महीनों के बाद एडिटर्स गिल्ड ने तोड़ी चुप्पी, पर रिपब्लिक के समर्थन में कम मुंबई पुलिस के बचाव में आई ज्यादा नज़र

 


कहने को एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया का दायित्व है प्रेस की स्वतंत्रता की रक्षा करना और लोकतंत्र के चतुर्थ स्तम्भ को मजबूत बनाना। लेकिन इन दिनों इस संगठन का वैचारिक पक्षपात खुलकर सामने आ रहा है। महीनों तक रिपब्लिक टीवी के विरुद्ध चल रहे दमन चक्र पर मौन व्रत धारण कारण करने के बाद जब आखिरकार एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने अपना बयान जारी किया, तो वह मुंबई पुलिस की निंदा करता कम, और रिपब्लिक टीवी की निंदा करता ज्यादा दिखाई दे रहा था।

मुंबई पुलिस द्वारा रिपब्लिक टीवी के विरुद्ध की जा रही कार्रवाई के परिप्रेक्ष्य में एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने हाल ही में एक बयान जारी किया। अपने बयान में एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने बताया, “एडिटर्स गिल्ड मुंबई पुलिस द्वारा रिपब्लिक टीवी के विरुद्ध जारी अनगिनत FIR की निंदा करती है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हालांकि यह अर्थ नहीं है कि घृणा को भी बढ़ावा दिया जाए!”

फिर क्या था, एडिटर्स गिल्ड ने अपनी असलियत जगजाहिर की, और कुछ पंक्तियों में मुंबई पुलिस की निन्दा के पश्चात रिपब्लिक टीवी की धज्जियां उड़ाते हुए बाकी का बयान समर्पित कर दिया, चाहे वह सुशांत सिंह राजपूत की मृत्यु की कवरेज हो, या फिर बॉलीवुड का ड्रग्स कनेक्शन –

बयान के अनुसार, “TRP की धांधली के आरोपों के अलावा, इस बात से बिल्कुल नहीं इनकार किया जा सकता कि रिपब्लिक टीवी ने सुशांत सिंह राजपूत की असामयिक मृत्यु से संबंधित जो कवरेज की है, उससे रिपोर्टिंग के तौर तरीकों और मीडिया की क्रेडिबिलिटी पर भी गंभीर प्रश्न चिन्ह लगते मुंबई हाईकोर्ट ने चैनल के वकील से अभिनेत्री रिया चक्रवर्ती के विषय में सवाल पूछते हुए एक उचित प्रश्न पूछा, “क्या जो आप करते हो वो भी इंवेस्टिगेटिव जर्नलिज़्म का हिस्सा है? जनता से क्या यह जानना जरूरी है कि किसे गिरफ्तार किया जाना चाहिए?” ऐसी ही चिंताएँ न्यूज ब्रॉडकास्टर असोसिएशन ने भी व्यक्त की।

इस पत्र को पढ़ने के बाद आप भी इस बात को भूल जाएंगे कि यह पत्र असल में मुंबई पुलिस के FIR की निन्दा करने के लिए जारी किया था, क्योंकि एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने रिपब्लिक टीवी को ही अपनी हद में रहने का निर्देश दिया। बयान के अंश अनुसार, “यह महत्वपूर्ण मुद्दे ऐसे थे जिनका निस्तारण बहुत पहले हो जाना चाहिए था, परंतु इसे बढ़ने दिया गया। समय आ चुका है कि चैनल [रिपब्लिक] जिम्मेदार बने और मीडिया की छवि के साथ साथ पत्रकारों की सुरक्षा के साथ समझौता न करे।”

जिस प्रकार से एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने अपने बयान में मुंबई पुलिस को आड़े हाथों लेने के बजाए रिपब्लिक टीवी की निन्दा करने के लिए अधिक स्पेस दिया, उससे स्पष्ट होता है कि वैचारिक रूप से एडिटर्स गिल्ड किसके साथ है। यदि कश्मीर टाइम्स के विषय पर इनके बयान पर ध्यान दिया जाए, तो आपको समझ में आ जाएगा कि एडिटर्स गिल्ड कितना पक्षपाती है।

आपातकाल के बाद से ये पहली बार कि कोई सरकार प्रेस की आजादी का मखौल उड़ा रही है। चाहे प्रेस कॉन्फ़्रेंस में पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह द्वारा बोला जा रहा सफेद झूठ हो, या फिर रिपब्लिक से मुंबई पुलिस द्वारा मांगे जा रहे सारे वित्तीय रिकॉर्ड्स का ब्योरा हो, ये स्पष्ट है कि मुंबई पुलिस रिपब्लिक टीवी, विशेषकर अर्नब गोस्वामी के विरुद्ध हाथ धोकर पड़ी हुई है। ऐसे में एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया का महाराष्ट्र प्रशासन के अत्याचारों पर मौन रहना ये स्पष्ट जताता है कि वह किस प्रकार से अप्रत्यक्ष रूप से महाराष्ट्र प्रशासन के दमनकारी कार्यों का समर्थन कर रही है। अब इसके पीछे दो ही कारण हो सकते हैं – या तो एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया वामपंथी विचारधारा वाले लोगों से भरी हुई हैं, या फिर वे अर्नब के समर्थन में बयान देकर उद्धव ठाकरे का प्रकोप नहीं झेलना चाहते।

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