेपाल और बांग्लादेश जैसे देशों को आर्थिक लालच देकर उन्हें अपनी मुट्ठी में करने की कोशिश कर रहा है। इसी कड़ी में हाल ही में चीन ने बांग्लादेश के साथ आर्थिक करार किया था जिसके तहत बांग्लादेश के करीब 97 प्रतिशत एक्स्पोर्ट्स पर चीन में कोई tariff नहीं लगाया जा रहा है। इसके जरिये चीन बांग्लादेशी अर्थव्यवस्था पर अपना प्रभुत्व जमाकर उसे भारत से दूर करना चाहता था, लेकिन अब भारत ने चीन की चाल का जवाब देने के लिए सीधे अमेरिका को ही मैदान में बुला लिया है।

हालिया रिपोर्ट्स के मुताबिक अमेरिका अब बांग्लादेश के साथ अपने आर्थिक रिश्तों को अपग्रेड करने पर काम कर रहा है। दोनों देश निवेश, हैल्थकेयर, इनफ्रास्ट्रक्चर, कृषि, ट्रांसपोर्ट, डिजिटल पॉलिसी, ब्लू इकॉनमी जैसे मुद्दों पर अपनी द्विपक्षीय साझेदारी को बढ़ाएँगे और इसको लेकर बीते बुधवार को दोनों देशों के उच्चाधिकारियों के बीच पहली बार बैठक भी हुई थी। स्पष्ट है कि भारत के कहने पर ही अमेरिका अब बांग्लादेश में चीन की चुनौती से निपटने के लिए सामने आया है। चीन के साथ उसके सभी करारों के बावजूद आज भी अमेरिका ही बांग्लादेश का सबसे बड़ा export मार्केट है और अमेरिका आसानी से बांग्लादेश को रास्ते पर ला सकता है। इसी प्रकार हाल ही में अमेरिका और मालदीव के बीच एक logistics pact पर भी हस्ताक्षर किए गए थे, जिसके बाद अमेरिकी सेना को मालदीव के military bases का सीधा access मिल गया था। मालदीव में अमेरिका की मौजूदगी चीन के लिए खतरे से खाली नहीं है।

इसी प्रकार भारत ASEAN देशों में भी चीन के हितों के खिलाफ काम कर रहा है, लेकिन यहाँ भारत ने जापान का साथ लिया है। भारत जहां एक तरफ चीन के पड़ोसी फिलीपींस के साथ Preferential Trade Agreement करने के लिए बातचीत कर रहा है, तो वहीं जापान के प्रधानमंत्री सुगा भी अपने पहले विदेश दौरे पर ASEAN के देश इंडोनेशिया और वियतनाम की यात्रा कर सकते हैं। पिछले महीने ही दोनों देशों ने ऐलान किया था कि वे पेसिफिक द्वीपों पर भी साथ मिलकर काम कर सकते हैं। स्पष्ट है भारत ने ASEAN में जापान को साथ लेकर वहाँ चीन के लिए मुश्किलें खड़ी करने का प्लान बनाया है, जिसे दोनों देश सफलतापूर्वक अंजाम देने में लगे हैं।

क्षेत्र के साथ ही भारत का अंतर्राष्ट्रीय साझेदार भी बदल जाता है, लेकिन मकसद सिर्फ एक ही होता है, और वो है चीन के हितों को नुकसान पहुंचाकर भारत के हितों को बढ़ावा देना! इसी दिशा में भारत और रूस मिलकर अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका में BRI को चुनौती देने के लिए अपना खुद का इनफ्रास्ट्रक्चर प्रोग्राम शुरू कर चुके हैं। दरअसल, मई में भारत के रेलवे मंत्रालय के अंतर्गत आने वाली मिनीरत्ना कम्पनी Ircon International Limited और रूसी रेलवे कम्पनी के अन्तर्गत आने वाली ZD International LLC ने MoU पर हस्ताक्षर किए थे। इससे एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में रेलवे और अन्य इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट प्रोजेक्ट्स के द्वार खुल गए थे। भारत और रूस ने अपने इस प्रोजेक्ट के जरिये चीन के BRI प्रोजेक्ट पर निशाना साधने का प्लान बनाया है।

स्पष्ट है कि दुनियाभर के अलग-अलग इलाकों में भारत अलग-अलग देशों के साथ मिलकर चीन को सबक सिखाने की दिशा में काम कर रहा है। यह India की कमाल विदेश नीति और कूटनीति ही है कि India एक ही समय में अलग-अलग देशों के साथ मिलकर चीन विरोधी अभियान का नेतृत्व कर रहा है। मई में शुरू हुए भारत-चीन विवाद के बाद India ने जिस प्रकार अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चीन को दरकिनार करने की मुहिम छेड़ी है, वह प्रशंसनीय है और इस मुहिम को पुरजोर वैश्विक समर्थन मिल रहा है।

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