बांग्लादेश और भारत की अर्थव्यवस्था में बड़ा अंतर है, वो भारत को आर्थिक रेस में नहीं हरा पाएगा

 


आज कल भारत और बांग्लादेश एक बार फिर से चर्चा में हैं और कारण है दोनों देशों की अर्थव्यवस्था और IMF द्वारा जारी किए गए अनुमानों से भरे नए आंकड़े हैं। IMF का अनुमान है कि 2020 में प्रति व्यक्ति जीडीपी के आंकड़ों में बांग्लादेश भारत को पीछे छोड़ कर आगे निकल जाएगा। इस मुद्दे पर अब बहस शुरू हो चुकी है और राहुल गांधी जैसे बड़े ‘अर्थशास्त्री’ भारत की मौजूदा सरकार पर निशाना साध रहे हैं।

परन्तु क्या ये आगे भी ऐसे ही रहने वाला है? जवाब है, नहीं, बांग्लादेश भारत की अर्थव्यवस्था को मात नहीं दे सकता। इसके कई कारण हैं और उनमें से सबसे अहम कारण दोनों देशों की अर्थव्यस्थाओं की विभिन्नता है। बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था एक सेक्टर पर अत्यधिक निर्भर है जबकि भारत के साथ ऐसा नहीं है। ये अल्पावधि यानी कि कुछ समय के लिए हो सकता है परंतु दीर्घावधि के लिए नहीं। वास्तव में दोनों देशों की तुलना की ही नहीं जा सकती न ही जनसंख्या में, न ही क्षेत्रफल में और न ही अर्थव्यवस्था के मामले में।

दरअसल, सबसे पहले यह ध्यान में रखना होगा कि IMF के ये आंकड़े एक अनुमान है जो एक खास मॉडल या एल्गोरिदम से निकाले जाते है और एक विशेष परिस्थिति पर आश्रित होते हैं। उदाहरण के लिए जब कोरोना आया था तब IMF के पास कोई ऐसा मॉडल नहीं था जो विश्व की अर्थव्यवस्थाओं की स्थिति भाँप सके, यही वजह थी कि उसके द्वारा अप्रैल में निकाले गए इसी तरह के आंकड़ें भी बिना किसी ठोस प्रमाण के सिर्फ अनुमानों पर दिए गए थे, अब अक्टूबर में निकाले गए ये आंकड़े भी बस अनुमान ही हैं।

इस अनुमान में कहा गया है कि वर्ष 2020 में, भारत में बांग्लादेश की तुलना में कोरोनोवायरस महामारी की मार के साथ, भारत की प्रति व्यक्ति जीडीपी 2019 में 2100 डॉलर से घटकर 2020 में 1,880 डॉलर हो जाएगी। इसी अवधि के दौरान, बांग्लादेश की प्रति व्यक्ति जीडीपी 1,820 डॉलर से बढ़ने का अनुमान है।

हालांकि, IMF ने अनुमान लगाया कि भारत 2021 में फिर से बांग्लादेश से आगे निकल जाएगा क्योंकि तब भारत की अर्थव्यवस्था वापसी कर रही होगी। वर्ष 2021 में भारत की प्रति व्यक्ति GDP 2,030 डॉलर तथा बांग्लादेश का 1,990 डॉलर होगी। इस दौरान भारत की जीडीपी  8.8% से बढ़ने का अनुमान लगाया गया है, जो बांग्लादेश के ग्रोथ रेट 4.4% से दोगुना होगा तथा भारत सबसे तेजी से उभरती हुई अर्थव्यवस्था होगा। इसके बाद इस अनुमान में कहा गया है कि बांग्लादेश वर्ष 2025 में, भारत के 2,730 डॉलर के मुकाबले 2,760 पर प्रति व्यक्ति जीडीपी के साथ भारत को फिर से पीछे कर देगा। परंतु यह सिर्फ एक अनुमान है।

हालांकि, अगर आंकड़ो की बात करें तो स्वतन्त्रता के बाद से पाकिस्तान का प्रति व्यक्ति GDP वर्ष 2006 तक भारत से अधिक रहा था पर पाकिस्तान विकास दर के मामले में भारत से हमेशा पीछे ही रहा है।

खुद IMF भी इस बात को मानता है तभी तो IMF की मुख्य अर्थशास्त्री गीता गोपीनाथ ने कहा कि भारत का बांग्लादेश से कोईं मुकाबला ही नहीं है। गीता गोपीनाथ ने कहा कि कुछ देशों को छोड़ दिया जाए तो कोरोना वायरस ने दुनियाभर के देशों की इकोनॉमी को गहरा झटका दिया है। भारत आबादी के हिसाब से बहुत बड़ा देश है और लॉकडाउन की वजह अर्थव्यवस्था को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है।

उन्होंने कहा इस समय के आंकड़े को देखते हुए ये अनुमान लगाया जा रहा है कि भारत में बांग्लादेश के मुकाबले अर्थव्यवस्था में तेजी से रिकवरी की क्षमता है।

