विजयादशमी की शुभकामनाओं के साथ नेपाल ने नक्शे को लेकर सुधारी अपनी महीनों पुरानी भूल


कहते हैं, सुबह का भूला अगर शाम को घर लौट आए, तो उसे भूला नहीं कहते। पिछले 6 से 7 महीनों तक भारत से तनातनी बढ़ाने के बाद अब लगता है कि नेपाली प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की अक्ल ठिकाने आ चुकी है। हाल ही में विजयादशमी के शुभ अवसर पर नेपाल वासियों को अग्रिम शुभकामनाएँ भेजते हुए केपी शर्मा ओली ने नेपाल के मानचित्र का उपयोग किया गया, जिसमें नेपाल द्वारा दावा किए गए भारत के क्षेत्र शामिल नहीं थे –

        

विजयादशमी का नेपाल में बहुत महत्व है, और ऐसे में पुराने मानचित्र के साथ नेपाल वासियों को बधाई देना महज संयोग नहीं हो सकता। इस संदेश से ओली ये जताना चाहते हैं कि वे अपनी गलती समझ गए हैं और वे दोबारा चीन के चंगुल में नहीं फंसना चाहते। इसकी शुरुआत तो वैसे तभी हो गई थी जब नेपाल प्रशासन ने महीनों से स्थगित भारतीय थलसेना अध्यक्ष जनरल मनोज मुकुंद नरवाने के नेपाल दौरे को हरी झंडी दे दी थी। जनरल नरवाने न केवल नेपाल का दौरा करेंगे, अपितु उन्हें नेपाल के 70 वर्ष पुरानी परंपरा के अनुसार नेपाल थलसेना जनरल के मानद पद से भी सुशोभित किया जाएगा।

इसके अलावा नेपाली प्रधानमंत्री ने जनरल नारावने के दौरे से पहले नेपाल के उप प्रधानमन्त्री ईश्वर पोखरेल से रक्षा मंत्रालय छीनते हुए अपने पास रख लिया। ये ईश्वर पोखरेल ही थे, जिनके बड़बोलेपन के कारण नेपाल और भारत के संबंधों में दरार उत्पन्न हुई, और नेपाल और चीन के बीच निकटता दिखाई दे रही थी।

लेकिन बात यहीं तक सीमित नहीं है। 21 अक्टूबर को अचानक रॉ निदेशक सामंत कुमार गोयल द्वारा किया गया काठमांडू का संक्षिप्त दौरा इस बात का सूचक है कि अब Nepal और भारत एक दूसरे के संबंधों में आई, खाई को पाटने के लिए प्रयासरत है। काठमांडू पहुंचते ही गोयल ने न केवल ओली से मुलाकात की, अपितु नेपाल के सुरक्षा प्रशासन से जुड़े लोग जैसे Nepal थलसेना प्रमुख सहित कई अन्य राजनेताओं से मुलाकात की, जिससे यह संकेत जा रहा है कि अब नेपाल के चीन के साथ संबंध भारत के हितों के साथ समझौता करते हुए तो नहीं बनेंगे।  इसके लक्षण भी दिखने शुरू हो गए थे, जब कई हफ्तों पहले नेपाली प्रशासन ने उस पुस्तक के प्रकाशन पर रोक लगाई, जिसमें Nepal के मानचित्र में कुछ भारतीय क्षेत्रों को भी शामिल कराया गया था।

जैसा कि TFI ने पहले भी रिपोर्ट किया था, काठमांडू के वर्तमान निर्णय इस बात का परिचायक है कि वह नई दिल्ली के हितों के साथ समझौता कर अपने अस्तित्व पर प्रश्न चिन्ह नहीं लगाना चाहता। जिस प्रकार से Nepal की भूमि पर अब चीन घुसपैठ कर रहा है, उससे वह भी भली-भांति समझ चुका है कि चीन से नजदीकियाँ बढ़ाना खतरे से खाली नहीं होगा। ओली भले ही अपने पार्टी के कार्यकर्ताओं से इस निर्णय के लिए विरोध का सामना कर रहे हो, परंतु यह कहना गलत नहीं होगा कि उन्होंने अपना सबक सीख लिया है।

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