पाकिस्तान में इमरान खान की सरकार और पाकिस्तानी सेना के खिलाफ विपक्षी पार्टियों के गठबंधन PDM का आंदोलन अब और ज़ोर पकड़ता जा रहा है। विपक्ष की मांगें सिर्फ इमरान खान को पीएम पद से हटाना और सेना के हस्तक्षेप को कम करने तक सीमित नहीं रही, बल्कि अब चीन को पाकिस्तान से बाहर कर देने की मांग भी उठने लगी हैं। अगर लोगों में चीन के प्रति गुस्सा बना रहा तो इस आंदोलन को पाकिस्तान पर चीनी प्रभाव के अंत की शुरुआत होने की घटना कहना गलत नहीं होगा। दरअसल, विपक्ष के गठबंधन PDM द्वारा तीसरी रैली बलूचिस्तान में आयोजित की गयी थी। इस रैली के दौरान विपक्षी नेताओं ने सिर्फ इमरान और सेना के खिलाफ ही नहीं बल्कि इन दोनों की चीन के साथ मिलीभगत और बलूचियों पर अत्याचार के खिलाफ आग उगला। विपक्ष ने इस रैली के दौरान बलूचिस्तान से लगातार गायब होते लोगों का मुद्दा उठा। मरियम नवाज शरीफ ने पाकिस्तानी सेना और आईएसआई पर निशाना साधते हुए कहा कि बलूचिस्तान से लोग गायब हो रहे हैं और इमरान सरकार खामोश बैठी हुई है।
PDM की इस जोरदार रैली में जमियत उलेमा-ए-पाकिस्तान के नेता औवैस नूरानी ने तो एक कदम आगे बढ़ते हुए आजाद बलूचिस्तान बनाए जाने का ऐलान कर दिया। उन्होंने कहा कि, “बलूचिस्तान की जनता को लुटेरे और डाकू लूट रहे हैं, हम उसे निजात दिलाएंगे।“
बता दें कि बलूचिस्तान में चीन और पाकिस्तानी सेना के खिलाफ आज से नहीं, बल्कि कई वर्षो से माहौल बना हुआ है। पाकिस्तान की सेना और सरकार चीनी प्रोजेक्ट CPEC के लिए बलूचिस्तान के लोगों पर अत्याचार करती आई है। पाकिस्तानी सेना सरकार के साथ मिलकर बलूचिस्तान के स्थानीय लोगों की जमीन छिनकर उसे चीन को CPEC के लिए दे दी जाती है। जब वहाँ के स्थानीय लोग इसका विरोध करते हैं तो उन्हें ISI उठा ले जाती है और बाद में उन गायब हुए लोगों के शव मिलते हैं।
यही कारण है कि वहाँ की स्थानीय जनता ने पाकिस्तानी सेना के इस क्रूर अत्याचारों के खिलाफ विपक्ष का समर्थन किया है। यह किसी से छुपा नहीं है कि बलूचिस्तान प्रांत के बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी ने पाक सेना के नाक में दम कर रखा है।
कई बार इस संगठन के ऊपर पाकिस्तान में काम कर रहे चीनी नागरिकों को निशाना बना कर हमला भी किया है। वर्ष 2018 में इस संगठन पर कराची में चीन के वाणिज्यिक दूतावास पर हमले के आरोप भी लगे थे।
यह भी सच ही है कि पाकिस्तान ने बलूच नेताओं से बिना पूछे ही सीपीईसी का फैसला ले लिया था जिसके बाद वहाँ की जनता सेना के और खिलाफ हुई।
चीन के खिलाफ यह माहौल सिर्फ बलूचिस्तान में ही नहीं है, बल्कि अब यह पाकिस्तान के सीनेट तक पहुंच चुकी है। सीनेट ने शुक्रवार को विस्तारित अवधि की समाप्ति के बाद चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) प्राधिकरण की कानूनी स्थिति पर ही सवाल उठा दिया।
डॉन की रिपोर्ट के अनुसार, पीपीसी नेता और सीनेट के पूर्व अध्यक्ष रज़ा रब्बानी ने कॉल-फ़ोकस नोटिस पर बात करते हुए सवाल किया कि “सीपीईसी प्राधिकरण के कानून के किस प्रावधान के तहत काम कर रहा है।“
CPEC प्राधिकरण अध्यादेश को पिछले साल लाया गया था और जनवरी 8, 2019 को 120 दिनों के लिए नेशनल असेंबली द्वारा विस्तारित किया गया था। इसलिए, अध्यादेश का विस्तारित जीवन जून में ही समाप्त हो गया। दस सदस्यीय CPEC प्राधिकरण को बहु-अरब डॉलर की सड़क और रेल नेटवर्क से संबंधित परियोजनाओं को तेज करने का काम सौंपा गया था जो पाकिस्तान के माध्यम से चीनी क्षेत्रों को अरब सागर से जोड़ते हैं। प्राधिकरण को आर्थिक विकास के नए अवसरों को खोजने का काम दिया गया था लेकिन इसमें भी यह फेल रहा।
पाकिस्तान में CPEC परियोजनाएं विवादों से घिरी हुई हैं और बलूचिस्तान, पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर, हुंजा घाटी से सख्त विरोध का सामना करते हुए देश में गृह-युद्ध जैसी स्थिति पैदा कर रही है।
यही नहीं एक नए मामले में इमरान खान की सरकार सिंध या इसकी सरकार की सहमति के बिना, चीन सरकार की मांग पर सिंध से संबंधित Buddhoo और Bundal के द्वीपों पर कब्जा करने की कोशिश कर रही है। इसके लिए PIDA (पाकिस्तान द्वीप विकास प्राधिकरण) के गठन के लिए एक presidential ordinance भी लाया जा रहा है। इसकी वजह से अब सिंध में भी सेना सरकार और चीन के खिलाफ रोष बढ़ चुका है तथा वहाँ की सरकार PPP यानि Pakistan Peoples Party के विरोधों का सामना करना होगा। ।
इसके अलावा उइगर मुसलमानों के उत्पीड़न को लेकर पाकिस्तान में चीन के खिलाफ जनता का गुस्सा धीरे धीरे ज़ोर पकड़ने लगा है। मौलवियों और चीनियों के बीच फंसे इमरान खान और सेना के लिए अब सामने विपक्ष है तो पीछे खाई जैसी स्थिति पैदा हो चुकी है। इस बार के आंदोलन में पाकिस्तानी जनता विपक्ष का खूब समर्थन कर रही है। अब ऐसा लगता है कि यह आंदोलन न सिर्फ सेना के वर्चस्व को कम करेगा बल्कि पाकिस्तान से चीनी प्रभाव को भी समाप्त करने की शुरुआत करेगा।
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