शांतिवाद का रास्ता छोड़कर अब जापान चीन के दुश्मनों को हथियार बेचेगा, बड़ा Defense Exporter बनना तय


कोरोना काल में विश्व ने दो बेहद ही अहम बदलाव देखे हैं। पहला चीन का अस्त होना और दूसरा जापान का एक बार फिर से उदय होना। जो जापान शांतिवाद के साये में विकास कर रहा था वह न सिर्फ प्रखर हो कर चीन को चुनौती दे रहा है, बल्कि अब ऐसा लग रहा है कि वह एक प्रमुख रक्षा उपकरण निर्यातक अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर है।

जापान ने वियतनाम को रक्षा उपकरण और तकनीक का निर्यात करने की अनुमति देने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर करने की योजना बनाई है, जो भारत-प्रशांत राष्ट्रों की रक्षा क्षमताओं को बढ़ाने के लिए और चीन की विस्तारवादी नीतियों का मुकाबला करने वाली आक्रामक नीति का ही हिस्सा है।

दरअसल, जापान के प्रधानमंत्री योशीहिदे सुगा वियतनाम और इंडोनेशिया की यात्रा पर जाने वाले हैं जहां इस समझौते के होने की पूरी उम्मीद है। Asia Nikkei की रिपोर्ट के अनुसार यह समझौता चीन की आक्रामक नीतियों से निपटने के लिए किया जा सकता है।

अगर जापान के इतिहास को देखा जाए तो द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद से 2014 तक जापान ने एक ऐसे देश के रूप में विकास किया है, जो आगे तो बढ़ना चाहता है लेकिन उसे उसके इतिहास के कारण कोई आगे नहीं बढ़ने देना चाहता। न तो वह अपनी सेना बढ़ा सकता था, न ही किसी डिफेंस उपकरण का अन्य देशों को निर्यात करता था। जापान अन्य देशों को विश्वास दिलाने के लिए स्वयं भी शांतिवाद के मूल्यों का पालन कर रहा था, परंतु वर्ष 2014 में सबसे पहले जापान से अपनी बेड़िया तोड़ते हुए अपने संविधान में बदलाव कर विश्व को यह संदेश दिया कि अब वह शांतिवाद के साये में नहीं रहने वाला है।

वर्ष 2014 में एक ऐतिहासिक बदलाव में, शिंजों आबे की सरकार ने द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पहली बार जापानी सैनिकों को विदेशों में लड़ने की अनुमति देने के लिए संवैधानिक खंड के पुनर्व्याख्या के लिए कानून पारित किया।अमेरिका के जापान पर परमाणु हमले के बाद द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ती हुई और उसके बाद जापान ने शांतिवाद को अपनाया और इसे संवैधानिक रूप से अनिवार्य कर दिया।

जापानी संविधान का अनुच्छेद 9, जापान को युद्ध के रास्ते पर जाने से रोकता था, लेकिन उस दौरान तत्कालीन पीएम शिंजों आबे ने संविधान में कई संशोधन पारित किया थे। बाद  में, इस खंड का पुनर्व्याख्या किया गया जिसके बाद जापान को विशेष परिस्थिति में “सामूहिक आत्मरक्षा” के अधिकार का प्रयोग करने और यदि उसके सहयोगियों में से एक पर हमला किया गया तो JSDF भेज कर सैन्य कार्रवाई करने की अनुमति दी गई।

वर्ष 2012 में जब प्रधानमंत्री शिंज़ो आबे ने दूसरी बार पदभार संभाला तभी से उन्होंने रक्षा उद्योग सक्रिय कर दिया था। आबे की रक्षा नीति ने जापान के लिए सैन्य क्षमताओं में वृद्धि करने का आह्वान किया ताकि बढ़ते चीनी प्रभाव और सैन्यघेरा के सामने वह अपना बचाव कर सके।

आज इन्हीं नीतियों का परिणाम है कि जापान अब रक्षा उपकरणों का निर्यातक देश बनने जा रहा है। वर्ष 2013 के बाद से ही धीरे-धीरे सैन्य बजट में वृद्धि शुरू हुई। उसके अगले कुछ वर्षों में रक्षा उद्योग के लिए दो सबसे महत्वपूर्ण सुधार हुए। पहला वर्ष 2014 में संविधान संशोधन हुआ जिसमें कुछ बेहद महत्वपूर्ण बदलाव किए गए थे और उनमें से एक था हथियारों के निर्यात पर से प्रतिबंध को हटाया जाना और दूसरा वर्ष 2015 में अधिग्रहण, प्रौद्योगिकी और रसद एजेंसी (ATLA) की स्थापना शामिल है।

