इस्लाम का जनक देश सऊदी अरब है फ्रांस के साथ, बाद में इस्लामिक देश बनने वाले सभी हैं कट्टरपंथियों के साथ

 


सऊदी अरब

फ्रांस में फिलहाल जो भी हो रहा है, उससे दो गुट स्पष्ट रूप से उभर कर सामने आ रहे हैं – एक, जो फ्रांस की आतंकवाद, विशेषकर कट्टरपंथी इस्लाम के विरुद्ध लड़ाई में है, और दूसरे वो, जो कट्टरपंथी इस्लाम के साथ है। ऐसे में सबकी आँखें इस्लाम के जनक यानि सऊदी अरब की ओर लगी हुई थी, पर सभी को चौंकाते हुए सऊदी ने न केवल फ्रांस का समर्थन किया, बल्कि धर्मांधता को बढ़ावा देने वालों की आलोचना की।

अभी फ्रांस में एक शिक्षक की बेरहमी से हत्या किए जाने का मामला अभी ठंडा भी नहीं हुआ था कि नीस [Nice] नामक शहर में एक और आतंकी हमले ने फ्रांस को झकझोर दिया, जहां एक कट्टरपंथी मुसलमान ने एक महिला का सिर धड़ से अलग कर दिया, और दो अन्य लोगों को घायल भी किया। इसी बीच सऊदी अरब के जेद्दा शहर में स्थित फ्रेंच कॉन्सुलेट के बाहर एक उग्रवादी मुसलमान ने वहाँ तैनात सुरक्षाकर्मियों पर हमला किया।

इस पर सऊदी अरब ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए फ्रांस का खुलकर समर्थन किया। सऊदी अरब के विदेश मंत्रालय के हवाले से ट्विटर पर पोस्ट किया गया, “हम नीस में हुए इस आतंकी हमले की घोर निंदा करते हैं, जिसके कारण एक बेकसूर की जान गई, और कई लोग घायल हुए।”

अपने बयान में उन्होंने आगे कहा, “हमारी राजशाही ऐसे सभी उग्रवादी हमले की निंदा करती है, जो धर्म के नाम पर घृणा को बढ़ावा दे, मानवता और व्यावहारिकता का उपहास उड़ाये और हम इस बात पर ध्यान देते हैं कि ऐसे किसी घृणास्पद विचार को बढ़ावा न मिले।”

इससे सऊदी अरब ने एक ही तीर से दो शिकार किए है। एक तो उन्होंने आतंक के विरुद्ध वैश्विक अभियान में अपनी सक्रियता दिखाने का प्रयास किया है, और दूसरी ओर उसने इस्लाम के नाम पर आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले देशों को उसकी औकात बताई है। सऊदी अरब केवल इस्लामिक जगत का निर्विरोध सम्राट ही नहीं, बल्कि इस्लाम का जनक भी है। ऐसे में यदि पैगंबर मोहम्मद का अपमान हुआ था, जैसे कि तुर्की और पाकिस्तान जैसे देश दावा करते हैं, तो सऊदी अरब को सबसे पहले उग्र होना चाहिए था। लेकिन उग्र होने की बात तो दूर, सऊदी अरब उलटे ऐसे हमले के विरोध में सामने आया है।

इससे एक बात और स्पष्ट होती है – जो सदियों से इस्लाम का पालन करते हैं, उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि कोई उनके आराध्य के बारे में क्या सोचता है। इन बातों पर केवल उन देशों को आपत्ति हो रही है, जो मूल रूप से इस्लामिक नहीं रहे हैं, और पिछले दो तीन सदियों में ही इस्लामिक हुए हैं, जैसे तुर्की, पाकिस्तान, मलेशिया इत्यादि। इन देशों से ही अधिकतर फ्रांस के विरुद्ध मोर्चे निकाले जा रहे हैं, जबकि सऊदी अरब जैसे देशों को सच्चाई भली-भांति पता है। इसीलिए ऐसे मुद्दे पर संयुक्त अरब अमीरात भी आश्चर्यजनक रूप से मौन साधे हुए है।

लेकिन सऊदी अरब के वर्तमान रुख के पीछे एक और कारण भी हो सकता है – तुर्की। जी हाँ, यदि सऊदी अरब इस समय धर्मांधता के विरुद्ध रुख अपनाया हुआ है, तो इसके पीछे प्रमुख कारण है तुर्की। इस बात में कोई संदेह नहीं है कि तुर्की इस्लामिक जगत में सऊदी अरब से उसका वर्चस्व छीनना चाहता है, और सऊदी अरब को यह कतई स्वीकार नहीं है।

इसीलिए सऊदी अरब ने नीस में हुए हमले के बाद फ्रांस के आतंक के विरुद्ध अभियान को खुलकर समर्थन दिया है। अब वजह चाहे जो हो, लेकिन इसने  एक स्पष्ट संदेश दिया है – इस्लामिक जगत का सर्वशक्तिशाली इकलौता भगवान एक ही है, और वो है खुद सऊदी अरब ।

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