जम्मू-कश्मीर को जल्द मिलेगा हिन्दू CM? अब सभी भारतीय खरीद सकते हैं राज्य में ज़मीन


 यदि 5 अगस्त 2019 इस बात के लिए इतिहास में अंकित होगा कि जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख को अनुच्छेद 370 से आजादी मिली, तो वहीं 28 अक्टूबर 2020 इस बात के लिए इतिहास में अंकित होगा कि कश्मीर को देश की मुख्यधारा से जोड़ने में जो अंतिम अड़चन आ रही थी, वह भी हट गई। हाल ही में स्वीकृत किए गए J&K डेवलपमेंट एक्ट के अंतर्गत अब जम्मू-कश्मीर की भूमि पर केवल वहाँ के निवासियों का विशेषाधिकार नहीं होगा, बल्कि देश का कोई भी निवासी यहाँ पर आकर बस भी सकता है, और अपने विभिन्न उपयोगों हेतु भूमि भी खरीद सकता है।

केंद्र सरकार ने हाल ही में एक दिशानिर्देश जारी किया है, जिसके अंतर्गत अब J&K के केंद्र शासित प्रदेश में भूमि सुधार हेतु नए नियम लागू होंगे। J&K डेवलपमेंट एक्ट के अंतर्गत भूमि अधिग्रहण के लिए आवश्यक ‘परमानेंट रेजिडेंट’ के अधिनियम को हटा दिया गया, यानि अब भारत के किसी भी कोने से कोई भी आकर भूमि अधिग्रहण कर सकता है, और राज्य में भूमि के परिप्रेक्ष्य में निवेश भी कर सकता है।

जम्मू-कश्मीर की भांति लद्दाख के केंद्र शासित प्रदेश के लिए आवश्यक भूमि अधिनियम केंद्र सरकार जल्द जारी करेगी। जम्मू-कश्मीर के उप राज्यपाल मनोज सिन्हा के अनुसार, “हम चाहते हैं कि भारत के अन्य हिस्सों की भांति जम्मू-कश्मीर में भी समृद्धि आए, उद्योग स्थापित हों। हमारी सरकार शांति, समृद्धि और उन्नति के लिए प्रतिबद्ध रहेगी।”

तो फिर अनुच्छेद 370 के होने से देशवासियों को किन समस्याओं का सामना करना पड़ता था? दरअसल,पुराने भूमि अधिनियमों के अंतर्गत जम्मू-कश्मीर के निवासियों को यह विशेष अधिकार था कि वे अपनी भूमि का कैसे भी उपयोग करें। लेकिन इसकी सबसे बड़ी खामी यह थी कि इस अधिनियम के अंतर्गत भारत के किसी भी अन्य क्षेत्र का निवासी न तो यहाँ जमीन में निवेश कर सकता था, और न ही कोई जमीन खरीद सकता था। जिसके कारण जम्मू-कश्मीर तमाम सरकारी योजनाओं और पर्याप्त आर्थिक मदद होने के बावजूद पिछड़ा हुआ था।

लेकिन जम्मू-कश्मीर डेवलपमेंट एक्ट के अंतर्गत होने वाले सुधारों से न केवल भारतीयों को निवेश के नए अवसर मिलेंगे, अपितु जम्मू-कश्मीर के निवासियों के आर्थिक समृद्धि के द्वार भी खुलेंगे। ऐसे में यहाँ की राजनीति में भी बदलाव आने तय है क्योंकि मुद्दे भी बदल जायेंगे, इसके साथ ही आने वाले समय में जम्मू-कश्मीर को अपना पहला हिन्दू मुख्यमंत्री भी मिल सकता है। जिस अनुच्छेद 370 को आधार बनाकर आर्थिक प्रगति से जम्मू-कश्मीर के निवासियों को वंचित रखा गया था, अब उसी आर्थिक प्रगति के लिए मार्ग प्रशस्त किया गया है। जिस राज्य में प्राकृतिक संसाधनों की कोई कमी न हो, वहाँ कल्पना कीजिए कि केवल कृषि क्षेत्र में भारी निवेश करने से जम्मू-कश्मीर के निवासियों को कितना लाभ होगा और यह निवेश बिना जमीन खरीदे तो हो नहीं सकता था। किसी भी फूड पार्क से लेकर बिजनस हब बनाने तक में जमीन की आवश्यकता होती है। अब इसी आवश्यकता को यह भूमि सुधार पूर्ण करेगा।

लेकिन इस सुधार से एक तीर से दो निशाने भेदे जाएंगे, क्योंकि इससे न केवल जम्मू-कश्मीर के निवासियों को वास्तविक विकास की अनुभूति होगी, बल्कि राज्य के अलगाववादी गुट के भविष्य पर भी पूर्णविराम लग जाएगा। ये हम नहीं कह रहे हैं, बल्कि कश्मीर के राजनीतिज्ञों के वर्तमान निर्णय इसी ओर इशारा कर रहे हैं। अभी हाल ही में महबूबा मुफ्ती, फारूक अब्दुल्ला सहित कश्मीर के पुराने राजनेताओं ने ‘गुपकार समझौते’ को सार्वजनिक किया, जिसके अंतर्गत ये पार्टियां तब तक आंदोलन करती रहेंगी, जब तक कश्मीर में अनुच्छेद 370 को पुनः बहाल नहीं कर दिया जाता, और जम्मू-कश्मीर के विशेषधिकार उसे पुनः नहीं मिल जाते।

लेकिन जम्मू-कश्मीर के वर्तमान प्रशासन द्वारा लागू किए गए भूमि सुधार अधिनियम से इनके इसी मांग पर पूर्णविराम लग जाएगा। दरअसल, अलगाववादी कभी चाहते ही नहीं कि कश्मीर की जनता कूप मंडूक वाली मानसिकता छोड़े, लेकिन केंद्र सरकार ने ठान लिया है कि अब इनकी मनमानी और नहीं चलेगी, और वर्तमान भूमि सुधार इसी ओर इशारा कर रहे हैं।

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