चीन की अफ्रीकन सफारी को झटका: अमेरिका ने Tunisia और Morocco के साथ किया 10 वर्षीय सैन्य समझौता


कोरोना के बाद चीन पर अमेरिका वैसे ही झपट रहा है जैसे बाज अपने शिकार पर। कई देशों में पटखनी देने के बाद अब अमेरिका चीन को उत्तरी अफ्रीका में झटके दे रहा है। रिपोर्टों के अनुसार, उत्तरी अफ्रीका के माघरेब क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव और सैन्य महत्वाकांक्षाओं को एक बड़ा झटका देते हुए अमेरिका ने मोरोक्को और ट्यूनीशिया के साथ 10 वर्ष के सैन्य समझौतों पर हस्ताक्षर किए है। यानि अब तक अमेरिका चीन को दक्षिण एशिया में ही धूल चटा रहा था लेकिन अब इस नए समझौते से अमेरिका ने चीन के अफ्रीकन सफारी को निशाना बनाया है।

दरअसल, रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका और मोरक्को ने शुक्रवार को एक ऐतिहासिक समझौते पर हस्ताक्षर किए जिसका उद्देश्य अगले एक दशक में सैन्य सहयोग और उत्तरी अफ्रीकी राज्य की सैन्य तैयारियों को मजबूत करना है।

बता दें कि अमेरिकी रक्षा सचिव Mark Esper मोरक्को की दो दिवसीय यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच 10 वर्ष के समझौते पर हस्ताक्षर किए गए। Mark Esper तीन उत्तरी अफ्रीकी देशों के दौरे पर गए थे जहां उन्होंने कई ऐतिहासिक समझौते किए जिसमें से एक ट्यूनीशिया सैन्य समझौता भी था। इन दोनों देशों के अलावा उन्होंने अल्जीरिया का दौरा किया।

सबसे पहले, अमेरिकी रक्षा सचिव Mark Esper ने पिछले हफ्ते बुधवार को ट्यूनीशिया के साथ 10 साल के सैन्य सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर किया था। यानि अमेरिका अब इस क्षेत्र के दो ऐसे देशों के साथ सैन्य समझौता कर चुका है जो उसके Non-NATO सहयोगी हैं। पहले ये दोनों देश चीनी प्रभाव के केंद्र रहे हैं इसलिए ये नया अमेरिकी रक्षा सौदा सीधे ड्रैगन और चीनी PLA के अफ्रीकन सफारी पर लक्षित है।

वास्तव में, Mark Esper ने चीनी प्रभाव वाले एक अन्य उत्तरी अफ्रीकी देश अल्जीरिया का भी दौरा किया। हालांकि, अल्जीरिया के साथ किसी सौदे पर हस्ताक्षर की रिपोर्ट तो नहीं है लेकिन अमेरिकी रक्षा सचिव ने साहेल क्षेत्र में सुरक्षा सहयोग और सुरक्षा के मुद्दों पर विस्तार पर चर्चा की। बता दें कि साहेल क्षेत्र पर चीन कब्जा जमाना चाहता है जिससे उसके BRI के सपने को और व्यापकता मिले।

इन तीनों ही महत्वपूर्ण उत्तरी अफ्रीकी देशों की यात्रा का सिर्फ और सिर्फ एक ही मकसद दिखाई देता है और वह है चीन को उस क्षेत्र से भी बाहर कर देना।

चीन इस क्षेत्र के सभी तीन देशों- अल्जीरिया, ट्यूनीशिया और मोरक्को पर नजर गड़ाए हुए है। माघरेब देशों में बीजिंग के अल्जीरिया के साथ अधिक गहरे संबंध है।

बीजिंग कई वर्षों से मोरक्को को घेरने की कोशिश कर रहा है। चीन ने अफ्रीकी महाद्वीप में अपने कुछ सबसे बड़े निवेश मोरोक्को में किए थे। वर्ष 2018 में मोरक्को में चीनी राजदूत ने दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंधों की 60 वीं वर्षगांठ के अवसर पर एक “नई यात्रा” का स्वागत किया। इस “नई यात्रा” में चीन द्वारा वित्तपोषित नूर 2 और नूर 3 सौर पार्क लॉंन्च किए गए थे जिन्हें दुनिया के सबसे बड़े सौर पार्कों के रूप में गिना जाता है।