परन्तु भारत की अर्थव्यवस्था किस प्रकार से बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था से अलग है? इनकी अर्थव्यवस्था की निर्भरता है, बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था केवल एक सेक्टर पर अधिक निर्भर है जबकि भारत की अर्थव्यवस्था का आधार कई सेक्टर हैं। बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था में टेक्सटाइल सेक्टर रीढ़ की हड्डी का काम करता है। बांग्लादेश की GDP में कपड़ा उद्योग की हिस्सेदारी लगभग 16 प्रतिशत है, और करीबन 40 लाख लोग इस उद्योग में काम करते हैं। देश के कुल एक्स्पोर्ट्स में से लगभग 80 प्रतिशत एक्स्पोर्ट्स भी टेक्सटाइल से जुड़े सामानों का ही होता है। एक रिपोर्ट के मुताबिक बांग्लादेश ने पिछले साल करीब 30 अरब डॉलर से ज्यादा का एक्सपोर्ट किया था। टेक्सटाइल निर्यात पर अधिक निर्भरता और विविधता लाने के इरादे की कमी के कारण बांग्लादेश की विकास की कहानी अल्पकालिक है। भले ही यह क्षेत्र तेजी से बदल रहा है, दिन-प्रतिदिन प्रतियोगिताएं बढ़ रही हैं लेकिन बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था की विविधता नहीं बढ़ रही है।

इसके कई कारण है जो बांग्लादेश के भविष्य के लिए खतरनाक है। अन्य क्षेत्रों की तुलना में टेक्सटाइल सेक्टर में नौकरियाँ जल्द मिल जाती हैं जिसमें उच्च शिक्षा और स्किल्ड लेबर की आवश्यकता नहीं होती है और गरीबी के कारण कोई भी अपनी पढ़ाई छोड़ नौकरी पर करना चाहता है। ऐसे में उपलब्ध नौकरियों के लिए उच्च स्तर की शिक्षा प्राप्त करना व्यावहारिक नहीं होगा।

दरअसल, 2017 के बेरोजगारी आंकड़ों को देखा जाए तो बंगालदेश में शिक्षा के स्तर के साथ बेरोजगारी दर भी तेजी से बढ़ता है, जो अर्थव्यवस्था में स्किल्ड नौकरियों की कमी के संकेत है। अगर इसी तरह उच्च शिक्षा को नजरंदाज किया जाता रहा तो बांग्लादेश में उच्च मूल्य वाले मैन्युफैक्चरिंग और सर्विस सैक्टर विकास ही नहीं कर पाएगा जिससे यह अर्थव्यवस्था अधिक दिनों तक नहीं टिक सकता।

कम भुगतान वाले टेक्सटाइल सेक्टर में नौकरियों की अधिकता के कारण बांग्लादेशी श्रमिकों को कम आय और गरीबी के दुष्चक्र में फंसा देखा जा सकता है। ऐसे में दूसरे देशों से कड़ी प्रतिस्पर्धा के कारण अपने बाजार को आकर्षक बनाने के लिए बांग्लादेश को अपने देश में भत्ता और कम करना पड़ सकता है। इस सेक्टर में बांग्लादेश की प्रतिस्पर्धा भारत, वियतनाम और कंबोडिया जैसे अन्य क्षेत्रों में कम लागत वाले देशों के साथ हो रहा है। टेक्सटाइल सेक्टर की लो-स्किल्ड प्रकृति को देखते हुए, बांग्लादेश केवल मजदूरों का भत्ता कम कर के ही प्रतिस्पर्धा कर सकता है। ऐसे में यह विकास दर तेज़ी से गिर सकता है।

उच्च शिक्षा की कमी के कारण हाई स्किल्ड लेबर की कमी से पहले से ही निराशाजनक कारोबारी माहौल में higher value वाले foreign direct investment भी नहीं आयेंगे। बांग्लादेश विश्व बैंक के 2019 ईज ऑफ डूइंग बिजनेस में 190 देशों की सूची में 176वें पायदान था और इस वर्ष 168 वें पायदान पर है।

बांग्लादेश की यह विकास की कहानी अल्पकालिक समय के लिए बेहद आकर्षक दिखाई देती है परंतु इसकी कोई गारंटी नहीं है कि कब तक।

वहीं, भारत की अर्थव्यवस्था केवल एक क्षेत्र पर निर्भर नहीं बल्कि कई क्षेत्रों पर निर्भर है। चाहे वो टेक हो, एग्रीकल्चर हो या सर्विस सेक्टर हो किसी एक क्षेत्र में गति कम होने पर दूसरा क्षेत्र उस नुकसान से देश की अर्थव्यवस्था को गर्त में जाने से रोकता है। कोरोना वायरस महामारी के समय में कृषि सेक्टर और फार्मा सेक्टर में आई तेज़ी सबसे ताजा उदाहरण है। भारत की अर्थव्यवस्था कोरोना के कारण धीमी जरूर हुई पर रुकी नहीं है।

कोरोना ने अच्छे-अच्छे अनुमान लगाने वालों की वाट लगा राखी है ऐसे में यह कहना कि 2025 तक बांग्लादेश भारत की अर्थव्यवस्था को पीछे छोड़ देगा,  किसी बचकाने बयान से कम नहीं है।

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