नीतीश कुमार भी समझ गये हैं इस बार वो CM नहीं बनने वाले, फिर भी वो हाथ पांव मार रहे हैं

 


चिराग पसवान के कारण दिलचस्प हुए बिहार चुनाव में सबसे बुरी हालत बिहार के मुख्यमंत्री और जेडीयू अध्यक्ष नीतीश कुमार की हो गई है। नीतीश इस बार चुनावी बिसात में ऐसे फंसे हैं कि उन्हें सीएम पद की कुर्सी हाथ से निकलती हुई दिख रही है। इसीलिए वो अब किसी भी तरह का दांव चलने को तैयार हैं। कुछ ऐसा ही दांव अब उन्होंने जनसंख्या के आधार पर आरक्षण को लेकर चल दिया है। नीतीश हार के डर से अपने तर्कश से सारे तीर छोड़ रहे हैं लेकिन इस बार चुनावी चक्रव्यूह ऐसा रचा गया है जिसमें उनकी कुर्सी जाना लगभग तय माना जा रहा है।

नीतीश कुमार के विषय में हमने आपको बताया है कि वो लगातार अपना आपा खो रहे हैं। इसी तरह अब वो अपनी हार से बचने के लिए कुछ भी कर रहे हैं। अब उन्होंने आरक्षण का एक नया ही दांव चल दिया है। दरअसल, पश्चिमी चंपारण के वाल्मीकि नगर में एक चुनावी रैली के दौरान नीतीश ने कहा, हम तो चाहेंगे कि जितनी आबादीउसके हिसाब से आरक्षण का प्रावधान होना चाहिए।  इस पर हमारी कहीं से कोई दो राय नहीं है। संख्या का सवाल जनगणना से हल हो जाएगा।

नीतीश कुमार ने ये बयान देकर एक नया ही मुद्दा छेड़ दिया है। इस बार की सियासी बिसात को देख शायद नीतीश समझ चुके हैं कि उनका जातीय कार्ड कारगर नहीं होगा। इसलिए अब वो आबादी के इनुसार आरक्षण का नया शिगूफा लेकर आए हैं जिससे जनता को भ्रमित किया जा सके।

दरअसल, नीतीश इसके जरिए अपने ही वोट बैंक को साधने की कोशिश कर रहे हैं क्योंकि बिहार की कुल आबादी में दलित 16 फीसदी, सवर्ण 15 से 20 फीसदी, और ओबीसी करीब 50 फीसदी हैं। नीतीश का कोर वोटर यही 16 फीसदी और दलित 50 फीसदी ईबीसी और ओबीसी हैं। ऐसे में नीतीश इस कोर वोटर को साधने की कोशिश कर रहे हैं जिससे एक बड़ी आबादी के बीच अपनी जगह बनाई जा सके। गौरतलब है कि नीतीश के वोट बैंक को लोक जनशक्ति पार्टी द्वारा बड़ी चोट की आशंका है। विश्लेषकों द्वारा तो नीतीश के अपने नालंदा के इलाके में भी लोजपा द्वारा मुश्किलें खड़ी करने की बात कही जा रही है।

नीतीश के लिए ये अब तक का सबसे बुरा चुनाव साबीत होने वाला है। चिराग की बगावत के चलते लोजपा एनडीए का साथ छोड़ चुकी है। चिराग ने जेडीयू से नफरत और बीजेपी से लगाव सरेआम जाहिर कर दिया है। साथ ही जेडीयू के खिलाफ उम्मीदवार उतारकर लोजपा ने बीजेपी के लिए चुनाव और आसान कर दिया है। लोजपा और बीजेपी के बीच का यही खेल नीतीश के लिए खतरनाक साबित हो रहा है।

पिछले 15 साल की सत्ता विरोधी लहर का सारा ठीकरा भी नीतीश कुमार के ही मत्थे हैं। यही कारण है कि जनता में मोदी के प्रति तो प्रेम का भाव है, लेकिन नीतीश का नाम उनके कानों में चुभता है। ये बात बीजेपी भी बहुत पहले समझ चुकी थी। इसीलिए उसके पोस्टरों और विज्ञापनों में पीएम मोदी की तस्वीरें ज्यादा हैं जबकि नीतीश गायब है, नीतीश जिन पोस्टरों में हैं भी… उसमें बहुत ही छोटे दिख रहे हैं।

नीतीश को रैलियों के दौरान कई बार जनता की नाराजगी का सामना करना पड़ा है। हालांकि, उन वाकयों में काफी हद तक आरजेडी का हाथ भी था लेकिन फिर नीतीश कुमार ने जिस तरह से उन लोगों पर अपना आपा खोया, उससे उनकी कूल मांइडेड छवि पर बट्टा लगा है। नीतीश आजकल सीएम की कुर्सी जाने के डर की बौखलाहट में कुछ भी बोल रहे हैं और बड़ी जल्दी ही उनका पारा सातंवें आसमान पर चला जाता है।

नीतीश अब पूरी तरह समझ चुके हैं कि बीजेपी चुनाव बाद कोरोना के इस दौर में उनसे नमस्ते कर लोजपा को गले लगा सकती है। बीजेपी और लोजपा जिस तरह से एक दूसरे के साथ व्यवहार कर रहे हैं वो नीतीश कुमार को परेशान कर रहा है। इसी कारण अपने कोर वोटरों को साधने के लिए नीतीश अब आबादी के आधार पर आरक्षण का एक नया चुनावी तीर अपने तर्कश से निकाल कर लाए हैं, लेकिन शायद उन्हें पता नही है  कि जिस सिंहासन को बचाने के लिए वो ये सारे पैंतरे चल रहे हैं उसको किसी और चाणक्य ने पहले से ही अपने निशाने पर ले रखा है। अब ये देखना दिलचस्प होगा कि इस बार कौन किसकी हार का कारण बनता है, और कौन बिहार का मुख्यमंत्री बनता है।

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