अन्य महत्वाकांक्षी परियोजनाओं में चीन का टैंगियर में $ 10 बिलियन का निवेश शामिल है जिसके बाद ड्रैगन का अफ्रीका के प्रमुख बंदरगाहों में से एक के करीब में एक तकनीकी हब बनाने का सपना पूरा हो सकेगा।

दूसरी ओर, ट्यूनीशिया में चीनी निवेश दोगुने गति से बढ़ रहे हैं। इसका कारण इस देश की रणनीतिक स्थिति है।

वहीं जब युद्ध के कारण लीबिया में बीजिंग के प्लान में रुकावट आनी शुरू हुई है तब से चीन ने ट्यूनीशिया पर अपनी नजर गड़ा दी है। वर्ष 2018 में इस देश ने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) समझौतों पर हस्ताक्षर किया जिसके बाद चीनी प्रभाव बढ़ता ही चला गया। ट्यूनीशिया में चीन सुरक्षा सहयोग बढ़ाने की भी कोशिश कर रहा है जिससे PLA को वहां अपना बेस बनाने का मौका मिले और चीन को रणनीतिक बढ़त मिल जाए। वर्ष 2013 में ही चीन ने ट्यूनीशियाई सेना को आठ मिलियन-दीनार यानि 2.9 मिलियन अमेरिकी डॉलर का अनुदान दिया था। पिछले साल, सैन्य और सुरक्षा क्षेत्रों में दोनों देशों ने ट्यूनीशिया में 4.8 मिलियन डॉलर के चीनी अनुदान पर हस्ताक्षर किए। इस सौदे में ट्यूनीशिया की राष्ट्रीय सेना के लिए सैन्य खरीद शामिल है।

अक्टूबर 2018 में, ट्यूनीशियाई नौसेना की 60 वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में ट्यूनीश की खाड़ी में ट्यूनीशियाई नौसेना द्वारा आयोजित पहली अंतर्राष्ट्रीय नौसेना परेड में चीनी निर्देशित मिसाइल-फ्रिगेट वुहू (हल 539) ने भी भाग लिया था। चीनी PLA युद्धपोत की भागीदारी से ट्यूनीशिया के भीतर बीजिंग की सैन्य महत्वाकांक्षाओं को स्पष्ट करने के लिए काफी हैं।

उत्तरी अफ्रीका में चीन सिर्फ निवेश ही नहीं कर रहा, बल्कि सैन्य उपस्थिती बढ़ाने की महत्वकांक्षा भी रखता है। उसके बढ़ते कदम ने अमेरिका को चीन के खिलाफ एक्शन लेने पर मजबूर कर दिया जिसके बाद इन अफ्रीकी देशों के साथ अमेरिका के सैन्य समझौते देखने को मिल रहे हैं।

वर्तमान में, चीन के पास अफ्रीका में सिर्फ एक सैन्य अड्डा है Bab El-Mandeb Strait के करीब जिबूती में स्थित है लेकिन बीजिंग और अधिक सैन्य बेस का निर्माण करना चाह रहा है। जिस तरह से वह अल्जीरिया और ट्यूनीशिया दिलचस्पी दिखा रहा है, उससे यह कहा जा सकता है कि वह अफ्रीकी महाद्वीप में अपनी सैन्य उपस्थिति के विस्तार के लिए माघरेब क्षेत्र का उपयोग करने की योजना बना रहा है। चीन अपनी योजना में सफल भी होता दिखाई दे रहा था और निवेश के माध्यम से उत्तरी अफ्रीका को घेरने वाला था। परंतु अब अमेरिका ने चीन को इस क्षेत्र में मोरोक्को और ट्यूनीशिया के साथ दो बड़े रक्षा सौदों कर तथा अमेरिका-अल्जीरिया सुरक्षा सहयोग में सुधार के संकेत दिए हैं। यानि चीन को अब उत्तरी अफ्रीका में भी चैन नहीं मिलने वाला है और उसके मंसूबों पर पानी फिरने वाला है।

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