IIM का ये पूर्व छात्र पटना अपने घर जाकर सब्जियां बेचकर करोड़पति बना, Farm -bill किसानों को ऐसे ही मौके देगा


कौशलेन्द्र कुमार तो याद है न आपको? हाँ वही आईआईएम अहमदाबाद के परास्नातक, जो अपनी लाखों की नौकरी छोड़कर अपने राज्य बिहार लौटे थे, ताकि कृषि उद्योग में अपना नाम कमा सके। लेकिन जिस उद्देश्य से उन्होंने अपना वैभव से परिपूर्ण जीवन का परित्याग किया था, अब उसी उद्देश्य को पूरा करने के लिए हाल ही में पारित कृषि विधेयक आगे आएगा।

बिहार के नालंदा जिले में सरकारी शिक्षकों के एक घर में जन्मे कौशलेन्द्र कुमार ने 10वीं तक की शिक्षा नवोदय में ग्रहण की, और आगे की पढ़ाई के लिए उन्होंने पटना का रुख किया। उन्होंने आईआईटी के लिए परीक्षा भी दी, पर जब वहाँ उनका चयन नहीं हुआ, तो उन्होंने जूनागढ़ के भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान से कृषि के क्षेत्र में अपना स्नातक पूरा किया। तद्पश्चात उन्होंने आईआईएम अहमदाबाद में प्रवेश पाने में सफलता प्राप्त की, जहां उन्होंने उच्चतम अंक प्राप्त किए।

अब इतने अच्छे प्रोफाइल के साथ कौशलेन्द्र किसी भी प्रसिद्ध एमएनसी में काम कर सकते थे, परंतु उन्होंने ऐसा नहीं किया। उन्होंने अपने पैतृक भूमि की सेवा करने के लिए कृषि उद्योग की राह पकड़ी, और 2008 में कौशल्या फाउंडेशन की स्थापना की। उन्होंने सब्जी उगाने वाले किसानों को स्पष्ट तौर पर मार्केट से कनैक्ट करने का प्रयास किया।

दरअसल, पिछले कई दशकों से किसानों को आढ़तियों या दलालों को कम दाम पर अपना सामान बेचने पर मजबूर होना पड़ता था, जिसे आढ़ती बेहद ऊंचे दामों पर बाज़ार में बेचते हैं। इसके कारण किसान और ग्राहक दोनों को ही नुकसान होता था, जबकि आढ़ती को काफी फ़ायदा मिलता था। लेकिन बाज़ार में प्रत्यक्ष तौर से संबंध स्थापित होने पर किसान को न केवल अपने उत्पाद का उचित दाम मिलता, अपितु ग्राहक के जेब पर भी बोझ कम पड़ता।

कुछ ही हफ्तों पहले इसी दिशा में मोदी सरकार ने एक अहम निर्णय लेते हुए तीन कृषि विधेयक पेश किए, जो कौश्लेन्द्र की नीति से प्रेरणा लेते हुए न केवल एपीएमसी एक्ट में संशोधन करती, अपितु आढ़तियों की मनमानी पर लगाम लगाके किसानों को सीधे तौर पर बाज़ार से जोड़ती। ऐसा करके केंद्र सरकार ने न केवल किसानों को आढ़तियों के चंगुल से मुक्त कराने के लिए मार्ग प्रशस्त किया, अपितु अनेकों कौश्लेन्द्र जैसे व्यक्तियों को किसानों की सेवा करने के लिए एक सुनहरा अवसर भी प्रदान कराया।

इसी उद्देश्य से बहुत पहले 2006 में तत्कालीन बिहार सरकार ने एपीएमसी एक्ट को निरस्त किया, जिसका फायदा बिहार के किसानों को मिला। इन्हीं किसानों को बाज़ार से मिलाने में कौशलेन्द्र द्वारा स्थापित संस्था ने काफी मदद की, और आज करीब 35,000 से अधिक किसान इनकी संस्था से जुड़े हुए हैं।

स्वयं कौशलेन्द्र जी के शब्दों में कहा जाये, “देश में कई ऐसी योजनाएँ हैं, जो किसानों को सशक्त बनाने के लिए प्रयासरत हैं। ये प्रोग्राम अपने आप में काफी बढ़िया है, लेकिन ये किसानों को पूर्णतया स्वतंत्र नहीं बना सकते। इसीलिए मैंने ऐसे कई योजनाओं को एक ही छत के नीचे लाने का प्रयास किया। हमारा उद्देश्य था किसानों को अपनी आय बढ़ाने में सहायता करना, और ग्राहक को उचित दाम पर ताज़े फल और सब्जियाँ वितरित कराना”।

आज कौशलेन्द्र इस व्यवसाय से करोड़ों में कमा रहे हैं, जबकि किसान लाखों में कमा रहे हैं। उन्होंने केवल इतना ही किया कि सरकारी योजनाओं का प्रत्यक्ष रूप से फ़ायदा उठाते हुए उन्होंने ग्राहक यानि मार्केट से प्रत्यक्ष संबंध स्थापित किए, बिना किसी आढ़ती को शामिल किए। लेकिन इस नेक उद्देश्य को स्वीकारने के बजाए हमारे देश की विपक्ष पार्टियां, और प्रमुख तौर पर कांग्रेस आज भी इस अधिनियम का विरोध कर रही है और देशवासियों के बीच भ्रम फैलाने का प्रयास कर रही है।

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