इसके बाद जापान ने अपने हथियारों को अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बढ़ावा देना शुरू किया और जापानी हथियारों ने कई देशों को आकर्षित किया है। तब जापान ने अपना पहला एक्सपोर्ट, अमेरिका को जाइरोस्कोप की आपूर्ति कर किया था जब अमेरिका कतर के लिए पीएसी -2 मिसाइलों को विकसित कर रहा था।

13 मई 2015 को, जापान ने अपना पहला सैन्य व्यापार मेला आयोजित किया। अब यह देश अपने P-1 गश्ती विमान और C-2 परिवहन विमान को विदेशों में बढ़ावा दे रहा है और वह वियतनाम को इन्हीं विमानों को बेच सकता है। कुछ महीनों पहले अगस्त में फिलीपींस को मित्सुबिशी इलेक्ट्रिक द्वारा विकसित एक चेतावनी और नियंत्रण रडार प्रणाली निर्यात करने के समझौते पर हस्ताक्षर हुआ था। जापान ने वियतनामी कोस्ट गार्ड के लिए छह गश्ती जहाजों और फिलीपींस तट रक्षक के लिए 94 मीटर लंबी मल्टी-रोल रिस्पांस वेसल (MRRV) का निर्माण करने का फैसला किया है।

इसमें कोई संदेह नहीं है कि जापान के पास टेक्नोलॉजी गजब  है। इसके दम पर वह दक्षिण चीन सागर से लेकर हर जगह तक जियो-पॉलिटिकल स्थिति बदल सकता है।

शिंजों आबे ने अपने इस्तीफे से कुछ दिनों पूर्व ही यह फैसला किया है कि जापान शत्रु देशों की बैलेस्टिक मिसाइल से बचने के लिए अपने मिसाइल प्लान पर काम करेगा।  इसके तहत बैलेस्टिक मिसाइल को हवा में मार गिराने के साथ ही शत्रु देश पर मिसाइल हमले की क्षमता का विकास किया जाएगा। यही नहीं, चीन के युद्धपोतों से बढ़ते खतरे को देखते हुए हाइपरसोनिक स्पीड़ से मार करने में सक्षम एंटी शिप मिसाइल भी जापान बना रहा है। इसके साथ ही वह अपने Izumo-class हेलीकॉप्टरों को अपग्रेड करने तथा Next Gen हाइपरसोनिक मिसाइलों पर काम भी कर रहा है। जापान अपने हवाई ईंधन भरने और सैन्य परिवहन क्षमताओं में वृद्धि कर रहा है, तथा एंटी-सैटेलाइट हथियारों का निर्माण करने पर विचार कर रहा है।अगर जापान इन मिसाइल को विकसित कर लेता है तो इसका एक्सपोर्ट भी होना शुरू हो जाएगा। अब तो नए जापानी प्रधानमंत्री योशिहीदे सुगा के नेतृत्व में जापान इस बार का सबसे बड़ा रक्षा बजट तैयार कर रहा है, जिसका मूल्य सरकारी सूत्रों के अनुसार लगभग 52 बिलियन अमेरिकी डॉलर यानि 5.4 ट्रिलियन जापानी येन होगा।

Indo-Pacific क्षेत्र में बढ़ते चीनी प्रभाव को रोकने के लिए जापान भारत, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका के साथ QUAD को एक नया रूप देने की कोशिश कर रहा है जिसमें सैन्य सहयोग भी शामिल है। जापान को भी इन देशों से भरपूर सहयोग मिल रहा है।

अब यह कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा कि टोक्यो अब अपने पैसिफिज्म या शांतिवाद को पूरी तरह से त्याग कर एक रक्षा उपकरणों का निर्यातक देश बन रहा है। चीन की बढ़ती आक्रामकता ने इस बदले हुए जापान के लिए, आग में घी डालने का काम किया है परंतु इस बदलाव के बाद अगर किसी का सबसे अधिक नुकसान होगा तो वो भी चीन ही है।

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