मुंगेर कांड से साफ है, पुलिसिया कार्रवाई के आदेश भी ‘समुदाय’ देखकर दिए जाते हैं


हाल ही में विजयादशमी का अवसर बिहार के लिए विवाद का विषय बन गया। दुर्गा पूजा के समापन पर मूर्ति विसर्जन के लिए निकले एक जत्थे पर पुलिस वालों ने ना केवल लाठीचार्ज किया, बल्कि अंधाधुंध गोलियां भी बरसाईं, जिससे एक 18 वर्षीय युवक अनुराग की मृत्यु भी हो गई। दरअसल, विजयादशमी के दिन बिहार और बंगाल समेत पूरे उत्तर और पूर्वी भारत में दुर्गा माता की मूर्ति का विसर्जन भी होता है, और मुंगेर में एक जत्था ऐसे ही एक विसर्जन के लिए निकला था।

लेकिन शहर के दीनदयाल चौक के पास सोमवार देर रात को प्रतिमा विसर्जन के दौरान पुलिस और भक्तों के बीच झड़प हो गई। इस झड़प में पुलिस ने बेरहमी से भक्तों पर लाठियां बरसाईं और गोली भी चलाई जिसमें गोली लगने से एक शख्स की मौत हो गई, कई लोग गंभीर रूप से घायल भी हुए हैं। हालांकि, कई पुलिस अधिकारी भी इस झड़प में घायल हुए हैं। वहीं इस मामले पर पुलिस का कहना है कि असामाजिक तत्वों की ओर से पथराव और फायरिंग की गई, जिसमें कई पुलिसकर्मी जख्मी हो गए। इसके बाद पुलिस ने हालात को संभालने के लिए कार्रवाई की। हालांकि, पुलिस की ओर से फायरिंग में युवक की मौत से अधिकारियों ने इनकार किया है।

इस घटना के बाद से जनता में काफी आक्रोश है, और उनके निशाने पर प्रमुख तौर से इस क्षेत्र की एसपी लिपी सिंह है। आईपीएस अधिकारी लिपि सिंह इस समय मुंगेर की एसपी हैं, और उनके पिता आरसीपी सिंह राज्यसभा सांसद और सीएम नीतीश कुमार के बेहद करीबी लोगों में से एक हैं। लिपि सिंह हमेशा अपनी पुलिसिया कार्रवाई को लेकर चर्चा में रहती हैं। लिपि सिंह पिछले साल उस समय चर्चा में आई थीं, जब उन्होंने मोकामा के बाहुबली विधायक अनंत सिंह के खिलाफ कार्रवाई शुरू की और उन्हें सलाखों के पीछे पहुंचा दिया। मुंगेर की घटना को लेकर एसपी लिपि सिंह पर निशाना साधा जा रहा है। यूजर्स उनकी तुलना जनरल डायर से कर रहे हैं।

लेकिन ये कोई नई बात नहीं है, क्योंकि इस प्रकार से हिन्दुओं पर गोलियां बरसाया जाना तो मानो स्वतंत्र भारत में अब एक आम बात हो चुकी है। इसी प्रकार से 1990 में जब श्रीराम जन्मभूमि परिसर की ओर कारसेवकों का एक जत्था निकला था, तो तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने उन निर्दोष और निहत्थे कारसेवकों पर गोलियां चलवाने से पहले एक बार भी नहीं सोचा था। सैकड़ों कारसेवकों को गोलियों से भून दिया गया था, लेकिन आज भी उनके परिवारों को न्याय नहीं मिल पाया है।

वहीं दूसरी तरफ यदि किसी अन्य समुदाय के लोग अराजकता पर भी उतर आए, तो गोली चलना तो बहुत दूर की बात, आवाज़ तक नहीं निकलती। उदाहरण के लिए पूर्वोत्तर दिल्ली के दंगों को ही देख लीजिए। पुलिस पर पत्थर भी बरसाए गए और गोलियां भी चली, लेकिन प्रत्युत्तर में जब तक केन्द्र सरकार की ओर से आदेश नहीं मिला, तब तक दिल्ली पुलिस ने आत्मरक्षा में भी हवाई फायरिंग नहीं की। आखिर यह दोहरे मापदण्ड किस लिए?

वास्तव में ‘विशेष समुदाय’ के लिए देश की राजनीतिक पार्टियाँ खूब न्याय की मांग करती हैं, और अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक मामले की आवाज को पहुंचाया जाता है, परन्तु हिन्दुओं पर हुए हमले पर न्याय की मांग तो दूर की बात है उस मामले को दबाने के भरपूर प्रयास किये जाते हैं।

सच कहें तो मुंगेर में जो हुआ, वो इसी बात का परिचायक है कि स्थिति कोई भी हो, सनातन समुदाय के लोगों पर गोलियां चलाने से पहले प्रशासन एक बार भी नहीं सोचता, लेकिन अगर कोई अन्य समुदाय शहर भी जलाने पर उतारू हो, तो प्रशासन के मुंह से चूं तक ना निकले।

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