‘IMF के अनुसार ताइवान चीन का प्रान्त है’, ऐसा लगता है चीन के युआन IMF तक पहुंच गये हैं


 विश्व की अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं और कंपनियों में चीन ने ऐसा दबदबा बनाया है कि अक्सर वे चीन के बदाव में उसकी विदेश नीति पालन करने के लिए मजबूर हो जाते हैं। WHO और वर्ल्ड बैंक के बाद के बाद अब इस सूची में IMF यानि International Monetary Fund का नाम भी शामिल हो गया है। रिपोर्ट के अनुसार IMF ने अपनी रिपोर्ट में ताइवान को चीन का एक प्रांत बताया है। अब ताइवान ने IMF के इस तरह के बर्ताव की आलोचना की है और तुरंत बदलाव की मांग की है।

दरअसल, ताइवान न्यूज की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2020 के लिए “रियल जीडीपी ग्रोथ” के तहत IMF ने अपने डेटामैपर सेक्शन में, ताइवान को चीन से अलग रखा है, लेकिन अभी भी इसे “चीन का ताइवान प्रांत” के नाम से लेबल किया है।


जब “Advanced Economies” के तहत “वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक डेटाबेस” खंड में “डेटा” टैब में सर्च किया जा रहा है तब उस दौरान ताइवान का नाम Taiwan Province of China” को दिखया जा रहा है। यही नहीं “देशों” की सूची में सर्च करने पर भी ताइवान का नाम नहीं आ रहा।

ताइवान की विदेश मंत्रालय ने ताइवान को चीन के एक हिस्से के रूप में सूचीबद्ध करने के लिए संयुक्त राष्ट्र प्रणाली में IMF और अन्य संगठनों पर दबाव बढ़ाने के लिए बीजिंग पर निराशा व्यक्त की है। CNA के अनुसार, विदेश मंत्रालय (MOFA) ने कहा कि उसने IMF में परामर्श देने के लिए अपने अधिकारियों को अवगत कराया है, और मंत्रालय ने वैश्विक संस्था को निष्पक्षता बनाए रखने और CNA के अनुसार देश के नाम में आवश्यक संशोधन करने के लिए कहा है। मंत्रालय ने कहा कि यह नामकरण सुधार की मांग करना जारी रखेगा।

MOFA के प्रवक्ता Joanne Ou ने कहा, “MOFA निष्पक्षता और व्यावसायिकता बनाए रखने और ताइवान के नाम को तुरंत ठीक करने के लिए IMF से आग्रह कर रहा है।”

बहरहाल, Joanne Ou ने कहा, IMF के वेबपेज पर ताइवान के आर्थिक आंकड़ों को चीन से अलग दिखाने की मान्यता देता है, जो आज की सच्चाई बताता कि दोनों स्वतंत्र संस्था है।

ताइवान ने कहा कि वह संयुक्त राष्ट्र की विशेष एजेंसियों द्वारा अपने नाम में सुधार और विरोध जारी रखेगा और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में इस मामले पर समर्थन मांगेगा।

बता दें कि ताइवान को 1971 में UN से बाहर कर दिया गया था जब चीन ने अपनी पकड़ मजबूत करते हुए अमेरिका के साथ दोस्ती कर ली थी।  तब से उसे यू.एन. की विशेष एजेंसियों से बाहर रखा गया है, जिसमें विश्व स्वास्थ्य संगठन और अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन शामिल हैं। आईएमएफ UN की विशेष एजेंसियों में से एक है जो बीजिंग को चीन के एकमात्र वैध प्रतिनिधि के रूप में मान्यता देता है।

कोरोना के दौरान पूरी दुनिया इस बात को देख चुकी है कि कैसे चीन ने अंतराष्ट्रीय संगठनों जैसे WHO का अपने फायदे के लिए भरपूर इस्तेमाल किया है। चीन पर कोरोना को लेकर झूठ बोलने के आरोप लगे तो WHO हमेशा उसके बचाव के लिए आगे आया, और वह तोते की तरह चीन की कही बातों को ही दोहराने में लगा रहा।

सिर्फ WHO ही नहीं, चीन ने पिछले कई सालों में योजनाबद्ध तरीके से UN को हाईजैक करने के प्रयास किए हैं जिनमें वह काफी हद तक सफल भी रहा है। चीन के नागरिक अभी UN के 15 विशेष संगठनों में से 4 संगठनों की अध्यक्षता करते हैं और वे चीन के एजेंडे को ही आगे बढ़ाने में लगे रहते हैं। चीन अभी UN के कुल बजट का 12 प्रतिशत हिस्सा उसे प्रदान करता है और इस प्रकार वह अमेरिका के बाद UN में सबसे बड़ा योगदान करता है, लेकिन इस मोटी रकम के बदले चीन UN के माध्यम से अपने निजी हितों को बढ़ावा देने में कोई कसर नहीं छोड़ता है। चीन अपने प्रभाव और पैसे का इस्तेमाल कर UN में चुनाव जीतता आया है।

हम देख चुके हैं कि कैसे चीन ने टेड्रोस को WHO के अध्यक्ष पद तक पहुंचाया और आज वह बदले में चीन के तोते की तरह काम कर रहा है। WHO चीन के कहने पर ताइवान को भी सदस्यता देने से इंकार करता आया है। UN में चीन के सैकड़ों डिप्लोमैट दिन रात चीन के एजेंडे को ही बढ़ावा देते आए हैं। अब ऐसा लगता है कि चीन का युआन अब IMF भी पहुंच चुका है। चीन का मूल मंत्र है-पैसे के बल पर सामने वाले को खरीदो और उससे अपने मतलब के काम करवाओ।

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